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रांची/डेस्क: दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने और न्यायपालिका को अधिक उदार और समावेशी बनाने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फैसला सुनाया कि दृष्टिबाधित व्यक्तियो को न्यायाधीश बनने से नहीं रोका जा सकता है और ऐसे व्यक्तियों को न्यायिक परीक्षाओं में बैठने से रोकने वाले मध्य प्रदेश के कानून को रद्द कर दिया. इसने कहा कि विकलांगता कानूनी पेशे में उत्कृष्टता प्राप्त करने में कोई बाधा नहीं है.
बता दें कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में कहा कि दृष्टिबाधित व्यक्तियों को न्यायिक सेवाओं में रोज़गार के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता. न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने पिछले साल 3 दिसंबर को कुछ राज्यों में न्यायिक सेवाओं में ऐसे उम्मीदवारों को कोटा न दिए जाने के मामले में स्वप्रेरणा से दायर एक मामले सहित छह याचिकाओं पर फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था.
फ़ैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति महादेवन ने कहा कि न्यायिक सेवा में भर्ती के लिए दिव्यांग व्यक्तियों को किसी भी तरह के भेदभाव का सामना नहीं करना चाहिए और राज्य को समावेशी ढांचा सुनिश्चित करने के लिए उन्हें सकारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए. न्यायाधीश ने कहा, "कोई भी अप्रत्यक्ष भेदभाव जिसके परिणामस्वरूप विकलांग व्यक्तियों को बाहर रखा जाता है, चाहे वह कटऑफ के माध्यम से हो या प्रक्रियात्मक बाधाओं के कारण, मौलिक समानता को बनाए रखने के लिए उसमें हस्तक्षेप किया जाना चाहिए.
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फैसले में कहा गया कि किसी भी उम्मीदवार को केवल उसकी विकलांगता के आधार पर विचार करने से वंचित नहीं किया जा सकता. शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश सेवा परीक्षा (भर्ती और सेवा शर्तें) नियम 1994 के कुछ नियमों को भी खारिज कर दिया, जिसके तहत दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा में प्रवेश से रोका गया था.