न्यूज 11 भारत
रांची/डेस्क: बिहार में मतदाता सूची को लेकर जो विवाद चल रहा है, उस पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवााई शुरू हो गयी. बता दें कि चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची का जो पुनरीक्षण शुरू किया है, उसको लेकर विरोधी पार्टियों के तेवर कड़े हो गये हैं, क्योंकि उन्हें भय है कि चुनाव आयोग की इस प्र्किया के बहाने महागठबंधन के मतदाताओं को सूची से बाहर करने की तैयारी चल रही है, उसी का विरोध महागठबंधन में शामिल पार्टियां कर रही हैं. इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 4 याचिकाएं दायर की गयी हैं, जिस पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई है.
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने कहा कि चुनाव आयोग जिस प्रकार से मतदाता सूची सर्वे करा रहा है, वह उसका मनमाना रवैया है. आयोग तो कह रहा है कि वह गहन पुनरीक्षण कार्य कर रहा है, लेकिन उसकी पूरी प्रक्रिया 30 दिनों में ही समाप्त हो रही है. इसके अलावा याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि चुनाव आयोग ने मतदाता के दावे की प्रमाणिकता के लिए मतदाता परिचय पत्र को छोड़कर 11 दस्तावेज को ही मान रहा है. जिसके कारण बिहार में ढेरों मतदाता आयोग की सूची से बाहर हो सकते हैं.
चुनाव आयोग के खिलाफ दागे गये सवाल पर जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कड़ा सवाल किया है. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से सवाल किया कि वे साबित करें की चुनाव आयोग कैसे लगत है. चुनाव आयोग का काम संविधान के अनूरूप है. इसलिए आप ही बतायें कि आयोग क्या गलत कर रहा है.
हालांकि चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर भी सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि चुनाव के ठीक पहले इसकी क्या आवश्यकता है, साथ ही आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में क्यों नहीं मान्यता दी गयी. सुप्रीम कोर्ट का सबसे बड़ा सवाल यह था कि अगर आप नागरिकता सिद्ध करने के आधार पर मतदाता सूची बना रहे हैं तो याद रखिये, यह काम गृह मंत्रालय का है, आपका नहीं. आप इस पचड़े में मत पड़िये.
याचिकाकर्ता भी कोर्ट की बात से हुए सहमत
सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही सरल तरीके से याचिकाकर्ताओं से पूछा कि चुनाव आयोग जो गहन पुनरीक्षण कार्य कर रहा है, क्या वह नियम विरुद्ध है, क्या आपकी आपत्ति इस पर है कि मतदाता पुनरीक्षण कब किया जाना चाहिए, कब नहीं किया जाना चाहिए. या चुनाव आयोग जो कर रहा है, वह उसके अधिकार क्षेत्र में है या नहीं है.
इस पर याचिकाकर्ता पक्ष ने यह माना कि चुनाव आयोग की प्रक्रिया गलत नहीं है, लेकिन आयोग जो प्रक्रिया अपना रहा है, वह गलत है. चुनाव आयोग को चाहिए कि वह 2003 से पहले वालों का फॉर्म भरवाये. उसके बाद वालों से दस्तावेज मांगे. इसलिए चुनाव आयोग जो कर रहा है, उसका कोई आधार नहीं है, ऐसा करना कानून सम्मत नहीं है.
बिहार में चुनाव आयोग मतदाता सूची पुनरीक्षण के नाम पर कर क्या रहा है?
- मतदाताओं से चुनाव आयोग ने जन्म-तिथि प्रमाणित करने के लिए अलग-अलग दस्तावेज मांगे हैं.
- 2003 के बाद से मतदाता सूची का सर्वे नहीं किया गया है, इसलिए इसका गहन पुनरीक्षण आवश्यक है.
- जबकि विपक्ष की आशंका है कि यह गरीबों, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को मताधिकार से वंचित करने का कुचक्र है.