प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: बरही क्षेत्र में एक प्रस्तावित स्टेडियम के निर्माण को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है. यह विवाद तब शुरू हुआ जब यह पता चला कि इस स्टेडियम के लिए चयनित स्थान पर पहले से ही एक तालाब मौजूद है. इस मुद्दे ने पर्यावरण संरक्षण और विकास के बीच संघर्ष को उजागर किया है. जहां एक तरफ सरकार और स्थानीय प्रशासन जल संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन के लिए अनेक प्रयास कर रहे हैं,
वहीं दूसरी तरफ इस तरह की घटनाएं इस दिशा में विफलता को दर्शाती हैं. बरही के पंच माधव क्षेत्र में प्रस्तावित स्टेडियम के लिए 3 करोड़ 55 लाख रुपये का विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार किया गया है. प्रारंभ में स्टेडियम के निर्माण के लिए जेल के समीप जमीन तलाश की गई थी, लेकिन अंततः पंच माधव क्षेत्र को इसके लिए चुना गया. स्टेडियम के लिए तैयार प्रारंभिक प्राक्कलन में तीन करोड़ 15 लाख रुपये की राशि का उल्लेख था. लेकिन जब अभियंता की टीम ने स्थल का दौरा किया, तो उन्हें वहां एक तालाब मिला जो गर्मी के दिनों में भी जल से परिपूर्ण रहता है.
इस तालाब को भरने के लिए प्राक्कलन में 40 लाख रुपये की अतिरिक्त राशि जोड़ दी गई, जिससे कुल डीपीआर 3 करोड़ 55 लाख रुपये का हो गया. स्थानीय नागरिकों और पर्यावरणविदों के अनुसार, तालाब को भरकर स्टेडियम बनाना जलस्रोतों की अवहेलना करने के बराबर है. यह तालाब न केवल जल संरक्षण में मदद करता है, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र का भी हिस्सा है. तालाब का भरना न केवल जल संकट को बढ़ावा देगा बल्कि इससे स्थानीय वन्यजीवों और जीव-जंतुओं पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
हालांकि कुछ ग्रामीण इस योजना का विरोध कर रहे हैं, लेकिन जिला उपाध्यक्ष और स्थानीय विधायक के समर्थन के चलते वे खुलकर सामने नहीं आ पा रहे हैं. जिला परिषद सदस्य मंजू देवी ने बताया कि उन्होंने उपायुक्त सहित अन्य संबंधित अधिकारियों को इस मामले पर पत्र लिखा है. उनका कहना है कि यह तालाब छोटा है और गर्मी में सूख जाता है, इसलिए युवाओं के भविष्य के लिए स्टेडियम का निर्माण आवश्यक है. उन्होंने यह भी कहा कि यदि किसी को आपत्ति है तो स्थल की पुनः जांच की जा सकती है.
इस मामले ने विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है. जहां एक ओर युवा पीढ़ी के लिए खेल सुविधाओं का विकास जरूरी है, वहीं दूसरी ओर जलस्रोतों का संरक्षण भी अत्यावश्यक है. हजारीबाग का यह मामला न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गया है. यह स्पष्ट है कि विकास की योजनाओं को बनाते समय पर्यावरणीय पहलुओं की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए.
अब यह देखना होगा कि जिला प्रशासन इस विवाद को कैसे सुलझाता है और क्या कदम उठाता है जिससे विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बना रहे. इस मामले का समाधान एक उदाहरण बन सकता है कि कैसे विकास और पर्यावरण संरक्षण को एक साथ चलाया जा सकता है, ताकि वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं के बीच एक समग्र दृष्टिकोण स्थापित हो सके.