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झारखंड


खूंटी के घुन्सुली पंचायत के गुनी गांव को बेस्ट कैटेगरी विलेज में मिला तीसरा स्थान

खूंटी के घुन्सुली पंचायत के गुनी गांव को बेस्ट कैटेगरी विलेज में मिला तीसरा स्थान

न्यूज11 भारत


रांची: झारखण्ड के खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड में घुन्सुली पंचायत का गुनी गांव को बेस्ट कैटेगरी विलेज में तीसरा स्थान मिला है. यह प्रतियोगिता पूर्वी भारत के बेहतर गांवों के लिए आयोजित हो रही है. गांव में कुल 70 घर हैं. 400 की आबादीवाला गांव अब स्वावलंबी गांव बन गया है. पहले यहां  उजड़े जंगल, शराब और नशेड़ियों का अड्डा था. आदिवासी बाहुल्य इस गांव में मुंडा की आबादी अधिक है. यहां पहले लोगों की दिनचर्या शराब से शुरू होती थी.  महिलाएं घरेलु हिंसा का शिकार थी.  छोटे बच्चे और युवा भी दिन भर शराब का सेवन करते रहते थे. पर्व-त्योहार में तो लोग 15-15 दिन तक नशे में ही डूबे रहते थे. जंगलों से लकड़ी काटना और उसे बाजार में बेचकर आधे पैसे शराब में गंवाना और आधे पैसे से परिवार के जीवन व्यापन करना ही इनकी नियति बन चुकी थी. दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति से महिलाओं ने अन्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिए उदाहरण पेश किया है. खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड की घुन्सुली पंचायत के गुनी गांव के लोक प्रेरक दीदियों और ग्रामीणों ने इसे चरितार्थ कर दिखाया है. लोग प्रेरक दीदीयों ने दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना की कल्पना को धरातल पर लाने का काम किया. स्वच्छ्ता से इसकी शुरुआत हुई. साफ सफाई को लेकर स्वच्छता सेनानी हाथों में झाड़ू लेकर सुबह निकलते हैं अपने गांव को स्वच्छ और सुंदर बनाने. सुबह उठते ही गांव की महिलाएं सबसे पहले अपनी सड़कों की सफाई और गली चौराहे पर उगी गंदी झाड़ियों की कटाई कर गांव की गलियों को स्वच्छ और सुंदर बनाती हैं. झाड़ू करने के बाद इकट्ठा हुए कूड़े को सही जगह ठिकाने लगाने के लिए गांव वासियों ने बांस से बने कूड़ेदान को जगह जगह लगाया गया है. सफाई को ले कर सजग गांव वालो ने  शौचालय के इस्तेमाल से लेकर खाने से पहले हाथ धोना एवं साफ सफाई से रहना जैसी तमाम अच्छी आदतें इस गांव के बड़े-बुजूर्ग को दी है. गांव को स्वच्छ रखने के साथ-साथ पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए गांव के सड़को के किनारे वृक्ष लगाये गये हैं. अब यह गांव नशा मुक्त गांव की श्रेणी में भी आता है. लोगों ने नशा करना छोड़ ही दिया है. इस गांव में प्रत्येक वृहस्पतिवार को ग्रामसभा बुलाई जाती है. इसकी शुरुआत दीनदयाल ग्राम स्वालंबन योजना के तहत सरकार द्वारा खूंटी के 760 गांव में ग्राम वासियों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से की गई थी, जो आज इस गांव के विकास की आधारशिला बन गई है. तमाम बड़े फैसले गांव वासियों द्वारा ही लिए जाते हैं. किसी सरकारी योजना के उपयोग से गांव की विकास की गति तेज करने की हो या श्रमदान के माध्यम से बड़ी से बड़ी परेशानियों का समाधान खोजने की. 


महिला सशक्तिकरण और महिला सभा के लिए गांव प्रसिद्ध हो गया है. इस आत्मनिभर्र गांव के विकास में महिलाओं की भागीदारी बराबर की रहे यह सुनिश्चित करने हेतु यहां की महिलाओं द्वारा महिला सभा का आयोजन किया जाता है. यह बैठक दीदी मीटिंग के नाम से प्रसिद्ध है. मीटिंग के द्वारा ग्राम की महिलाओं का आत्मविश्वास और बढ़ाने का कार्य किया जाता है, नतीजतन आज ग्राम की हर एक महिला अपने विचारों को सभी के सामने रखने तथा अपने और समाज के लिए फैसले लेने में सक्षम है. साक्षरता की और कदम बढ़ाते हुए आज गांव की लगभग सभी महिलाएं दस्तावेजों पर अंगूठा लगाना छोड़ हस्ताक्षर करना सीख गई है.


अपने गांव को पूर्णतः साक्षर बनाने हेतु केवल महिलाओं की ही नहीं बल्कि गांव के बच्चों के पढ़ाई लिखाई पर भी विशेष ध्यान दिया है. कोरोना जैसी वैश्विक आपदा के इस दौर ने जब सारे स्कूल और कॉलेजों के दरवाजे पर ताले लटके थे तब इस ग्राम के कुछ युवा आगे आए और अपने गांव के बच्चों के भविष्य को अंधकार में जाने से बचाने का निर्णय लिया.  गावं में ही बच्चों की क्लास शुरू की गई. इस सराहनीय कदम के कारण आज गांव के हर बच्चे को अपने हिस्से की संपूर्ण शिक्षा प्राप्त हो रही है.


स्वावलंबी राह के लिए चुना पशुपालन औऱ खेती का मार्ग


आर्थिक रूप से स्वालंबी होने के  लिए ग्रामवासियों ने पशुपालन तथा खेती के मार्ग को चुना.  ग्रामीणों ने बत्तख और मधुमक्खी पालन जैसे नए क्षेत्रों का उपयोग करना शुरू किया है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ करने के लिए  नीलाम्बर-पीताम्बर जल समृद्धि योजना, बिरसा हरित ग्राम योजना आदि की शुरुआत की गयी . मनरेगा के तहत संचालित इन योजनाओं का उद्देश्य जल का संचय कर भूमि के जल स्तर में बढ़ोतरी कराना, मिट्टी के कटाव को कम करना, खेती की सिंचाई के लिए उपयुक्त पानी को संग्रह कर रखना शामिल है. इन योजना का लाभ और खुद गांव वालों के श्रमदान की बदौलत इस गांव ने हांसिल की. ग्रामीणों ने 300 एकड़ में की धान की खेती की. खेती योग्य जमीन में मेड़बन्दी और ट्रेंच सह बंड का कार्य किया, परिणाम स्वरूप इन्होंने अपने बंजर पड़े खेतो मंा वर्षा के पानी को रोका गया. जेएसएलपीएस की मदद से लगभग 24 एकड़ में लेमन ग्रास की खेती की भी शुरुआत की गई. ग्रामीण मडुआ की खेती तथा आम पर भी जोर दे रहे है.

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