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रांची/डेस्क: क्या आप जानते है कि दुनिया की सबसे लोकप्रिय स्पिरिट्स में से एक टकीला, सिर्फ़ एक पार्टी ड्रिंक नहीं बल्कि सदियों पुरानी एक पवित्र परंपरा और मैक्सिकन संस्कृति का गौरव हैं? इसका इतिहास इतना गहरा है कि यह प्राचीन एज़्टेक सभ्यता से जुड़ा हैं. कहा जाता है कि 1918 के स्पैनिश फ़्लू महामारी के दौरान, डॉक्टर भी इसे एक औषधीय उपाय के रूप में सुझाते थे. यह सब कुछ एक ऐसे पौधे से शुरू हुआ, जिसे ब्लू एगेव कहते है और इसकी कहानी जालिस्को की लाल मिट्टी में पनपी है. तो चलिए टकीला के इस ख़ास सफर पर एक नज़र डालते है, जो सिर्फ़ एक पेय से कहीं ज्यादा हैं. क्या आप जानते है कि दुनिया भर के शराब प्रेमियों के दिल पर राज करने वाली टकीला की असली कहानी ज्वालामुखी की आग और मिट्टी से जुड़ी हैं? यह सिर्फ एक ड्रिंक नहीं, बल्कि मेक्सिको की धड़कन हैं.
कौन-से पौधे से बनता है टकीला?
टकीला बनाने के लिए जिस ब्लू एगेव पौधे का इस्तेमाल होता है, वह ज्वालामुखी की सिलिकेट से भरपूर लाल मिट्टी में पनपता हैं. इस पौधे से निकला गूदा सदियों से खास माना जाता हैं. एज्टेक सभ्यता के लोग 250 ईसा पूर्व से इसका खट्टा और फर्मेंटेड पेय धार्मिक समारोहों में इस्तेमाल करते थे. तब इसे एक पवित्र पेय का दर्जा हासिल था. 16वीं सदी आते-आते मेक्सिको के जलिस्को राज्य के ‘टकीला’ शहर में इसका असली डिस्टिल्ड रूप तैयार किया गया और यहीं से यह पूरी दुनिया तक पहुंचा. इसी वजह से टकीला का होमटाउन जलिस्को को कहा जाता हैं.
कितना प्रतिशत अल्कोहल रहता है मौजूद?
आज यह स्ट्रांग ड्रिंक, जिसमें 40 से 50 फीसदी तक अल्कोहल मौजूद होता है, दुनियाभर के शराब प्रेमियों की पहली पसंद बन चुकी हैं. दिलचस्प बात यह भी है कि 1918 में फैले स्पैनिश फ्लू के दौरान डॉक्टर इसे एक तरह की दवा की तरह सुझाते थे. उनका मानना था कि नमक और नींबू के साथ टकीला फ्लू के लक्षणों को कम कर सकती हैं. हर साल 300 मिलियन से ज्यादा ब्लू एगेव पौधे सिर्फ टकीला बनाने के लिए काटे जाते हैं. मेक्सिको की शान कही जाने वाली यह ड्रिंक आज भी लोगों को अपने अनोखे स्वाद और संस्कृति से दीवाना बना रही हैं.