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रांची/डेस्कः- सुप्रीम कोर्ट ने 16 साल की एक मुस्लिम लड़की की शादी को लीगल ठहराया है. साथ में 30 साल के पति को संरक्षण देने के फैसले को भी बरकरार रखा है. एससी ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) को भी फटकार लगाई है. आयोग के द्वारा लड़की के उम्र को लेकर सवाल उठाया गया था. इसे पॉस्को का उल्लंघन बताया गया था. पर इसमें कहा गया है कि लड़की 15 साल के उम्र को पार कर चुकी है तो पर्सनल मुस्लिम लॉ के अनुसार किसी भी मनपसंद लड़के से शादी कर सकती है. इससे पॉस्को के प्रावधान का उल्लंघन नहीं होता. सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 16 साल के मुस्लिम लड़की को सही ठहराते हुए कहा है, 30 वर्षीय पति को संरक्षण देने की भी बात कही है.
आपको क्या समस्या है?
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की तरफ से मामले को पेश करते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने अपना पक्ष रखा. पक्ष में अपनी राय ऱकने के बाद कोर्ट ने कहा कि उनकी सुरक्षा जारी रहनी चाहिए. ऐश्वर्य भाटी ने तर्क देते हुए कहा कि 15 साल की लड़की मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार मानसिक व कानूनी रुप से शादी करने की क्षमता रखती है. वैसे सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क से अपनी सहमति नहीं जताई थी. कोर्ट ने कहा कि यहां कानून का कोई सवाल ही खड़ा नहीं होता है. आर्टिकल 226 के तहत अधिकार का इश्तेमाल करते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि लड़की अपने पति के साथ रह रही है, उसका बच्चा भी है इससे आपको क्या समस्या है.
क्या कहता है मुस्लिम पर्सनल लॉ
असल में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत विवाह का न्यूनतम आयु बाल विवाह निषेध अधिनियम के बीच काफी विवादास्पद है. बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत 18 साल की उम्र पूरी नहीं होने से पहले शादी नहीं कर सकते पर वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ में शादी के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है. माना जाता है कि योवनौवस्था के दहलीज पर पैर रखते ही लड़कियां शादी योग्य हो जाती है. इसके लिए आमतौर पर 15 साल के उम्र को सही माना जाता है.