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रांचीः 25 मार्च को चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लोक आस्था का महापर्व चैती छठ का शुभारंभ हो चुका है. यह पर्व एक प्राकृतिक पर्व है जिसमें डूबते सूर्य की उपासना की जाती है कहा जाता है छठी मईया की पूजा करने से संतान की आयु लंबी होती है संतान के सुख के लिए व्रत भी रखा जाता है. हिंदू धर्म में इस पर्व का खास महत्त्व है और इसे साल में दो बार मनाया जाता है पहला चैत्र में और दूसरा कार्तिक मास में इस पर्व को मनाया जाता है. लोक आस्था का महापर्व छठ मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार में उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है.पूरी श्रद्धा और विधि विधान से छठ पूजा मानते हैं भक्त.
नहाय खाय के साथ छठ पूजा शुरू
इस महापर्व के पहले दिन व्रती नहाय खाय में पवित्र नदी में स्नान करके आरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी खाकर व्रत शुरू करते है. इसके अगले दिन शाम में खरना होता है जिसमे छठ व्रती गुड़ की खीर, चावल की खीर और रोटी खाती हैं. इसके साथ ही चंद्रमा को अर्घ्य देकर 36 घंटे का निर्जला उपवास की शुरुआत होती है. इसके तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ यह लोक आस्था का महापर्व छठ समाप्त होता है.
छठ पूजा के नियम
छठ पूजा के चारों दिन व्रती जमींन पर चटाई बिछा कर सोएं. पूजा के दौरान घर के सभी सदस्य प्याज लहसुन और मांस मछली का सेवन न करें. व्रती छठ पर्व के चारों दिन नए कपड़े पहनें और पुरुष धोती पहनें. पूजा के लिए बांस से बने सूप और टोकरी का उपयोग करें. छठ पूजा में गुड़ और गेंहू के आंटे के ठेकुएं बनायें और फलों में केला और गन्ना ध्यान से रखें.
भगवान भास्कर को अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त
इस बार अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त शाम में 5:28 बजे होगा. वहीं उदयीमान भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त सुबह 5:55 बजे से रहेगा.