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पटना/डेस्क: लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान एक बार फिर बिहार की सियासत में हलचल मचा रहे हैं. हाल ही में शाहाबाद, भोजपुर और सारण में हुई रैलियों में चिराग ने यह ऐलान कर सनसनी फैला दी कि उनकी पार्टी विधानसभा की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. उन्होंने खुद भी चुनाव लड़ने की बात दोहराई, जिससे एनडीए समर्थकों में भ्रम और बेचैनी की स्थिति बन गई है.
चिराग के बयानों से स्पष्ट नहीं है कि वे एनडीए के साथ रहेंगे या अलग राह चुनेंगे. वे बार-बार खुद को “शेर का बेटा” बताते हैं और किसी से डरने की बात को दोहराते हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं करते कि वे किसे चेतावनी दे रहे हैं.
सीट बंटवारे पर अड़ियल रुख
सूत्रों के अनुसार, चिराग जेडीयू की पुरानी सीटों पर भी दावा ठोक रहे हैं, खासकर उन 14 सीटों पर जहां 2020 में उनके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर थे. जेडीयू इससे सहमत नहीं है, जिससे NDA में अंदरूनी खींचतान तेज हो गई है. 2020 में भी सीटों को लेकर मतभेद के चलते चिराग ने एनडीए से दूरी बना ली थी और जेडीयू को भारी नुकसान पहुंचाया था.
भाजपा का समर्थन लेकिन सीमित पकड़
भले ही भाजपा ने उन्हें पशुपति पारस पर तरजीह दी हो, पर बिहार में LJP-R की राजनीतिक मौजूदगी सीमित है. सारण जैसी जगहों पर जहां उनकी पार्टी का कोई आधार नहीं, वहां भी चिराग बिहार को बदलने की हुंकार भरते हैं. 2020 में उनकी पार्टी को लगभग 5-6% वोट मिले थे, जिनके दम पर पांच सांसद चुनकर आए.
NDA में बढ़ रही बेचैनी
भाजपा और जेडीयू चिराग की बयानबाज़ी पर अब तक खामोश हैं, लेकिन एनडीए कार्यकर्ताओं और समर्थकों में असमंजस बढ़ रहा है. चिराग के बयानों से ऐसा संदेश जा रहा है कि वे खुद को सीएम पद का दावेदार मानते हैं, जबकि एनडीए में नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री के रूप में आगे रखने की सहमति है.
क्या सिर्फ दबाव की राजनीति?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चिराग की इन घोषणाओं का मकसद सीट बंटवारे में ज्यादा हिस्सेदारी पाना है, न कि वास्तव में हर सीट पर लड़ना. फिलहाल एनडीए की ओर से उनके दावों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. चिराग पासवान की तेज़तर्रार राजनीति और विरोधाभासी बयानों ने बिहार की राजनीति में फिर से हलचल मचा दी है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए उन्हें साध पाता है या उनके इरादे 2020 की तरह एक बार फिर समीकरण बिगाड़ देंगे.