पंकज कुमार/न्यूज 11 भारत
घाघरा/डेस्क: घाघरा प्रखंड क्षेत्र के देवाकी बाड़ोटोली गांव के लोगों की जिंदगी आजादी के 79 साल बाद भी बुनियादी सुविधाओं से जूझ रही है . आजादी के इतने वर्षों बाद भी यहां पहुंचने के लिए कोई पक्का या कच्चा संपर्क मार्ग मौजूद नहीं है . गांव तक आने जाने का रास्ता न होने से ग्रामीणों को रोजमर्रा की जिंदगी में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है . गंभीर समस्या तब उत्पन्न होती है जब कोई बीमार हो जाता है . संपर्क मार्ग के अभाव में डॉक्टर भी गांव तक जाने से कतराते हैं . ऐसी स्थिति में मजबूर ग्रामीण मरीज को कंधों पर उठाकर 2 से 3 किलोमीटर दूर मुख्य सड़क तक ले जाने के लिए विवश हो जाते हैं . कई बार समय पर इलाज न मिलने से स्थिति गंभीर हो जाती है .
गांव में शिक्षा की स्थिति भी बेहद चिंताजनक है
इस गांव में शिक्षा व्यवस्था आज भी बेहद लचर हालत में है . गांव में न तो आंगनबाड़ी केंद्र है और न ही प्राथमिक विद्यालय . ऐसे में बच्चों को प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी दूसरे गांव जाना पड़ता है . लेकिन स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब बरसात के मौसम में पास की नदी उफान पर आ जाती है . क्योंकि नदी पर पुल का निर्माण नहीं हुआ है, इसलिए बरसात के दिनों में बच्चों को स्कूल जाने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है . कई बार नदी का जल स्तर बढ़ जाने पर गांव के बच्चे पूरे 10 से 15 दिनों तक स्कूल नहीं जा पाते हैं . इससे उनकी पढ़ाई पर सीधा असर पड़ता है .

हमारा तो चलना हुआ मुश्किल आप भी एक बार आम लोगों की तरह सफर करके तो देख हुजूर - ग्रामीण
नदी में पुल नहीं होने से बरसात ग्रामीणों की जिंदगी अस्त- व्यस्त हो जाती है गांव के पास से बहने वाली नदी पर पुल न होने से बरसात के दिनों में ग्रामीणों की जिंदगी अस्त-व्यस्त हो जाती है. भारी बरसात के दौरान नदी का पानी उफान पर रहता है, जिससे ग्रामीण दूसरी ओर जाकर आवश्यक वस्तुएँ नहीं ला पाते. इस कारण ग्रामीण मजबूरी में पहले से ही 10–15 दिनों का राशन और जरूरत की वस्तुएँ खरीद कर घरों में जमा कर लेते हैं.
हालांकि, बरसात का मौसम लंबे समय तक चलता है और अक्सर इनका भंडार समय से पहले ही खत्म हो जाता है. ऐसी स्थिति में लोग गांव की छोटी-छोटी किराना दुकानों से अपनी जरूरत का सामान खरीदते हैं. लेकिन समस्या तब और गहरी हो जाती है जब इन दुकानों का सामान भी खत्म हो जाता है और नदी पार करना असंभव हो जाता है.
गांव की गालियां भी कीचड़ में तब्दील हो जाती हैं
बरसात के मौसम में गांव की गलियां भी कीचड़ में तब दिल हो जाती है. घर से बाहर निकलना ग्रामीणों के लिए बड़ी चुनौती बन जाती है. खेतों में काम करने जाना हो या मवेशियों को चराने, हर जगह कीचड़ भरे गलियों से होकर गुजरना मजबूरी हो जाता है.
बरसात के मौसम में बच्चों की मजबूरी स्कूली बच्चे शिक्षा से हो जाते हैं वंचित
गांव के बच्चे बरसात के मौसम में खुलकर खेल भी नहीं पाते हैं. गुल्ली-डंडा जैसे पारंपरिक खेलों से वंचित होकर वे घरों तक ही सीमित हो जाते हैं. कीचड़भरे वातावरण में खेलकूद की मनाही ने बच्चों की दिनचर्या और उत्साह पर भी असर डालता है.
बारिश की मौसम में संक्रामक रोग का खतरा बड़ जाता है ग्रामीण
गांव कीचड़ में डूबने से संक्रमण फैलने की आशंका भी बढ़ जाती है. जगह-जगह पानी जमा होने के कारण मच्छरों का प्रकोप बढ़ने की संभावना बनी रहती है. ग्रामीणों के स्वास्थ्य के सामने यह मौसम चुनौती बनकर खड़ा रहता है.
पुलों की कमी, राशन के लिए भी तरसते हैं ग्रामीण - लालो देवी
बाड़ो टोली गांव में एक पुल की कमी ने जाने कितनी जिंदगियां ली ली 65 वर्षीय लालो देवी की कहानी सुनकर दिल दहल जाता है उन्होंने बताया कि सालों पहले उनके पति अचानक बीमार पड़ गए भारी बारिश के कारण नदी तूफान पर थी और कोई एंबुलेंस या गाड़ी गांव तक नहीं पहुंच पाई पुल नहीं होने के कारण समय पर इलाज नहीं मिल सका और मेरे पति की मौत हो गई
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