प्रशांत/न्यूज़11 भारत
चतरा/डेस्क: झारखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली की खबरें लगातार राज्य के अलग अलग भागों से आ रही है. उसमें चतरा की स्थिति सबसे अधिक बद से बदत्तर है, जहां से कई सारे मामले इस बरसात में आ चुके हैं, जिसमें किसी ने तान खोया है तो किसी की जान मुश्किल से बच पायी है. ऐसा ही एक मामला एकबार फिर यहां से सामने आया है. इस चार सड़क के अभाव में एक पिता को अपने 8 साल के बेटे का शव कंधे पर उठाकर पांच किलोमीटर पैदल चलना पड़ा, ताकि वह एम्बुलेंस तक वह पहुंच सके.
यह दिल दहला देने वाली घटना चतरा जिले के प्रतापपुर प्रखंड की है, जहां कुब्बा गांव के निवासी भोला गंड्डू ने अपने बेटे अजय कुमार को खो दिया. कुब्बा गांव, जहां आदिम जनजाति समुदाय के लोग रहते हैं. योगीयारा के बाबा कुटी मंदिर से शुरू होने वाले घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ों के बीच स्थित है. इस गांव तक पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं है, जिसके कारण आपातकालीन स्थिति में एम्बुलेंस या कोई अन्य वाहन नहीं पहुंच पाता. यह घटना बीते गुरुवार की है, जब 8 वर्षीय अजय कुमार अपने दोस्तों के साथ स्कूल से लौटते समय नहाने के लिए एक तालाब में गया था. नहाते समय अचानक उसका पैर फिसल गया और वह गहरे पानी में डूब गया. गांव के लोग जब तक उसे बचाने पहुंचते, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. दुभर्भाग्यवश, गांव तक सड़क न होने के कारण एम्बुलेंस गांव के अंदर नहीं पहुंच पाया और उसे योगीयारा मुख्य मार्ग पर ही रुकना पड़ा. ऐसे में भोला गंड्झ को अपने मृत बेटे का शव अपने कंधों पर उठाकर कई किलोमीटर पैदल चलकर एम्बुलेंस तक लाना पड़ा. यह दृश्य न केवल हृदय विदारक था, बल्कि इसने एक बार फिर झारखंड की ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी.
पहले भी हो चुकी हैं इस गांव में कई ऐसी घटनाएं
यह प्रतापपुर में हुई पहली घटना नहीं है. सड़क के अभाव में लोगों को जान गंवानी पड़ी है. हाल ही में, प्रतापपुर प्रखंड मुख्यालय से सिर्फ 1 किलोमीटर दूर भूगड़ा गाँव में एक गर्भवती महिला की मौत हो गई थी, क्योंकि एम्बुलेंस उसके घर तक नहीं पहुंच पाई थी. इसी तरह की एक और घटना सिद्दकी पंचायत के घोर नक्सल क्षेत्र हिंदोयखुर्द में हुई थी, जहां प्रसव पीड़ा से तड़प रही एक आदिवासी महिला को खाट पर ले जाना पड़ा था. उस महिला ने खाट पर ही बच्चे को जन्म दिया था. इस घटना के बाद, प्रशासन ने मृतक के शव का पोस्टमार्टम कराया है और सरकार की ओर से मिलने वाली सहायता राशि भोला गंझू के परिवार को देने का आश्वासन दिया है. हालांकि, यह सहायता राशि उस दुख को कम नहीं कर सकती जो एक पिता ने अपने बेटे के शव को कंधों पर बोते हुए महसूस किया होगा.
क्या प्रशासन की नींद खुलेगी, यू ही हर दिन जाते रहेगी जान?
इन घटनाओं से यह सवाल उठता है कि आखिर कब तक झारखंड के दूर-दराज के गांवों में रहने वाले लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहेंगे? सड़क और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण जान गंवाना क्या उनकी नियति बन गई है? कुब्बा जैसे गांवों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए ठोस कदम उठाना अब समय की मांग है. इस दुखद घटना ने एक बार फिर सरकार और प्रशासन को यह सोचने पर मजबूर किया है कि आखिर कब तक झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था एम्बुलेंस की बजाय लोगों के कंधों पर टिकी रहेगी. उप मुखिया उमेश कुमार का कहना है की पूर्व में इस सड़क को बनवाने के लिए नाम डाला गया था लेकिन फॉरेस्ट को लेकर टाल मटोल कर दिया गया. और अभी तक सड़क नहीं बन पाया है. साथ ही उन्होंने बताया कि सड़क की लंबाई भी बहुत ज्यादा होने के कारण मुखिया मद से सड़क को नहीं बनाया जा सकता है.