नंदकिशोर कुमार/न्यूज़11 भारत
गुमला/डेस्क: सावन के पावन महीने में अगर आप शिव की साक्षात उपस्थिति को महसूस करना चाहते हैं, तो झारखंड के गुमला जिले में स्थित टांगीनाथ धाम आपके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है. घने जंगलों, ऊंचे पहाड़ों और रहस्यमयी वातावरण के बीच बसा यह स्थल शिवभक्तों के लिए एक जीवंत चमत्कार है, जहां आज भी जमीन में गड़ा त्रिशूलनुमा फरसा हजारों वर्षों से जंग रहित है.
त्रिशूल या फरसा? जहां धरती को चीर शिव स्वयं विराजमान हैं
इस पर्वत पर मौजूद लोहे का चमत्कारी फरसा, जिसे स्थानीय भाषा में टांगी कहा जाता है, आज भी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. मान्यता है कि यह फरसा भगवान परशुराम का है, जिन्हें भगवान शिव का रौद्र अवतार माना जाता है. सदियों से खुले आसमान के नीचे यह त्रिशूल कभी जंग नहीं खाता, न टूटता है, न हिलता है — यही तो है शिव की लीला!
सावन में उमड़ता है भक्तों का जनसैलाब
सावन की पहली सोमवारी से ही हजारों कांवरिया, श्रद्धालु, और साधक टांगीनाथ की कठिन चढ़ाई पार कर भोलेनाथ को जल अर्पित करने आते हैं. बोल बम की गूंज, ढोल-नगाड़े, पारंपरिक गीत और हर दिशा में बिखरी भक्ति — यह स्थान मानो शिव की तपस्थली नहीं, जीवंत कैलाश बन जाता है.
हर पत्थर शिवमय, हर मूर्ति में इतिहास की सांस
करीब 10,000 वर्ग मीटर में फैले इस क्षेत्र में सैकड़ों प्राचीन शिवलिंग, भगवान विष्णु, लक्ष्मी और सूर्य की मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं. कुछ मूर्तियों को बुद्धकालीन भी माना जाता है, जो इसे केवल आस्था नहीं, इतिहास का अद्भुत संग्रहालय भी बनाता है. यहां हर पत्थर पर शिव की छाप और हर शिला में तप की तपिश बसती है.
यह भूमि केवल तीर्थ नहीं, शिव का तेज है
टांगीनाथ सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, यह शिव के न्याय, परशुराम के तप और मानवता के मार्गदर्शन का प्रतीक है. यह पर्वत हमें सिखाता है कि आस्था जब अडिग होती है, तो प्रकृति भी झुकती है — और शिव स्वयं धरती पर उतरते हैं.
प्राकृतिक सौंदर्य और शांति
घने जंगलों और शांत पहाड़ी श्रृंखलाओं से घिरा टांगीनाथ धाम अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है. यहां का शांत वातावरण और हरी-भरी वादियां इसे ध्यान और आत्मचिंतन के लिए एक आदर्श स्थान बनाती हैं.
टांगीनाथ धाम में पूजा की विधि
बाबा टांगीनाथ धाम में जो पुजारी होते हैं वह नागपुरी भाषा में पूजा करते हैं. क्योंकि नागपुरी भाषा को इस क्षेत्र में 2000 साल से अधिक समय से "राजभाषा" के रूप में मान्यता प्राप्त है. टांगीनाथ धाम में भी, जब से यह मंदिर अस्तित्व में है, तब से यहां के बैगा पुजारी नागपुरी भाषा में ही पूजा कराते आए हैं. यहां का मान्यता है कि जब श्रद्धालु नारियल चढ़कर कुछ मन्नत मांगते हैं तो मन्नत पूरा होने के बाद दोगुना नारियल चढ़ाना पड़ता है.
प्रशासन से अपेक्षा — इस शिवधाम को मिले राष्ट्रीय पहचान
टांगीनाथ धाम जैसे स्थलों को चाहिए कि पुरातत्व विभाग, पर्यटन मंत्रालय और राज्य सरकार विशेष योजनाओं के तहत संरक्षण, शोध और प्रचार-प्रसार करें. यह केवल गुमला या झारखंड की धरोहर नहीं, भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान बन सकता है.
“टांगीनाथ जैसे धार्मिक स्थल को संवेदनशील संरक्षण और व्यापक प्रचार के माध्यम से राज्य का आध्यात्मिक मानचित्र बदल सकते हैं." तो इस सावन, उठाइए जल, बोलिए 'बोल बम', और दर्शन कीजिए उस स्थान के, जहां शिव अब भी त्रिशूल रूप में विराजे हैं — टांगीनाथ धाम