रांची: सदियों पुरानी धार्मिक पहचान की मांग को लेकर आदिवासी समाज का आंदोलन एक बार फिर तूल पकड़ता दिख रहा है. राज्य सरकार की पहल के बाद भी धार्मिक पहचान की मांग को लेकर अलग-अलग गुटों में बटा आदिवासी समाज का विवाद नहीं सुलझ पाया है. यही वजह है कि राज्य से सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव पास होने से पूर्व में की जा रही अलग-अलग धर्मकोड की मांग अब भी यथावत बनी हुई है.
एक गुट आदिवासी धर्म कोड की मांग कर रहा है तो वहीं दूसरा सरना धर्म कोड की. दोनों ही गुट अपनी-अपनी मांग पर अड़े हैं और लगातार चरणबद्ध आंदोलन कर रहे हैं. 20 फरवरी को राष्ट्रीय आदिवासी इंडीजीनस धर्म समन्वय समिति के बैनर तले देश के चौबीस राज्य के 32 जनजातियों का राजभवन के समक्ष जुटान हुआ. जो आदिवासी धर्म कोड की मांग कर रहे हैं. इस मांग को लेकर समिति का एक प्रतिनिधिमंडल महामहिम राज्यपाल से मुलाकात कर देश के प्रधानमंत्री के नाम पर ज्ञापन भी सौंपा है. राज्य के हेमंत सोरेन की सरकार द्वारा पास की गई सरना आदिवासी धर्मकोड के प्रस्ताव से यह गुट नाखुश है. इनके मुताबिक देशभर में 781 तरह के जनजाति निवास करते है. सभी को अलग-अलग धर्म कोड देना उचित नहीं है, इसलिए सभी जनजातियों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर एक धर्मकोड देने की मांग कर रहे है.
वहीं इसी दिन सरना धर्म कोड की मांग करने वाले राष्ट्रीय आदिवासी समाज सरना धर्म रक्षा अभियान के बैनर तले कार्यसमिति की बैठक की गई. इसमें 32 और जनजाति के प्रतिनिधि शामिल हुए. इस कार्यसमिति की बैठक में सरना धर्म कोड की मांग को लेकर चरणबद्ध आंदोलन करने की रणनीति बनाई गई. 21 फरवरी को मोराबादी मैदान में विशाल सम्मेलन करने की रणनीति बनाई है. वहीं सरना धर्म कोड की मांग करने वाला एक और गुट है जो लगातार चरणबद्ध आंदोलन कर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है. इस गुट में आदिवासी सेंगेल अभियान, केंद्रीय सरना समिति और अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद है. ये दोनों गुट 2011 के जनगणना में लिखे गए सरना धर्म कोड के आंकड़े के आधार पर धर्म कोड की मांग कर रहे हैं.
गौरतलब है कि साल 2021 में जनगणना होना है और इस जनगणना प्रपत्र में आदिवासी सरना समुदायों को एक अलग धर्मकोड मिले ताकि इस समाज का जनगणना सही से हो सके. इसको लेकर आदिवासी सरना समाज पिछले कई महीनों से आंदोलन कर मांग कर रहे हैं. बता दें कि आदिवासी दिवस के दिन से ही धार्मिक पहचान की उठी मांग अब तक जारी है, जिसके बाद राज्य की हेमंत सरकार ने विशेष सत्र आहूत कर सरना आदिवासी धर्म कोड के प्रस्ताव को मंजूरी देकर केंद्र सरकार को भेज दिया. इसका पक्ष और विपक्ष सभी दलों ने समर्थन किया. अब आदिवासियों का धार्मिक पहचान की मांग केंद्र सरकार के पाले में है. जिसपर दबाव बनाने के लिए आदिवासी समाज हर संभव कोशिश कर रहे हैं. इस समाज की मानें तो आजादी के पूर्व आदिवासियों को धार्मिक मान्यता प्राप्त थी, जिसे आजादी के बाद हटा दिया गया. इसके बाद से ही इस समाज को हिंदू धर्म से जोड़कर देखा जाने लगा, जिससे इस समाज का अस्तित्व दिनोंदिन खतरे में पड़ती जा रही है.