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  • शिवचरण मांझी कैसे बने गुरूजी, जानिए गुरू जी की अनसुनी कहानी
  • शिवचरण मांझी कैसे बने गुरूजी, जानिए गुरू जी की अनसुनी कहानी
झारखंड


शिवचरण मांझी कैसे बने गुरूजी, जानिए गुरू जी की अनसुनी कहानी

शिवचरण मांझी कैसे बने गुरूजी, जानिए गुरू जी की अनसुनी कहानी
न्यूज़11 भारत
रांची/डेस्क: दिशोम गुरू शिबू सोरेन झारखंड निर्माता थे और वे झारखंड के दिग्गज नेताओं में से एक थे. उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को को रामगढ के नेमरा गांव में हुआ था. उनके बचपन का नाम शिवचरण मांझी था. उनके पिता सोबरन सोरेन एक शिक्षक थे, महाजनों ने उनके पिता की हत्या कर दी थी. उनके पिता के हत्या के बाद शिबू सोरेन पढाई छोड़कर गांव वापस आ गए. उन्होंने आदिवासी समाज को एकजुट करना शुरू कर दिया था. इसके बाद उन्होंने 1970 की दशक में राजनीती में कदम रखा और आदिवासियों के हक़ के लिए लड़ाई शुरू कर दी. 
 
1973 में झामुमो की स्थापना की
4 फरवरी 1973 को दिशोम गुरू ने विनोद बिहारी महतो और एके रे के साथ मिलकर झामुमो (झारखंड मुक्ति मोर्चा ) स्थापना की, जिसने झारखंड राज्य को एक आन्दोलन को गति दी. झामुमो और आजसू के आंदोलन के परिणामस्वरूप 15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग होकर झारखंड  राज्य का गठन हुआ. झारखंड आंदोलन का जनक गुरू जी को माना जाता हैं. उनके योगदान को पुरे देश में सम्मान की नजर से देखा जाता हैं. संथाल समुदाय ने उन्हें 'दिशोम गुरु' यानी 'दसों दिशाओं का गुरु' का खिताब दिया, जिसके बाद यह खिताब उनके नाम के सतह जुड़ गया.
 
लोगों की ओर से  शिबू सोरेन को गुरूजी का नाम मिला
झामुमो सुप्रीमो को उनके समर्थक प्यार से उन्हें 'गुरूजी' कहते थे. उन्होंने महाजनों और सूदखोरों के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट किया. घनकटनी आंदोलन जैसे अभियानों के जरिए सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी. जनता के प्रति समर्पण, उनकी सादगी ने उन्हें झारखंड की राजनीती में झारखंड के लोगों के दिल में एक विशेष स्थान बनाया. JMM झारखंड राज्य की सियासत में शिबू सोरेन की वजह से ही मजबूत ताकत के रूप में उभरी हैं. 
 
चिड़िया की मौत ने बदल दी गुरू जी की राह 
बता दें कि शिबू सोरेन का बचपन सामान्य नहीं था, जबकि एक घटना ने उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया. 1953 में दशहरे के दिन उनके पिता सोबरन सोरेन घर में मोर का पंख निकल रहे थे, उसी वक्त एक पालतू चिड़िया उनके पैर में बार-बार चोंच मारने लगी. परेशान होकर सोबरन सोरेन ने बंदूक की नोक से चिड़िया को हटाने की कोशिश की, लेकिन गलती से चिड़िया की मौत हो गई. उस वक्त शिबू सोरेन महज नौ साल के थे. यह छोटा सा हादसा गुरूजी के मन पर गहरा असर छोड़ गई. उन्होंने चिड़िया के लिए बांस की खटिया बनाई, इसके बाद कफ़न की व्यवस्था की और उस चिड़िया का अंतिम संस्कार किया. इस घटना के बाद से शिबू सोरेन ने मांस-मछली छोड़ दी और पूरी तरह शाकाहारी बन गए, उन्होंने अहिंसा को अपने जीवन का मूलमंत्र बना लिया. 
 
बता दें कि 81 साल की उम्र में शिबू सोरेन का निधन हुआ. दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में वो कई दिनों से उनका इलाज चल रहा था जिसके बाद आज उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. गुरूजी के निधन के बाद झारखंड में और आदिवासी समाज में शोक की लहर हैं.
 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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