न्यूज11 भारत
रांची/डेस्क: देश में त्योहारी सीजन जारी है. देशभर में लोगों ने कल (12 नवंबर) को बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ रोशनी का त्योहार दिवाली मनाया. गोवर्धन पूजा कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि में की जाती है. दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. जिसके बाद भाई-दूज का त्योहार मनाया जाता है. लेकिन इस बार गोवर्धन पूजा की तिथि को लेकर कन्फ्यूजन है. किसी का कहना है कि यह पूजा 13 नवंबर यानी दिवाली के अगले दिन होनी है तो कोई इसे भाई दूज वाले दिन यानी 14 नवंबर को बता रहा है. ऐसे में इस बार 13 नवंबर या 14 नवंबर को किस दिन गोवर्धन पूजा की जाएगी. बता दें, इस साल 2023 में गोवर्धन पूजा और भाई-दूज दोनों एक दिन दिवाली के तीसरे दिन यानी 14 नवंबर को मनाया जाएगा.
हिंदू धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व होता है. दिवाली के बाद मनाए जाने वाले इस त्योहार से श्रीकृष्ण की पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. इस दिन गोबर लीपकर घर के आंगन में गोवर्धन पर्वत और श्रीकृष्ण की प्रतिमा बनाई जाती है. और श्रीकृष्ण की पूजा होती है. साथ ही इस दिन अन्नकूट की भी पूजा होती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, इंद्रदेव के घमंड के चलते पूरे गांव को तूफान और बारिश का प्रकोप सहना पड़ रहा था. श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकार ब्रजवासियों को बचाया था. इसके बाद से ही हर साल गोवर्धन पूजा की जाने लगी.
गोवर्धन पूजा करने का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, इस बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 13 नवंबर दोपहर 2 बजकर 56 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 14 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 36 मिनट पर इसका समापन होगा. उदया तिथि के मुताबिक, इस साल गोवर्धन पूजा 14 नवंबर के दिन की जाएगी. गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:25 मिनट से रात 9:36 मिनट के बीच है.
भाई-दूज और तिलक का शुभ मुहूर्त
कल यानी 14 नवंबर को भाई दूज का त्योहार भी मनाया जाएगा. भाई दूज क् दिन बहनें अपनी भाई को तिलक लगाकर उनकी सलामती की दुआ मांगती हैं. शुभ मुहूर्त उदया तिथि के अनुसार, 14 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 36 मिनट से 15 नवंबर को 1 बजकर 47 मिनट तक है. इस दिन कमल की पूजा और नदी स्नान विशेष रूप से यमुना स्नान का भी विधान है.
गोवर्धन पूजा की विधि
गोवर्धन पूजा करने के लिए गोबर से गोवर्धन पर्वत और श्रीकृष्ण की प्रतिमा बना लें और फूलों से गोवर्धन पर्वत सजाएं. पूजा सामग्री में धूप, दीप, बताशे, रोली, अक्षत, खील और अन्नकूट आदि शामिल करें. इसके बाद गोवर्धन पूजा में गोवर्धन पर्वत की कथा पढ़ी जाती है और गोबर से तैयार गोवर्धन की सात बार परिक्रमा करते हुए आरती और जयकारे की जाती हैं. इस तरह गोवर्धन पूजा सम्पन्न हो जाती है.