प्रशांत/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: झारखंड आंदोलनकारी और समाजसेवी फहिम उद्दिन अहमद उर्फ संजर मलिक ने दवाओं की बढ़ती कीमतों और स्वास्थ्य व्यवस्था की विफलताओं पर बड़ा सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि इंसान की सबसे जरूरी जरूरत "दवा" अब आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही है. गरीब इलाज के लिए उधार लेता है, जेवर बेचता है, प्रॉपर्टी गिरवी रखता है, लेकिन जब दवा की कीमत आसमान छू रही हो, तो मजबूरी उसे तोड़ देती है.
उन्होंने तीखे लहजे में कहा कि, “जब इंसान दवा के लिए कुछ भी करने को मजबूर हो, तो सवाल यह उठता है कि दवाओं की एमआरपी 70, 80 या 90 गुना बढ़ाकर क्यों लिखी जाती है?” उन्होंने कहा कि दवा कंपनियां केवल 10 से 30 प्रतिशत मार्जिन पर होलसेलर को दवा देती हैं, लेकिन जब यह रिटेलर के पास आती है तो कीमत इतनी बढ़ जाती है कि आम जनता का जीना मुश्किल हो जाता है.
संजर मलिक ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “गरीबों की बात मंचों पर होती है, लेकिन नीतियां बड़े उद्योगपतियों के पक्ष में बनती हैं. एक ही दवा कई कंपनियां बनाती हैं, लेकिन हर कंपनी उसका अलग-अलग रेट तय करती है. ये किस आधार पर होता है?”
उन्होंने सरकार से सवाल पूछा कि आखिर इस दवा माफिया और टैक्स के बोझ से आम आदमी को कब राहत मिलेगी? उन्होंने कहा कि न तो सत्ताधारी दल और न ही विपक्ष इस गंभीर मुद्दे को प्राथमिकता देता है. उन्होंने जनता से अपील की कि अब समय आ गया है कि इस अन्याय के खिलाफ मुखर होकर आवाज़ उठाई जाए.
संजर मलिक ने कहा, “दवा और दुआ दोनों जरूरी हैं, लेकिन अगर दवा ही इतनी महंगी हो जाए कि वह लोगों की पहुंच से बाहर हो जाए, तो यह देश और समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा है.”
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