प्रेमचंद के बाद गांव गंवई, अंदाज़ के लेखन के बेताज बादशाह, फणीश्वर नाथ रेणु, वैसे तो बिहार के सीमांचल स्थित अररिया के रहने वाले थे. मगर हजारीबाग उनकी ससुराल थी. लिहाजा गर्मी का मौसम हजारीबाग में बिताते थे. 4 मार्च को रेणु जयंती है और दुनिया भर के हिंदी प्रेमी आज के दिन उनके द्वारा लिखी गई कहानियां और उपन्यासों पर चर्चा कर रहे हैं. सबसे ज्यादा चर्चा उनके द्वारा लिखित उपन्यास मैला आंचल को लेकर होती है जिस पर 80 के दशक में दूरदर्शन में एक धारावाहिक भी प्रसारित हो चुका है. आंचलिक लेखन को चलन में लाने का श्रेय कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु को जाता है, रेणु ने कविताएं भी लिखी और कई कहानियां भी लिखी है. सबसे ज्यादा चर्चित कहानी मारे गए गुलफाम पर तीसरी कसम नाम की एक मशहूर और अमर फिल्म बनी जिसका निर्माण गीतकार शैलेंद्र ने किया था, जिस फिल्म में मुख्य भूमिका राज कपूर और वहीदा रहमान ने निभाई थी, भारत की आंचलिक संस्कृति मेले ठेले की संस्कृति है, मेले में अक्सर थिएटर लगा करते थे.
पहले हर जगह सिनेमा घर और वीडियो पार्लर का चलन नहीं था. लोग थिएटर में अलिफ लैला और हीर रांझा लैला मजनू के पारंपरिक संगीतमय किस्सों का आनंद लिया करते थे. मारे गए गुलफाम मैं वहीदा रहमान ने हीराबाई की यादगार भूमिका अदा की है जो एक थिएटर में काम करने के लिए बनारस से अररिया जिले के गढ़ बनेली मेले आती हैं , मेले में अपने दोस्तों के साथ हीरामन बैल गाड़ी चलाते हुए पहुंचता है. रास्ते में गढ़ बनेली स्टेशन पर एक सवारी मिल जाती है पर सवारी और कोई नहीं थिएटर वाली बाई जी जिसे गढ़ बनेली स्टेशन से मेले ले जाना था. रास्ते में हीराबाई का परिचय मस्त मौला गाड़ीवान हीरामन से होता है जो ग्रामीण संस्कृति का भोला भाला नौजवान था, जिसके लबों पर नागिन गीतों की मधुरता छाई रहती है.
रास्ते में एक कजरी नदी का घाट मिलता है जहां गाड़ी वहां थोड़ी देर के लिए विश्राम करता है. वहीं हीराबाई कजरी नदी पर नहाने जाती है. हीरामन कहता है कि कुंवारियों का इस घाट पढ़ना आना प्रतिबंधित है. मतलब वह हीराबाई को कुंवारा समझ रहा है, हीराबाई उससे कली नदी का घाट और महुआ घटवा रन की दास्तान पूछती है और फिर हीरामन उसे महुआ कटवा रन का गीत बदमाश सौदागर द्वारा दौलत की ताकत के जरिए उठाकर ले जाने की कोशिश और फिर महुआ घटवा रन द्वारा नदी में कूदकर जान दे दिए जाने का मार्मिक प्रसंग सुनाता है. यह प्रसंग सजनवा बैरी हो गए हमार गीत में आज भी बेहद पसंद किया जाता है, तथा खेती फणीश्वर नाथ रेणु ने अपनी मूल कथा मारे गए गुलफाम में कहानी के प्रसंगों के साथ गीत के मुखड़े भी लिख दिए थे जिसे बाद में फिल्मी गीतों का रूप शैलेंद्र और हसरत जयपुरी ने दिया.
पंचलाइट पर कुछ साल पहले प्रेम मोदी ने भी एक फिल्म बनाई
रेणु की एक और कहानी पंचलाइट पर कुछ साल पहले प्रेम मोदी ने भी एक फिल्म बनाई है जो बहुत पॉपुलर हो रही है. मैला आंचल पर तो पहले ही एक सीरियल दूरदर्शन पर प्रसारित हो चुका है. उसी कथा से प्रीत साठ के दशक में एक और फिल्म डॉक्टर बाबू बन रही थी जिसकी शूटिंग दी पूर्णिया और अररिया जिले में कुछ दिन चली थी, जिसमें मैला आंचल के डॉक्टर की भूमिका धर्मेंद्र निभा रहे थे. यह भी एक ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म होती, मगर वह फिल्म बीच में ही डब्बा बंद हो गई कारण आज तक किसी को नहीं मालूम.
झारखंड से था रिश्ता खास
रेणु ने मैला आंचल उपन्यास के बहुत सारे अंश हजारीबाग में लिखे थे. इस तरह से झारखंड से इस महान कथा शिल्पी का एक रिश्ता बन जाता है, रेणु की अन्य कहानियां परती परीकथा पलटू बाबू रोड, जुलूस, और नेपाली क्रांति कथा पंचलाइट भी बेहद मशहूर हुए हैं, जापान जर्मनी जैसे देशों के बहुत सारे रिसर्च स्कॉलर ने , रेणु के लेखन पर शोध किया है जिसमें इयान उल्फोर्ड, अग्रणी है, रेणु जयंती पर अखबारों ने भी बहुत कुछ लिखा, मगर हजारीबाग के लेखक भरत यायावर,रेणु की आत्मकथा पिछले 40 साल से लिखने का प्रयास कर रहे हैं. समय-समय पर भारत यायावर फेसबुक पर भी रेणु आत्मकथा का कोई न कोई प्रसंग लिखते रहते हैं उनके लेखन में भी, रेणु जैसी चाशनी महसूस होती है, बेसब्री से इंतजार रहेगा भारत यायावर द्वारा रचित रेणु आत्मकथा का, जो हजारीबाग में रहते हैं यह भी एक संयोग है कि रेणु की आत्मकथा भी हजारीबाग में ही लिखी जा रही है.