न्यूज 11 भारत
रांची/डेस्क: इस्लामिक साग्राज्यों (देशों) में तख्ता पटल बड़ी आम घटना रही है. लगता है एक और इस्लामिक देश में तख्ता पलट की घटना होने वाली है. यह देश है जिसने 'इस्लाम का राज' के सिद्धांत की शुरुआत हुई थी. यह देश और कोई नहीं, इस समय इजराइल के साथ युद्ध में फंसा हुआ ईरान है. जी हैं, चौंकने की जरूरत नहीं है. ईरान से जो सूचनाएं आ रही हैं, उसने ही ये संकेत दिये हैं.
बता दें कि अयातुल्ला खुमैनी ने ही 'इस्लाम का राज' के सिद्धांत की शुरुआत की थी. खुमैनी ने इसी के साथ यह भी सिद्धांत दिया था कि 'इजराइल को धरती पर रहने का अधिकार नहीं है'.यही वजह है कि ईरान हमेशा से इजराइल का दुश्मन रहा है. यही वजह है कि इजराइल ईरान पर लगातार हमले कर रहा है ताकि वह इस स्थिति में न रहे जिससे वह उस पर हमला करने लायक बच सके. चूंकि इस समय ईरान परमाणु सम्पन्न देश नहीं है, इसलिए इजराइल यह नहीं चाह रहा है कि ईरान परमाणु बम बनाये. क्योंकि वह जानता है कि इजराइल को लेकर ईरान जितना निर्मम है परमाणु सम्पन्न होने के बाद वह उस पर हमला करेगा ही. इसलिए ही इजराइल ईरान के परमाणु ठिकानों को ही लगातार निशाना बना रहा है.
अब आते हैं मूल विषय पर, लग रहा है ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई की सत्ता खतरे में है. खतरा किसी और से नहीं, बल्कि भतीजे महमूद मोरादखानी से है. महमूद मोरादखानी न सिर्फ तख्ता पलट की ताक में हैं, बल्कि ईरान के उस सिद्धांत को ही बदल देने चाहते हैं, जिसके कारण वह इजराइल का दुश्मन बना हुआ है. मोरादखानी का कहना है कि वह युद्ध नहीं, शांति के पक्ष में हैं, महमूद मोरादखानी ईरान को शांति के रास्ते पर लाना चाहते हैं.
1986 में ईरान छोड़ने वाले मोरादखानी फ्रांस में रह रहे हैं और वहीं पर एक इंटरव्यू में उन्होंने अपनी यह बात रखी है. उन्होंने ईरान के वर्तमान निरंकुश शासन का अंत होने की बात भी कही है..अब जिस तख्ता पलट की बात हो रही है, वह कैसे होगा, यह तो बताना मुश्किल है, लेकिन अब तो खामनेई दो-दो मोर्चों पर फंस गये हैं. एक इजराइल और दूसरा तख्ता पलट.
ऐसा नहीं लगता है कि यह कहानी कुछ-कुछ औरंगजेब और दारा शिकोह से मिलती-जुलती है? औरंगजेब और दारा शिकोह के विचारों में जमीन आसमान के अंतर थे. औरंगजेज कट्टर इस्लामिक और निरंकुश शासक था और दारा शिकोह इस्लामिक कट्टरता से कोसों दूर था. यही झलक खामेनेई और मोरादखानी में मिलती है. मोरादखानी जब ईरान में थे तब भी वह इस्लामिक कट्टरता से कोसों दूर थे. खामनेई के फैसलों का विरोध भी करते रहते थे. खामनेई के विरोध के कारण ही उन्हें ईरान छोड़ना पड़ा था। अगर वाकई में ईरान में तख्ता पलट होता है तो यह सिर्फ ईरान की हवा तो बदलेगी ही, इजराइल के साथ पूरा विश्व राहत की सांस ले पायेगा. क्योंकि तक एक नया गणराज्य दुनिया में उभर का सामने आयेगा, जो वर्षों से इस्लामिक कट्टरता में जकड़ा हुआ था.