अमित दत्ता/न्यूज 11 भारत
राहे/डेस्क: बारिश की हर बूंद इनके लिए राहत नहीं, आफत बनकर टपकती है. दीवारें हर दिन टूटने की धमकी देती हैं और छत इतनी कमजोर है कि कब सिर पर गिर पड़े—कोई नहीं जानता. ये कहानी झारखंड की राजधानी रांची से महज कुछ किलोमीटर दूर, राहे प्रखंड के लोवाहातु गांव के एक गरीब परिवार की है, जो अपनी सांसें भी डर-डर कर ले रहा है.
रविंद्र लोहरा और धनीराम लोहरा—दो गरीब भाई, जो अपनी पत्नियों, बच्चों और मवेशियों के साथ एक खंडहरनुमा मकान में जिंदगी गुजार रहे हैं. फर्श उखड़ा हुआ, दीवारें कच्ची और छत सड़ी हुई लकड़ियों पर टिकी है. जब तेज़ हवा चलती है, तो पूरा घर कांपने लगता है—जैसे अभी गिर पड़ेगा. बरसात में छत से टपकता पानी बच्चों की किताबों से लेकर खाने तक को भिगो देता है.
छोटे-छोटे बच्चों संग एक नरकीय जीवन
मकान के अंदर सूरज की रोशनी नहीं, बल्कि मौत की आहटें घुसती हैं. बच्चे भी अब इस डर से खेलने के बजाय हर आवाज़ पर सहम जाते हैं. किसी को नहीं पता कि अगली रात ये छत इनपर ज़िंदा गिर पड़ेगी या नहीं.
गांव वालों ने लगाई मदद की भी गुहार
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि यह मकान पिछले कई वर्षों से जर्जर है और अब किसी बड़ी दुर्घटना को न्योता दे रहा है. उन्होंने प्रशासन से कई बार गुहार लगाई, लेकिन अभी तक कोई मदद नहीं मिली. "कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है," गांववालों का कहना है.
आवास योजना सिर्फ कागज़ों तक?
सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना और अबुआ अवास योजना के नाम पर कागजों में गरीबों को पक्के मकान दिए जा रहे हैं, लेकिन लोवाहातु गांव का यह परिवार सरकारी दावों की पोल खोल रहा है. यह हकीकत है कि आज़ादी के 75 साल बाद भी कुछ लोग छत की नहीं, जिंदगी की भीख मांग रहे हैं.
अब वक्त आ गया है कि जिला प्रशासन, पंचायत और सरकार इस गंभीर मसले को गंभीरता से लें. क्या किसी मासूम की जान जाने के बाद ही कोई कार्रवाई होगी?
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