प्रमोद कुमार/न्यूज़11 भारत
लातेहार/डेस्क: भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है, जो सालाना 11 अरब से अधिक यात्रियों और 1.4 अरब टन से ज्यादा माल का परिवहन करता है. एशिया का दूसरा सबसे बड़ा यह रेल नेटवर्क भारत की आर्थिक रफ्तार का आधार स्तंभ है. इसी नेटवर्क का एक अहम हिस्सा है धनबाद रेल मंडल, जिसने वर्ष 2024-25 में 26,000 करोड़ रुपये से अधिक राजस्व अर्जित किया और अकेले 193.91 मिलियन टन माल ढुलाई कर देश की कुल माल ढुलाई का 12% हिस्सा निभाया.
इतनी महत्वपूर्ण उपलब्धियों के बावजूद धनबाद मंडल के अंतर्गत आने वाला बरवाडीह रेलवे स्टेशन और उसकी कॉलोनी आज बदहाली का शिकार है. जहां एक ओर रेलवे राजस्व के नए-नए कीर्तिमान गढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर बरवाडीह की रेलवे कॉलोनी जंगलों, गंदगी और प्रशासनिक उपेक्षा के साए में जी रही है. बरवाडीह रेलवे कॉलोनी के चारों ओर फैली घनी झाड़ियां और असुरक्षित नालियां एक बड़े खतरे को आमंत्रण दे रही हैं. बरसात के मौसम में हालात और भी विकराल हो जाता हैं. नालियां टूटी-फूटी, चारों ओर गंदगी और झाड़ियों में पलते जहरीले जीव-जंतु. इन हालातों में कॉलोनी में रह रहे रेलवे कर्मचारियों के छोटे-छोटे बच्चे और महिलाएं सबसे ज्यादा खतरे में हैं. रेल कर्मी अपनी ड्यूटी पर निकल जाते हैं, और उनके पीछे छूट जाते हैं उनके परिवार असुरक्षा एवं बदइंतजामी के बीच. लेकिन इन जमीनी हकीकतों की परवाह ना तो वरीय अनुभाग अभियंता (कार्य) को है, ना ही रेलवे हेल्थ इंस्पेक्टर को. जिनका काम कॉलोनी की देखरेख और स्वास्थ्य व्यवस्था सुनिश्चित करना है, वे शायद रेलवे की कुर्सियों पर बैठे सिर्फ वेतन पाने और आदेश देने के लिए ही रह गए हैं. ऊपरी अधिकारी शायद सोचते हैं कि सब कुछ फाइलों में ठीक है, तो जमीन पर भी ठीक ही होगा. लेकिन हकीकत ये है कि बरवाडीह कॉलोनी में रहने वालों की जिंदगी खतरे में है और यह खतरा सिर्फ जानवरों या बीमारियों से नहीं, बल्कि रेलवे प्रशासन की उदासीनता और गैर जिम्मेदाराना रवैये से है. बरवाडीह स्टेशन, जो धनबाद मंडल की संपत्ति है और जहां से भारी मात्रा में माल ढुलाई होती है, उसकी कॉलोनी की हालत शर्मनाक है. करोड़ों के राजस्व का हिस्सा बनने वाला यह इलाका आज विकास से कोसों दूर है.
क्या यही है 'विकसित भारत' का सपना?
क्या रेलवे सिर्फ राजस्व की मशीन बनकर रह जाएगा, और उसके कर्मचारी सिर्फ आंकड़ों में दर्ज नाम?रेलवे के आला अधिकारियों को चाहिए कि वे सिर्फ रिपोर्टों और कुर्सियों से चिपके न रहें, बल्कि जमीन पर उतरें और देखें कि बरवाडीह कॉलोनी में किस कदर उपेक्षा ने जड़ें जमा ली हैं. वक़्त आ गया है कि रेलवे अपने कर्मचारियों और उनके परिवारों की सुरक्षा और जीवन गुणवत्ता को प्राथमिकता दे.
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