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सतगावां प्रखंड में गोबर शिल्प के जरिए महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर, दूध देने से वंचित हो चुके गोवंश को संरक्षण देना उद्देश्य

सतगावां प्रखंड में गोबर शिल्प के जरिए महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर, दूध देने से वंचित हो चुके गोवंश को संरक्षण देना उद्देश्य
आर्यन श्रीवास्तव/न्यूज़11 भारत 
कोडरमा/डेस्क: दूध देने से वंचित हो चुके गोवंश के संरक्षण के उद्देश्यों को पूरा करने के उद्देश्य से कोडरमा के सतगावां प्रखंड में गोबर शिल्प के जरिए महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं. गोबर शिल्प से तैयार किए गए उत्पाद धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूरी तरह से शुद्ध तो है ही साथ-साथ इको फ्रेंडली भी है. 
 
कोडरमा के सतगावां के भखरा स्थित इसी पहलवान आश्रम में राष्ट्रीय झारखंड सेवा संस्थान के बैनर तले इन दिनों बड़े पैमाने पर पूरी तरह से शुद्ध और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गाय का गोबर और लकड़ियों के बुरादे से दीपक, कप और धूप अगरबत्ती का निर्माण किया जा रहा है. इसकी बाजार में अच्छी-खासी डिमांड भी है. कप और धूप अगरबत्ती के निर्माण से लेकर पैकेजिंग तक की जिम्मेदारी यहां की महिलाएं भी बखूबी संभाल रही है. राष्ट्रीय झारखंड सेवा संस्थान के द्वारा इन महिलाओं को प्रशिक्षण के बाद यहीं पर रोजगार भी उपलब्ध कराया जा रहा है. 
संस्थान के सचिव मनोज दांगी ने बताया है कि अमूमन जो गाय दूध देना बंद कर दे या बुजुर्ग अवस्था में पहुंच जाए, स्वार्थवश ऐसे गोवंश को लोग अपनों से दूर कर देते थे. कई बार चंद पैसों के लिए ऐसे गोवंश को लोग कसाईखाने तक भेज देते थे. ऐसे में उनके द्वारा शुरू किया गया यह प्रोजेक्ट ऐसे गौवंश के संरक्षण की दिशा में कारगर कदम साबित हो सकता है. 
 
संस्थान की टीम जब गुजरात से गोबर क्राफ्ट की ट्रेनिंग लेकर लौटी थी तो सतगांवा स्थित संस्थान के कार्यालय में छोटे पैमाने पर उत्पाद तैयार करने की शुरूआत की गई. 15 महिलाओं को इसकी ट्रेनिंग दी गई थी. फिलहाल यहां गोबर के दीपक, कप और धूप अगरबत्ती का निर्माण किया जा रहा है. आने वाले दिनों में गोबर क्राफ्ट के तहत मोमेंटो, मूर्ति और पेंट भी तैयार करने की कार्ययोजना शुरू किया जाएगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सके और गोबर के बहाने गौवंश का संरक्षण भी हो सके. 
 
गोबर शिल्प को एक बेहतर व्यवसाय के रूप में अपनाया जा सकता है. जो आम गाय के दूध से नहीं हो सकती है, उससे कहीं ज्यादा गाय के गोबर से अन्य तरह के उत्पाद तैयार तक किया जा सकता है. इससे न सिर्फ पर्यावरण शुद्ध होगा, बल्कि बुजुर्ग गोवंश को संरक्षित भी किया जा सकता है.
 
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