अमित दत्ता/न्यूज11 भारत
बुंडू/डेस्कः- रांची जिले का सोनाहातु इलाका आज हरियाली के नाम पर बस यादें समेटे खड़ा है. मशीनों के दौर में जहाँ एक नया पौधा भी मुश्किल से पनपता है, वहाँ सालों से खड़े पेड़ अब माफियाओं की नजर में हैं. चंद रुपयों का लालच देकर भोले-भाले किसानों से हरे पेड़ों की कटाई करवाई जा रही है, और किसान खुद अपने भविष्य को कुल्हाड़ी मार रहे हैं.
पेड़ कट रहे हैं, ज़मीन सूख रही है. भूजल नीचे गिरता जा रहा है, तापमान ऊपर चढ़ता जा रहा है. बारिश भी अब मानो रास्ता भूल गई हो. ग्लोबल वार्मिंग पर दुनियाभर में भाषण हो रहे हैं, मीडिया बार-बार चेतावनी दे रहा है — लेकिन सोनाहातु में नजारा कुछ और ही है.
कार्रवाई के नाम पर बस खानापूर्ति होती है. कुछ आरा मशीनें सील कर दी जाती हैं, कुछ ट्रकों पर जुर्माना लगता है, फिर कुछ दिनों बाद वही खेल फिर से शुरू हो जाता है.
कैसे चलता है रात का खेल?
सोनाहातु में रात 8:30 बजते ही ट्रैक्टर, पिकअप, ट्रक और ट्रॉलियां भरने लगती हैं.
हरी-हरी लकड़ी को लादकर इन्हें चुपचाप बंगाल बॉर्डर के पतराटोली इलाके की आरा मशीनों पर उतारा जाता है.
पूरी रात लाखों की लकड़ी का कारोबार चलता है और सुबह होते-होते इलाके में फिर वही सन्नाटा पसरा होता है, जैसे कुछ हुआ ही न हो.
कई बार उठी आवाज, फिर भी ढाक के तीन पात
इलाके के लोगों ने प्रशासन और वन विभाग से न जाने कितनी बार गुहार लगाई, पर सुनवाई न के बराबर. कुछ दिन के लिए हलचल होती है, फिर हालात जस के तस हो जाते हैं.
सवाल उठता है —
क्या प्रशासन भी इस हरियाली की लूट का मूकदर्शक बन बैठा है?
या फिर कुछ मुट्ठीभर लोगों की मिलीभगत से सोनाहातु का हरियाली भूतकाल की कहानी बन जाएगी?