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रांची/डेस्क: अक्सर समाज में ये सवाल उठता है कि अगर किसी प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन पत्नी के नाम है तो क्या पति उसे अपनी मर्जी से बेच सकता हैं? यह सवाल सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि महिलाओं के अधिकार और आत्मनिर्भरता से भी जुड़ा हुआ हैं. आइए जानते है कि भारतीय कानून इस बारे में क्या कहता हैं.
पति नहीं बेच सकता पत्नी की प्रॉपर्टी बिना इजाजत
अगर किसी संपत्ति का रजिस्ट्रेशन आपकी पत्नी के नाम पर है, तो चाहे उस प्रॉपर्टी की पेमेंट पति ने ही क्यों न की हो, वह संपत्ति सिर्फ और सिर्फ पत्नी की मानी जाएगी. ऐसे में पति उस संपत्ति को बिना पत्नी की मंजूरी के कानूनी रूप से बेच ही नहीं सकता. यहां तक कि अगर प्रॉपर्टी दोनों पति-पत्नी ने मिलकर खरीदी है लेकिन नाम सिर्फ पत्नी का है, तब भी मालिकाना हक पत्नी का ही माना जाएगा और उसकी सहमति के बिना कोई सौदा मान्य नहीं होगा.
संयुक्त स्वामित्व में दोनों की सहमति जरूरी
अगर प्रॉपर्टी पति और पत्नी दोनों के नाम पर है, तो उसे बेचने के लिए दोनों की सहमति आवश्यक हैं. यहां एकतरफा निर्णय संभव नहीं हैं. दोनों का उस प्रॉपर्टी पर बराबर अधिकार होता है और कोई भी पक्ष अकेले उसे बेच नहीं सकता हैं.
नाम पति का लेकिन निवेश पत्नी का?
कई बार ऐसा होता है जब प्रॉपर्टी पति के नाम पर होती है लेकिन पैसे पत्नी ने भी लगाए होते हैं. अगर दस्तावेज में इसका कोई ज़िक्र नहीं है और महिला के पास कोई पुख्ता सबूत नहीं है, तो कानूनी रूप से दावा करना मुश्किल हो सकता हैं. हालांकि, ऐसी स्थिति में भी महिला पूरी तरह असहाय नहीं हैं.
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 देता है सुरक्षा
घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत अगर पत्नी उस घर में रह रही है और उसने किसी भी रूप में उस घर में योगदान दिया है, तो वह कोर्ट से सुरक्षा का आदेश मांग सकती हैं. इस कानून के अनुसार, भले ही घर पति के नाम पर हो, उसे "साझा निवास" माना जाएगा. अगर पति बिना पत्नी की सहमति के प्रॉपर्टी बेचने की कोशिश करता है, तो पत्नी हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सकती हैं. कोर्ट ऐसे मामलों में पति को संपत्ति बेचने से रोक सकता है और आदेश दे सकता है कि पत्नी को घर से न निकाला जाए. इसलिए महिलाओं के लिए जरूरी है कि वे संपत्ति से जुड़े मामलों में सजग रहें और अपने अधिकारों को जानें. कानून उनके साथ है, बस जरूरत है सही जानकारी और समय पर कदम उठाने की.