गौरव पाल/न्यूज़11 भारत
बहरागोड़ा/डेस्क: भूतिया पंचायत अंतर्गत जुगिसोल में संचालित अंजनिया बंबू प्लांट का सोमवार को जिला उपायुक्त कर्ण सत्यार्थी ने औचक निरीक्षण किया. महिलाओं ने पारंपरिक रीति से उनका स्वागत किया और पत्तों से बनी टोपी पहनाकर अभिनंदन किया. लेकिन प्लांट की आंतरिक स्थिति और प्रशिक्षण की गुणवत्ता पर डीसी ने गहरी नाराजगी जताई.
डीसी ने प्लांट के भीतर काम कर रही महिलाओं से विस्तार से बातचीत की. पद्मावती कालिंदी और मोगली कालिंदी समेत कई महिलाओं ने बताया कि उन्हें प्रतिदिन 150 रुपये मेहनताना और एक बार भोजन मिलता है. उन्होंने बताया कि बांस से संबंधित उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण जारी है, लेकिन उसकी गुणवत्ता, बाज़ारिकरण और दीर्घकालिक दृष्टि स्पष्ट नहीं है.
प्रशिक्षण और प्रबंधन पर उठे सवाल
निरीक्षण के दौरान डीसी ने प्लांट प्रबंधक अशोक कुमार से कई सवाल किए, लेकिन वे अधिकांश सवालों का संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके. डीसी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि केवल खानापूर्ति नहीं, बल्कि कुशल और उद्देश्यपूर्ण प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिससे महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें. उन्होंने सुझाव दिया कि प्लांट में वॉटर बॉटल, पेन स्टैंड, मोमेंटो जैसे ऐसे उत्पाद तैयार कराए जाएं जिनकी बाजार में वास्तविक मांग हो, और जिनकी बिक्री से महिलाओं की आमदनी भी सुनिश्चित की जा सके.
योजनाओं की शिकायतें और डीसी की पहल
मौके पर मौजूद महिलाओं ने मैया सम्मान योजना और मनरेगा के तहत समय पर भुगतान न मिलने की शिकायत की. डीसी ने बैंक खाता और आधार अपडेट कराने की सलाह देते हुए भरोसा दिलाया कि लाभुकों को जल्द जोड़ा जाएगा. हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि नए लाभुकों को जोड़ने की प्रक्रिया में 2–3 महीने लग सकते हैं.
मानुषमुड़िया बंबू प्लांट – पुनः संचालन की ओर उम्मीद
निरीक्षण के दौरान डीसी ने बताया कि भूतिया पंचायत के समान ही मानुषमुड़िया बंबू प्लांट को दोबारा शुरू करने की दिशा में प्रयास तेज़ किए जाएंगे. उन्होंने कहा कि “यहां के लोग पहले से बांस परंपरा से परिचित हैं, अगर उन्हें संगठित किया गया तो कोऑपरेटिव मॉडल के ज़रिए उत्पाद बाज़ार तक पहुंच सकते हैं.”
2005 में बनी थी प्लांट, अब पुनर्जीवन की आस
गौरतलब है कि मानुषमुड़िया बंबू सीजनिंग प्लांट की स्थापना वर्ष 2005 में वन विभाग और झारक्राफ्ट के सहयोग से की गई थी. असम से विशेषज्ञ बुलाकर ग्रामीणों को बांस से फर्नीचर और सजावटी सामान बनाने का प्रशिक्षण दिया गया था. लेकिन उत्पादों की बिक्री व्यवस्था विफल रहने और सरकारी नीतियों के अभाव में यह प्लांट धीरे-धीरे बंद हो गया.
31 जुलाई 2019 को इसका संचालन ईएसएएफ को सौंपा गया, लेकिन कुछ महीनों के अंदर ही संचालन रुक गया. आज भी कई प्रशिक्षित कारीगर बेरोजगार हैं और प्लांट वर्षों से बंद पड़ा है. अब डीसी कर्ण सत्यार्थी की पहल से क्षेत्र में उम्मीद की किरण जगी है. उन्होंने कहा कि जहां-जहां क्रिटिकल गैप हैं, उन्हें चिह्नित कर सुधारा जाएगा.
निरीक्षण के दौरान मौजूद पदाधिकारी
इस मौके पर बीडीओ केशव भारती, सीओ राजा राम मुंडा, प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. उत्पल मुर्मू, पशु चिकित्सा पदाधिकारी राजेश सिंह, कनीय अभियंता अभिजीत बेरा, और मुखिया राम मुर्मू उपस्थित थे.