प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: आधुनिकता के दौर में खेती के तरीके जरूर बदले हैं. हल-बैल की जगह ट्रैक्टर ने जगह ले ली है. अब खेती के लिए उन्नत बीज, खाद बाजार में उपलब्ध हैं. लेकिन कुछ परंपराएं हैं, जो आज भी कायम है. गांव-घर और खेती-किसानी करते हुए कुछ चीजों से लगाव बढ़ा है. इसमें बनगडी, पंचाठी पूजा और लोकगीत शामिल है. बनगडी, पंचाठी पूजा और लोकगीत यहां की सदियों पुरानी परंपरा है. धान रोपने से पहले गांव में सबसे पहले बनगडी की पूजा की जाती है.
इसके बाद ही किसान अपने-अपने खेतों में पंचाठी पूजा कर धान रोपने की शुरूआत करते हैं. बनगडी पूजा में गांव का नाया (पुजारी) चावल, मका, गेहूं, जौ, तिल, महुआ, दूध, पानी समेत विभिन्न प्रकार का चढ़ावा कर गांव में खेती से किसानों की संपन्नता के लिए प्रार्थना करते हैं. वहीं पंचाठी पूजा अपने-अपने खेतों में धान रोपनी की शुरूआत करने से पहले किसान पूजा करते हैं. आदिवासी समाज में बनगडी में चेंगना (छोटा मुर्गा) काटने की भी प्रथा है.
मूरकी निवासी ताली मांझी बताते हैं कि पुरखों से ही गांव में धान रोपने से पहले यह परंपरा चलते आ रहा है. धनरोपनी से पहले बनगडी और पंचाती पूजा करने से मान्यता है कि धान की उपज अधिक होती है. टाटीझरिया प्रखंड के कई ऐसे इलाके हैं, जहां पारंपरिक तरीके से खेती होती है, और धान रोपनी के गीतों की गूंज भी सुनाई देती है. धान के रोपनी के गीतों में काफी उत्साह होता है. इसमें हंसी, ठिठोली, विरह, वेदना है. इसके गीत महिलाओं के दूसरे के नजदीक भी लाती है. यह परंपरा सदियों से कायम है. ऐसी मान्यता है कि धान की रोपनी के दौरान गीत गाने से उपज अच्छी होती है. हालाकि धीरे-धीरे यह परंपरा कमजोर हो रही है और नई उम्र की लड़कियां इस गीत को नहीं सीखना चाहतीं.