संतोष श्रीवास्तव /न्यूज़ 11भारत
पलामू /डेस्क: इस बरसात के मौसम में जहां लोग अपने घरों में सुरक्षित हैं, वहीं निलंबर-पीतांबरपुर के कोट खास पंचायत के सिताडीह कुशवाहा टोला की ममता कुमारी बदहाली और बेबसी की जीती-जागती मिसाल बन गई हैं. वह अपने बीमार पति और चार मासूम बच्चियों के साथ एक ऐसी "घर" में रहने को मजबूर हैं, जहां छत के नाम पर केवल एक फटी हुई प्लास्टिक की चादर है.
आवास का वादा, हकीकत में सिर्फ उपेक्षा
ममता कुमारी की दयनीय स्थिति देखकर किसी का भी दिल दहल सकता है. उनके "घर" में न तो कोई मजबूत दीवार है, न ही कोई दरवाज़ा. बस एक टपकती हुई प्लास्टिक की छत और हर वक्त पानी से सटा मिट्टी का फर्श.
ममता ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि चुनाव से पहले एक विधायक की पत्नी उनके घर आई थीं. उन्होंने आवास योजना का लाभ दिलाने का वादा किया, तस्वीरें खिंचवाईं और चली गईं. लेकिन उसके बाद किसी ने दोबारा उनकी सुध नहीं ली. ममता फफक कर रो पड़ीं, उनकी आँखों से झरते आँसू वर्षों की अनदेखी और तकलीफ को बयां कर रहे थे. उन्होंने कहा, "पति बीमार हैं, चार बच्चियाँ हैं, कोई सहारा नहीं है, कोई सुनने वाला नहीं है.".
कागजों पर योजनाएं, जमीन पर बदहाली
स्थानीय ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया कि ममता कुमारी जैसी स्थिति में शायद ही पूरे प्रखंड में कोई और परिवार होगा, जिसे अब तक आवास योजना का लाभ न मिला हो. उनका आरोप है कि अधिकतर नाम केवल कागजों पर दर्ज होते हैं, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही है.
ग्रामीणों ने प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से तुरंत मांग की है कि ममता कुमारी जैसे अत्यधिक ज़रूरतमंद परिवारों को प्राथमिकता के आधार पर आवास योजना का लाभ दिलाया जाए, ताकि वे इस जानलेवा बरसात से खुद को और अपने बच्चों को बचा सकें.
इस संबंध में जब प्रखंड विकास पदाधिकारी से बात करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने बयान देने से इनकार कर दिया और पीड़िता से आवेदन दिलवाने की बात कही.
ममता कुमारी जैसी जिंदगियां इस बात का प्रमाण हैं कि सरकारी योजनाओं का लाभ सही मायनों में ज़रूरतमंदों तक पहुंचना कितना आवश्यक है.
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