झारखंड » हजारीबागPosted at: जून 02, 2024 हजारीबाग के पर्यटक स्थल: कनहरी पहाड़ खुद में एक इतिहास को संजोए हुए है, कभी इस पहाड़ की चोटी से निकलती अजान से उठता था शहर
यह सिर्फ एक पहाड़ नही, बल्कि धरोहर भी है, बंगाल प्रेसीडेंसी की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी हजारीबाग

प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: हजारीबाग का गौरव और महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में अपनी पहचान बना चुके कनहरी पहाड़ का इतिहास बहुत पुराना रहा है. ये पहाड़ यहां के लोगो के लिए पहाड़ नहीं बल्कि एक विरासत एक अमूल्य धरोहर है. तीरनूमा आकार की इस पहाड़ी का नाम लार्ड कैनरी के नाम पर ही इसका नाम कैनरी पड़ा जो अंपभ्रशित होकर कनहरी बोला जाने लगा. स्थानीय लोग बताते हैं कि 16 वीं सदी में जब अकबर के सैनिक शाहबाज खां के कदम हजारीबाग में पड़े, तब वो यही का होकर रह गया. उस जमाने में पंडित जी रोड के पास स्थित पीर मजार पर जलते दीए को देखकर ही कनहरी से अजान पढ़ें जाते थे. उस वक्त कितनी बुलंद आवाज होगी उस शख्सियत की जिसके अजान की आवाज से पूरा हजारीबाग जगता था.
कालातंर में अकबर की मृत्यु के पश्चात धीरे-धीरे अंग्रेजों का विस्तार होना प्रारंभ हुआ और बंगाल प्रेसीडेंसी की ग्रीष्मकालीन राजधानी हजारीबाग ही हुआ करती थी. ये बात 1839-40 की है, उस वक्त अंग्रेज शिकार खेलने कनहरी पहाड़ जाया करते थे और अंग्रेजों की नजर जब पंडिजी रोड के दिये को देखकर अजान पढ़ने की बात पता चली तब उन्होंने ठीक मजार के सामने टेनिस कोर्ट के नाम पर 40 फीट की दो दीवार खडी कर दी थी. जहां पर अंग्रेज लोग टेनिस खेला करते थे. ये दीवार आज भी देख सकते है जहां आज फोरेस्ट विभाग का लकड़ी का टाल चलता है. टाल के ठीक सामने कर्जन ग्रांउड एंव उसके बाजू में ब्रदरहूड हाउस में अंग्रेजों के तमाम अधिकारी निवास करते थे तथा उसके ठीक बांए और दाएं दो सैन्य बैरक हुआ करते थे. जहां तमाम कलकत्ता प्रेंसीडेंसी के सैनिक रहा करते थे.
बांए तरफ वाले बैरक मिशन कोलेजियेट स्कूल और दांऐ वाले बैरक में पीटीसी अधिकारी के क्वार्टर बने हुए है. जो मेन पोस्ट ऑफिस के पास सटा हुआ आज भी जीर्ण शीर्ण अवस्था में खड़ा है. ये तीनों बैरक आज भी एक सीध मे बने हुऐ है. हालांकि आज कनहरी पहाड़ की सीढ़ियां जर्जर हो चुकी है.