राजन पाण्डेय
चैनपुर/डेस्क: चैनपुर प्रखंड में मुहर्रम के अवसर पर रविवार को पारंपरिक मातमी जुलूस निकाला गया, जिसमें हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग श्रद्धा और अनुशासन के साथ शामिल हुए. 'या अली, या हुसैन' के नारों से पूरा इलाका गूंज उठा.यह जुलूस आजाद बस्ती से शुरू होकर थाना रोड, कुरूमगाड़ मोड़, हॉस्पिटल रोड होते हुए आनंदपुर पहुंचा, और फिर वापस आजाद बस्ती के समीप आकर समाप्त हुआ. जुलूस के दौरान, मुस्लिम युवाओं ने लाठी-डंडों और पारंपरिक हथियारों के साथ शानदार करतब दिखाए, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटे थे. बच्चों ने भी उत्साह के साथ इन करतबों में भाग लिया, जो उनकी एकजुटता और परंपरा के प्रति समर्पण को दर्शाता है.
इस अवसर पर सदर शकील खान ने लोगों को संबोधित करते हुए मुहर्रम के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है और इसे एक पवित्र महीना माना जाता है. इसका शाब्दिक अर्थ "निषिद्ध" है, और इस महीने में युद्ध करना मना है. उन्होंने विशेष रूप से मुहर्रम के दसवें दिन, जिसे 'आशूरा' कहा जाता है, के महत्व को बताया, जब शिया मुसलमान पैगंबर मुहम्मद के नाती, इमाम हुसैन और उनके साथियों की कर्बला में शहादत को याद करते हैं.
मो. लडन खान ने भी जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि मुहर्रम के महीने में, शिया मुसलमान इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत पर शोक मनाते हैं, और इसे न्याय, बलिदान और वफादारी की याद के रूप में देखते हैं. उन्होंने बताया कि इस महीने में शिया समुदाय के लोग शादी या कोई भी शुभ कार्य नहीं करते हैं, बल्कि वे इबादत और उपवास के माध्यम से अल्लाह की ओर अधिक ध्यान देते हैं.
जुलूस के दौरान सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रही. चैनपुर थाना के एसआई दिनेश कुमार, अशोक कुमार, विजय उरांव, एएसआई नंदकिशोर कुमार, संतोष कुमार लुगुन और थाना के जवान बड़ी संख्या में मौजूद रहे.यह जुलूस हर साल नियमपूर्वक निकलता है, जिसमें बच्चे और नौजवान लाठी का एक से बढ़कर एक खेल दिखाते हैं, जो उनकी संस्कृति और विरासत का प्रतीक है.