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पहलगाम आतंकी हमले के बीच इंसानियत की मिसाल बने कश्मीरी, जान की परवाह किए बिना पर्यटकों की बचाई जान

पहलगाम आतंकी हमले के बीच इंसानियत की मिसाल बने कश्मीरी, जान की परवाह किए बिना पर्यटकों की बचाई जान

न्यूज 11 भारत



रांची/डेस्क:  बीते 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने पूरे देश को हिला दिया है, लेकिन इस हमले के बीच एक नाम सामने आया, जिसने अपने साहस और मानवता से सभी का दिल जीत लिया. यह नाम है नजाकत, जो जम्मू-कश्मीर में एक साधारण कपड़ा व्यापारी हैं.

 

बता दें कि नजाकत उस वक्त छत्तीसगढ़ के 11 पर्यटकों को कश्मीर की सैर पर ले गए थे, जिनमें बीजेपी युवा मोर्चा के नेता अरविंद अग्रवाल का परिवार भी शामिल था. जैसे ही आतंकी हमले की गोलीबारी शुरू हुई, नजाकत ने अपनी जान की परवाह किए बिना पर्यटकों के बच्चों को गोद में उठाया और उन्हें जमीन पर लेटा दिया. उनका कहना था, "मैंने सोचा चाहे मेरी जान चली जाए, लेकिन बच्चों की जान बचनी चाहिए."

 

नजाकत ने सिर्फ बच्चों की जान नहीं बचाई, बल्कि एक कटी हुई जाली के माध्यम से सभी 11 लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया. इसके बाद अरविंद अग्रवाल ने अपनी फेसबुक पोस्ट के जरिए नजाकत का आभार व्यक्त किया और उनके साहस को सराहा. और बताया कि "जब गोलियां चलने लगीं तो बचने की उम्मीद कम थी. मुझे लगा मैं बच नहीं पाऊंगा, इसलिए मैंने आखिरी बार अपने बच्चों से बात करने की कोशिश की, लेकिन नेटवर्क न होने के कारण मैं उनसे बात नहीं कर पाया." नजाकत के बारे में यह भी बताया गया कि वे वही व्यक्ति हैं, जिनके भाई आदिल ने आतंकियों से लड़ते हुए अपनी जान गंवा दी थी. नजाकत और आदिल जैसे लोग ही असली इंसानियत और साहस का प्रतीक हैं, जिन्होंने संकट की घड़ी में न केवल अपनी बल्कि दूसरों की जान भी बचाई.

 


 

पढ़ें, आदिल की दिल छूने वाली कहानी 

 

वहीं, पहलगाम में आतंकी हमले के दौरान सैयद आदिल हुसैन शाह ने परवाह किए बिना अकेले  ही आतंकवादियों भिड़ गए. आदिल ने एक आतंकी के हाथ से राइफल छीन ली और खुद के सीने पर गोली खाकर 50 से ज्यादा पर्यटकों की जान बचा ली. वहीं, चश्मदीदों ने बताया कि जब आतंकवादियों ने हमला किया.

 

मंगलवार (22 अप्रैल) को आदिल पहलगाम से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर बैसरन पर्यटकों को लेकर आये थे. वह कुछ दूरी पर बैठे थे. तभी आतंकवादियों ने हमला कर दिया, उस वक्त आदिल हुसैन ने सिर्फ एक ड्राइवर नहीं बल्कि एक रक्षक की भूमिका निभाई. आतंकी जैसे ही लोगों को मारना शुरू किया तो वह उनके पास पहुंच गए. और आतंकियों ने आदिल का धर्म पूछा. आदिल ने खुद को मुसलमान बताया. आतंकियों ने आदिल से हट जाने को कहा. लेकिन आदिल ने बहादुरी दिखाई और आतंकवादियों से उनकी बंदूक छीनने की कोशिश की और इस दौरान आदिल हुसैन मारे गए. 

 

वहीं, चश्मदीदों ने बताया कि आदिल आतंकियों से नहीं भिड़ते तो मरने वालों का आंकड़ा 80-90 के पार होता. आतंकियों का समय आदिल पर बर्बाद हुआ और इसका फायदा पर्यटकों को मिल गया. मौका पाकर 50 से अधिक सैलानी जान बचाने में कामयाब रहे. 

 



 

वहीं, एक महिला ने सोशल मीडिया पर वीडियो में कहती है कि "हम बचे... क्योंकि एक कश्मीरी भाई ने हमें अपने घर में जगह दी..." ये शब्द हैं उस महाराष्ट्र के परिवार के जो हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में बाल-बाल बचा, और उन्हें बचाया उन्हें एक टैक्सी ड्राइवर आदिल ने. उन्होंने न सिर्फ डर से कांपते इस परिवार को अपने घर में शरण दी, बल्कि भोजन, सुरक्षा और हौसला भी दिया. वीडियो में एक महिला कहती हैं — “आदिल भाई ने हमें अपने घर में रखा, खाना दिया और सुरक्षित जगह पर ले गए. सुबह से हमें हिम्मत देते रहे”

 



बता दें कि आदिल हुसैन टट्टू चालक थे. वे पर्यटकों को घोड़े पर घुमाते थे. आदिल के पिता सैयद हैदर शाह ने बताया कि दिल हुसैन अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य भी थे. उनके परिवार में उनके माता-पिता, पत्नी और बच्चे हैं. परिवार ने सरकार से न्याय की गुहार लगाई है. कहा  कि उस हमले में मेरे बेटे को भी गोली लगी है, जो भी इसके लिए जिम्मेदार है, उसे सजा मिलनी चाहिए. 


 


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