प्रशांत शर्मा/न्यूज़11भारत
हजारीबाग/डेस्क
'विश्व कविता दिवस' की पूर्व संध्या पर साहित्यिक संस्था 'परिवेश' के तत्वाधान में स्थानीय रामनगर रोड स्थित 'केसरी भवन' में काव्य गोष्ठी सह होली मिलन समारोह का आयोजन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता रजरप्पा टाईम्स के संपादक सहदेव प्रसाद लोहानी एवं संचालन परिवेश के संयोजक विजय केसरी ने किया. कार्यक्रम में शामिल कवियों ने अपनी - अपनी कविताओं और गीतों से श्रोताओं को मंत्र मुक्त कर दिया. अध्यक्षता करते हुए सहदेव प्रसाद लोहानी ने कहा कि बदलते परिवेश में होली पर्व की महत्ता बहुत बढ़ गई है. होली से लोगों को सामाजिक समरसता की सीख लेनी चाहिए। होली एक मिलने और मिलने का त्यौहार है। लोग होली पर्व पर मन की कटुता को मिटाकर अपने दुश्मनों से भी गले मिलते हैं। यह इस पर्व की खासियत है.
इस अवसर पर साहित्यकार आलोचक डॉ बलदेव पांडेय ने कहा कि होली का पर्व प्रेम, श्रृंगार, मित्रता रस से युक्त एक पवित्र त्योहार है । लोग इन्हीं भावों के साथ इस त्यौहार में भाग लेते हैं। राधा कृष्ण, सीता राम और शिव पार्वती की होली हम सबों को एकाकार होने की सीख प्रदान करती है। अमीर - गरीब और बड़े - छोटे के भेद को होली मिटा देती है आज भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में होली पर बड़े ही धूमधाम के साथ मनाई जाती है.
काव्य गोष्ठी का शुभारंभ कृष्णा राम ठाकुर ने शिवा स्तुति से किया। का लेकर शिव के मनाईवै हो / शिव मानत नाहीं हैं/लड्डू और पेड़ा शिव के मनओ न भावै/ भांग' धतूरा कहां से लाईब हो/ शिव मानत नाहीं। .. तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे /बलिहार राघव जी/ बलिहार राघव जी.
कथाकार सह कवि रतन वर्मा ने 'तुझपर रंग खिलेगा कौन' शीर्षक से कविता का पाठ किया । होली के त्योहार में सुन प्रिय /सोच रहा, ले सात रंग मैं / ख़ुद ही तुम हो सप्तरंग की/ तुझपर रंग खिलेगा कौन ?/ रानी रंग में रंग, आंखों में / छायी रहती हो तुम हरदम /नील नदी सी राधामय बन/ उर मेरे बहती तुम छलछल / हृदय-रंग आकाशी तेरा/ उसमें रंग सजेगा कौन?/ख़ुद ही तुम हो सप्तरंग की/ तुझपर रंग खिलेगा कौन ?/ देखो, ली अंगड़ाई तुमने /फूट रही हरियाली तन से/ पीत चुनरिया में लिपटी ज्यों /सरसों-पुष्प खिलाये तन में/नारंगी सा सौम्य रूप तुम/ तुझपर रंग सजेगा कौन ?/ ख़ुद ही तुम हो सप्तरंग की/तुझपर रंग खिलेगा कौन ?
विजय केसरी ने 'होली जब भी याद आती है' शीर्षक से कविता का पाठ किया। होली जब भी याद आती है/ ढेरों बातें कह जाती हैं /तब की होली याद आते ही/आंखें मेरी भर आती हैं / दादी संग की होली क्या थी/ आशीषें बरसा जाती थी /इस मौसम के सपने में भी/ दादी अक्सर पुआ बनाती /सपने में तरसा जाती है!
नाट्यकर्मी सह कवि मनोज सिन्हा ने 'होली-हवाश छायी है' शीर्षक कविता का पाठ किया । रंग गुलाबी, नैन शराबी- लो, फगुवा संग फ़िर बौराहट आई है/ टिकोरे फुनगे, कटहर गदराये,भिंडी टनके,गन्ने में मोटाई आई है / रंग गुलाबी,नैन शराबी... / कि चलो महुआ छाने, ताड़ तलाशे, घोंटा मारे, सुट्टा फूंकें / गप - शप बांचे, सुख-दुख बांटे, हिलाये गोटी, सोंटा तानें / घूँघट ओढ़े गयी बसरिया,वंश-करीले संग आई है, रंग गुलाबी.
कथाकार/ कवि डॉ सुबोध सिंह 'शिवगीत' ने राधा कृष्ण, राम सीता और शिव पार्वती पर आधारित लोकगीत गाकर गोष्ठी को और भी खुशनुमा बना दिया. होली खेले रघुवीरा अवध में / होली खेले रघुवीरा/ सिया जी के हाथ कनक पिचकारी / रामा के हाथ अबीरा.
सहदेव प्रसाद लोहानी ने 'समझ लेना कि होली है' शीर्षक से कविता का पाठ किया। करे जब पाँव खुद नर्तन,समझ लेना कि होली है / हिलोरें ले रहा हो मन,समझ लेना कि होली है/ किसी को याद करते ही,अगर बजते सुनाई दे/ कहीं घुघुरू कहीं कंगन,समझ लेना कि होली है / कभी खोलो अचानकआप,अपने ही घर का दरवाजा/ खड़े देहरी पे हो साजन,समझ लेना कि होली है / तरसती जिसके हो दीदार,जब हो आप की आंखे/ उसे छूने का आए छण,समझ लेना कि होली है /हमारी ज़िन्दगी यूं तो ही,है कांटों से भरा उलझन /अगर लगने लगे मधुबन,समझ लेना कि होली है.
राजलक्ष्मी ने 'सुबह' शीर्षक से कविता का पाठ किया। सूरज की किरणें आती हैं / सारी कलियां खिल जाती हैं /अंधकार सब खो जाता है/ सब जग सुंदर हो जाता है/ चिड़ियां गाती है मिलजुल कर / बहते हैं उनके मीठे स्वर / ठंडी ठंडी हवा सुहानी/ चलती है जैसे मस्तानी / यह प्रातः का सुख बेला है/ धरती का सुख अलबेला है.
रतन प्रिया ने 'चांद का कुर्ता' कविता का पाठ किया । हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला / सिलवा दो मां मुझे उन का मोटा एक झिंगोला / सन सन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूं/ ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूं / आसमान का यह सफर और यह मौसम है जाड़े का / न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही कोई मां का / बच्चे की सुन बात कहा माता ने अरे सलोने / कुशल करें भगवान, लगें न तुमको जादू टोने/ जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो धरती हूं/ एक नाप में तो मुझको देखा करती हूं.
रेवांश केसरी ने 'वसंत ऋतु' शीर्षक से कविता का पाठ किया। फूल फूल पर झूल झूल कर/ भंवरे गाते हैं गाना/ डाल डाल पर पात पात पर/ कोयल का स्वर मस्ताना / महक महक कर चहक चहक कर / हवा यहां इठलाती है/ तन खुश होता है, मन खुश होता / जब बसंत ऋतु आती है.
दीक्षा केसरी में 'होली का उल्लास' शीर्षक से कविता का पाठ किया। होली हर साल उल्लास लेकर आती है/मन में उमंग पैदा कर जाती है/सबों को एक रंग में रंग जाती है/हर साल होली उल लेकर आती है.
आयोजित काव्य गोष्ठी में बसंत पांडेय, मीना देवी, निक्की केसरी, चंचल देवी ,मोना केसरी, मनोज कुमार, राजकुमार, बेवान केसरी, सहित काफी संख्या में से साहित्यानुरागी सम्मिलित हुए। धन्यवाद ज्ञापन मनोज सिन्हा ने किया.