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रांची/डेस्क: चुनाव आयोग लगातार राजनीति दलों (विपक्ष) की आलोचनाओं का शिकार बनता जा रहा है. महाराष्ट्र और हरियाणा में हुई करारी हार के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग को निशाने पर ले रखा है. वह बार-बार, लगातार चुनाव आयोग पर आरोपों की बौछार कर रहे हैं. चुनाव आयोग बार-बार दलीलें देकर उनके सारे सवालों के जवाब दे रहा है, लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस हैं कि मानते नहीं.
अब जबकि बिहार में इसी साल के अंत में बिहार विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और चुनाव आयोग ने वहां पर वोटर लिस्ट को रिव्यू करने की घोषणा भी कर दी है. चुनाव आयोग इसके लिए घर-घर जाकर वोटर लिस्ट को रिव्यू करेगा. चुनाव आयोग ने अपना मकसद भी साफ कर दिया है कि वह वोटर लिस्ट को पूरी तरह से अपडेट करना चाहता है. ताकि जो लोग अब वोटर लिस्ट का हिस्सा नहीं हैं (मृत्यु या अन्य कारणों से) उनके नाम लिस्ट से हटाये जा सकें और जो युवा 18 साल के हो चुके हैं और जिनके नाम वोटर लिस्ट में नहीं हैं उन्हें इसमें शामिल किया जा सके. इसकी चुनाव आयोग ने पूरी तैयारी भी कर ली है ताकि समय से पहले वोटर लिस्ट पूरा कर लिया जाये.
चुनाव आयोग तो अपना काम कर रहा है, लेकिन बिहार के 'बबुआ' को यह पच नहीं रहा है. चुनाव आयोग के इस नेक काम में भी उन्हें 'खेला' की बू आ रही है. उनका कहना है कि चुनाव से दो महीने पहले (हालांकि समय अभी ज्यादा है) लिस्ट तैयार करने की क्या जरूरत है. क्या चुनाव आयोग 25 दिन में लिस्ट तैयार कर लेगा. पूरे बिहार में 8 करोड़ मतदाताओं की सूची तैयार करनी है, इतने कम समय में वह यह काम कैसे करेगा.
तेजस्वी यादव की असल चिंता क्या है?
तेजस्वी यादव की असल चिंता गरीबों के नाम वोटर लिस्ट से हटने को लेकर है. शायद तेजस्वी यादव यह मान रहे हैं कि पूरे बिहार के सारे गरीब राजद के मतदाता है. उनको भय है कि गरीबों के पास तो दस्तावेज होते नहीं है, दस्तावेज पेश नहीं कर पायेंगे तो उनके नाम वोटर लिस्ट से हट जायेंगे. उन्होंने चुनाव आयोग ही नहीं, बल्कि पीएम मोदी पर भी हमला बोला है. उनका कहना है कि मोदी बिहार चुनाव में डरे हुए हैं. वह गरीबों के नाम वोटर लिस्ट से हटाकर चुनाव जीतना चाहते हैं.
हालांकि यह भय सिर्फ राजद का ही नहीं है, इसमें बिहार की कांग्रेस पार्टी भी शामिल है. वह भी कह रही है कि भाजपा सरकार अपनी मिशनरी का इस्तेमाल कर वोटर लिस्ट में हेरफेर कराना चाह रही है.
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