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रांची/डेस्क: गुजरात हाईकोर्ट ने मुसलमानों के तलाक को लेकर एक बड़ा फैसला दिया हैं. हाईकोर्ट ने कहा कि मुस्लिम विवाह को 'मुबारत' मतलब आपसी सहमति से तलाक के माध्यम से खत्म किया जा सकता है और इसके लिए किसी लिखित सहमती की जरुरत नहीं होती.
जानकारी के अनुसार, जस्टिस ए.वाई. कोगजे और जस्टिस एन.एस. संजय गौड़ा की डिविजन बेंच ने विवाह विच्छेद की प्रक्रिया पर कुरान और हदीसा का हवाला देते हुए राजकोट की एक फैमली कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें एक मुस्लिम जोड़े द्वारा दायर उस मुकदमे में मुबारत द्वारा विवाह विच्छेद की मांग की गई थी.
फैमिली कोर्ट ने खारिज की मांग
फैमिली कोर्ट ने यह माना था कि फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 7 के तहत यह मुकदमा विचारणीय नहीं हैं क्योंकि तलाक के लिए आपसी सहमती से कोई लिखित समझौता नहीं था. वैवाहिक कलह के कारण परिवार जनों ने अलग होने का फैसला किया था. हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के इस फैसले में भी खामी पाई कि तलाक के लिए लिखित समझौता जरुरी है "क्योंकि यह कुरान हदीस या मुसलमानों में पर्सनल लॉ के तहत अपनाई जाने वाली प्रथा की किसी भी आयत से मेल नहीं खाता हैं."