गौरव पाल/न्यूज 11
बहरागोड़ा/डेस्क: पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को संरक्षित और सशक्त बनाने को लेकर माझी परगना महाल बहरागोड़ा के प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार को झारखंड सरकार के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन से भेंट की। यह मुलाकात पाराणीक शास्त्री हेंब्रम के नेतृत्व में हुई, जिसमें माझी बाबा और ग्राम प्रधान की परंपरागत शासन व्यवस्था को जीवित रखने और उसे मजबूती देने पर गंभीर विचार-विमर्श हुआ।
ग्राम स्तर पर निर्णय प्रणाली के संरक्षण की मांग
बैठक के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने मंत्री को अवगत कराया कि आदिवासी समाज की पारंपरिक 'माझी परगना प्रणाली' वर्षों से गांवों में न्याय, अनुशासन और सामाजिक समरसता का कार्य कर रही है। लेकिन बदलते सामाजिक व प्रशासनिक ढांचे के कारण यह व्यवस्था कमजोर पड़ती जा रही है। ऐसे में राज्य सरकार को इस प्रणाली को संवैधानिक और विधिक संरक्षण प्रदान करना चाहिए।
शिक्षा मंत्री ने दिया आश्वासन
शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने प्रतिनिधिमंडल की बातों को गंभीरता से सुना और भरोसा दिलाया कि सरकार पारंपरिक आदिवासी स्वशासन प्रणाली को संरक्षित करने के लिए जरूरी कदम उठाएगी। उन्होंने कहा कि यह हमारी संस्कृति और पहचान का अभिन्न हिस्सा है, जिसे संरक्षित करना राज्य की नैतिक जिम्मेदारी है।
प्रतिनिधिमंडल में शामिल रहे वरिष्ठ समाजसेवी
प्रतिनिधिमंडल में बनघाघरा तरप पारगाना कुंवर लाल मांडी, बहरागोेड़ा तरप पारगाणा शुशील मुर्मू, समाजसेवी ललित मांडी, सुरेंद हांसदा, बाघराय किसकु, मनमोहन बेसरा,गोमहा मुर्मू समेत क्षेत्र के कई ग्राम प्रधान, माझी बाबा और अन्य सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे। सभी ने एक स्वर में पारंपरिक व्यवस्था को संस्थागत रूप से मान्यता देने की मांग की।
संस्कृति और परंपरा को बचाने की मुहिम
प्रतिनिधियों ने कहा कि आज के दौर में जहां ग्रामीण क्षेत्रों में बाहरी हस्तक्षेप बढ़ रहा है, वहां माझी परगना जैसी परंपराएं न केवल न्याय व्यवस्था का संचालन करती हैं, बल्कि सामाजिक एकता, पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक मूल्यों को भी जीवित रखती हैं।
सरकार से नीति निर्माण की अपेक्षा
प्रतिनिधिमंडल ने शिक्षा मंत्री से आग्रह किया कि झारखंड सरकार को इस दिशा में ठोस नीति बनाकर माझी-परगना व्यवस्था को राज्य स्तर पर वैधानिक दर्जा देना चाहिए ताकि यह परंपरा नई पीढ़ी तक सुरक्षित रूप में पहुंच सके।
यह भेंटवार्ता सिर्फ परंपरा की रक्षा की मांग नहीं थी, बल्कि आदिवासी समाज के आत्मसम्मान और अस्तित्व से जुड़ा एक प्रयास था। ग्रामीण नेतृत्व का यह कदम निश्चित रूप से झारखंड की स्थानीय स्वशासन व्यवस्था को एक नई दिशा दे सकता है।