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once a Waqf, always a Waqf, वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ SC में याचिका दायर, 3 पुराने फैसले को बनाया जा रहा आधार..

एक बार वक्फ फिर बात खत्म
once a Waqf, always a Waqf, वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ SC में याचिका दायर, 3 पुराने फैसले को बनाया जा रहा आधार..

न्यूज11 भारत


रांची/डेस्कः- Supreme Court judgements Waqf Amendment Act 2025:  सुप्रीम कोर्ट में नए संशोधन कानून के खिलाफ याचिका दायर करने  को लेकर अदालत ने पुराने फैसलों का उल्लंघन माना है. इसे मुसलमानों के धार्मिक व मौलिक अधिकार को छीनने की साजिश बताया गया है. इस स्टोरी के तहत अदालत के तीन फौसलो की बात को अल्लाह के द्वारा दान की गई संपत्ति मानी जाती है. बता दें कि वक्फ बोर्ड को लेकर भारत सरकार के द्वारा बनाया गया कानून का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. एआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, आम आदमी पार्टी विधायक अमानतुल्लाह खान, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी सहित करीब करीब 10 से अधिक संगठनों ने इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. 

 

दायर की गई याचिका में कहा गया है कि इस फैसले से मुस्लिम वर्ग के धार्मिक व मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है. याचिका दायर करने वाले बार बार इस बात को दोहरा रहे हैं. जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि once a Waqf, always a Waqf  मतलब कि एक बार वक्फ हो गया फिर बात खत्म. फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसले अहम हैं.

 

कानून के खिलाफ दलीलें

बताया जाता है कि भारत में वक्फ का इतिहास दिल्ली सल्तनत के जमाने का है.देश भर मे लगभग 8 लाख 70 हजार संपत्ति वक्फ के अंतर्गत आता है. जिसकी एक अमुमानित कीमत लगभग सवा लाख करोड़ रुपए है. इन्ही में कुछ बदलाव व नियंत्रित करने को लेकर लोकसभा में कानून पारित किया गया था. जो कि बाद में राज्यसबा में भी पास कर दिया गया. इस कानून को लेकर पूरा विपक्ष ने एक सुर में विरोध जारी किया था. अब इसको लेकर लोग अदालत पहुंच गए हैं. जिसमें बताया गया है कानून में संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29, 30 और 300-ए का उल्लघंन करता है. 

 

3 अहम फैसले सुप्रीम कोर्ट के 

 

1. रतीलाल पानाचंद गांधी बनाम द स्टेट ऑफ बॉम्बे (1954)

ये फैसला सुप्रीम कोर्ट का 1954 में आया था जो धार्मिक स्वायत्ता की अहमियत को दिखाता है. इसमें अदालत ने 1954 के बांबे पब्लिक ट्रस्ट कानून के कुछ प्रावधान को इलिगल करार दिया था. अदालत ने कहा था कि धार्मिक चीजों का नियंत्रण किसी धर्मनिरपेक्ष संस्थान को ही देना है. इस फैसले को आधार बनाते हुए अदालत में ये दलील दी जा रही है कि वक्फ की संपत्ति पर सरकार का नियंत्रण बढ़ाना और और उसमें बड़े पैमाने पर छानबीन की वयवस्था 1954 की इस फैसले की अवहेलना है. 




2.सय्यद अली बनाम आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड हैदराबाद (1998)

वहीं 1998 में भी सुप्रीम कोर्ट में एक फैसला इसी को लेकर आया था जिसमें कहा गया था कि वक्फ को इस्लाम धर्म के मातहत की जाने वाला एक दान का तरीका है. अदालत ने बताया कि ये वयवस्था कुरआन की है. इसी में अदालत ने कहा था कि वक्फ मुल्सिम कानून में पवित्र व धार्मिक दान का तरीका है. अदालत ने वक्फ को स्थाई मान था. अदालत ने ये भी कहा था कि जब एक बार संपत्ति वक्फ की हो गई फिर उसी की ही रहेगी. 

 

3. के. नागराज बनाम आंध्र प्रदेश (1985)

एक तीसरा फैसला भी आंध्र प्रदेश में सरकारी क्रमचारी के रिटायरमेंट को लेकर आया था. ये सीधे तौर पर वक्फ से तो जुड़ा नहीं था पर आधार जरुर बनाया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया था कि कोई भी संशोधन जो मूल कानून के मकसद को अप्रभावी करता है उसे इलिगल करार दिया जाएगा. 

 


 

 
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