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रांची/डेस्क: देश में संवेदनशील मुद्दों पर चल रहे एक तरह के 'आन्दोलन बीच खबर है कि दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने अपने सिलेबस के चैप्टर्स से कुछ विषयों को बाहर कर दिया है. इन विषयों को संवेदनशील मानते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय ने यह कदम उठाया है. जिन विषयों को लेकर डीयू ने कदम उठाया है, उनमें हिंदू राष्ट्रवाद, इस्लाम का उदय जैसे विषय शामिल है. विश्वविद्याल ने कुछ और विषयों के साथ भी ऐसा ही किया है, लेकिन एक खबर झारखंड से भी जुड़ी हुई है. हालांकि यह खबर अभी स्पष्ट नहीं पायी है कि क्या उसने वाकई में ऐसा किया है, लेकिन खबर है कि आदिवासी आन्दोलन के विषय को या इस विषय के कुछ खंडों को भी सिलेबस से हटा दिया है. अगर वाकई में डीयू ने ऐसा किाया है तो यह झारखंड के लिए एक बड़ा झटका होगा.
अपने आन्दोलन और आन्दोलनकारियों पर झारखंड गर्व करता है. बिरसा मुंडा, सिद्धू-कानो, चांद-भैरव, खड़िया मुंडा, इसके अलावा अंग्रेजों के खिलाफ चलाये गये कई आन्दोलन हमेशा से राज्य के लिए गर्व का विषय रहे हैं. जहां तक विवाद की बात है तो, झारखंड के वीर सपूतों और आन्दोलनों में कोई विवाद जैसी बात ही नहीं है. अभी हाल में हूल दिवस भी मनाया गया. हूल दिवस को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम भी माना जाता है. ऐसे कई आन्दोलन और ज्ञात-अज्ञात वीर सपूत हैं जिन्होंने देश की स्वतंत्रता में अपना बहुमूल्य योगदान किया है.
अगर यह खबर वाकई सही है तो यह पता करना भी जरूरी है कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने किस खंड को विवादित माना है और क्यों माना है. जैसा कि कहा जा सकता है कि झारखंड ही नहीं, देश भर के आदिवासी आन्दोलनों में ऐसा कुछ भी विवादास्पद नहीं होगा. इसलिए झारखंड सरकार को इसका पता लगाकर उस अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की जानी चाहिए और उसका विरोध भी करना चाहिए. आखिर यह झारखंड और आदिवासियों की अस्मिता का प्रश्न है.
बता दें कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने स्नातकोत्तर के राजनीति विज्ञान और इतिहास के पाठ्यक्रम से हिंदू राष्ट्रवाद, धर्मांतरण "नर्मदा बचाओ आंदोलन" और आदिवासी समुदायों का "हिंदूकरण", "आदिवासी आंदोलन" अपने सिलेबस से हटा दिया है.
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