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बिहार/डेस्क: बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU), सबौर में "राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को वैश्विक मानकों तक उठाने, शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण और प्रतिभा पलायन की जगह प्रतिभा वापसी" विषय पर एक उच्चस्तरीय मंथन सत्र आयोजित किया गया. इस सत्र में सक्रिय भूमिका निभाई प्रोफेसर सुनील परीक (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योरशिप एंड मैनेजमेंट - NIFTEM ने, जिन्होंने एक ज्ञानवर्धक वक्तव्य दिया.
अपने संबोधन में प्रो. परीक ने भारत में ब्रेन ड्रेन यानि प्रतिभा पलायन की गंभीर चुनौती का विश्लेषण किया, विशेषकर अकादमिक, अनुसंधान एवं विकास (R&D) और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में. उन्होंने बताया कि भले ही भारत विश्व में सबसे अधिक STEM स्नातक तैयार करता है, परंतु वैश्विक पेटेंट में भारतीय संस्थानों की हिस्सेदारी मात्र 0.5% से भी कम है. पिछले पाँच वर्षों में विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले भारतीय छात्रों की संख्या दोगुनी हो गई है, जिनके प्रमुख गंतव्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन हैं. चिंताजनक बात यह है कि इनमें से 75% से अधिक छात्र भारत वापस नहीं लौटते.
उन्होंने इस प्रवृत्ति को पलटने की आवश्यकता पर बल देते हुए बताया कि ब्रेन ड्रेन के कारण भारत को प्रतिवर्ष लगभग 17 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान होता है. यदि मात्र 1% प्रतिभा भी लौटे, तो भारत की GDP में सालाना 2 बिलियन डॉलर की वृद्धि संभव है. उन्होंने चीन के “थाउज़ेंड टैलेंट्स प्रोग्राम” और “यंग थाउज़ेंड टैलेंट प्रोग्राम” जैसे वैश्विक सफल मॉडलों का उल्लेख करते हुए भारत में भी ऐसे कार्यक्रम अपनाने का सुझाव दिया.
प्रो. परीक ने भारत की प्रतिभा रणनीति का ठोस SWOT विश्लेषण करने की सिफारिश की और बताया कि फंडिंग की कमी, प्रशासनिक अड़चनें और अनुसंधान नीति की खंडित संरचना जैसी चुनौतियों को संबोधित करने की आवश्यकता है. उन्होंने R&D में निवेश को GDP के 2% तक बढ़ाने की बात कही तथा GIAN, VAJRA और अटल इनोवेशन मिशन के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय छात्र कार्यालय और अनुसंधान सहयोग की पहलें स्थापित करने का प्रस्ताव भी रखा.
इस आयोजन की अध्यक्षता बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह ने की. उन्होंने अपने दूरदर्शी वक्तव्य में छात्र-प्रतिधारण, प्रशासन में पारदर्शिता, अनुसंधान की स्वायत्तता और शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देने के लिए कई केस स्टडी प्रस्तुत किए. उन्होंने यह लक्ष्य रखा कि 2047 तक किसानों की वार्षिक आय ₹10–12 लाख तक पहुँचाई जाए और विश्वविद्यालय की वैश्विक रैंकिंग को शैक्षणिक उत्कृष्टता और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से बेहतर बनाया जाए. डॉ. सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा – “हमारा मिशन है कि हम BAU सबौर को एक वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त संस्थान बनाएं, जहाँ अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी, अनुसंधान की स्वतंत्रता और छात्रों एवं किसानों को समान रूप से सशक्त किया जाए। शिक्षा को सिर्फ प्रतिभा को रोकना ही नहीं, बल्कि उसे वापस लाना भी चाहिए.”
इस सत्र में डॉ. ए. के. सिंह (अनुसंधान निदेशक), डॉ. एस. के. पाठक (डीन, स्नातकोत्तर अध्ययन), विभिन्न विभागों के अध्यक्षगण, बड़ी संख्या में संकाय सदस्य एवं शोधकर्ता उपस्थित रहे. यह व्याख्यान भारतीय विश्वविद्यालयों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे लाने, साथ ही उच्च शिक्षा में समानता और उत्कृष्टता सुनिश्चित करने को लेकर एक उत्साहजनक और विचारोत्तेजक चर्चा का माध्यम बना. अंततः यह सत्र भारत की नई शिक्षा नीति (NEP 2020) की दृष्टि को वैश्विक शैक्षणिक मानकों के साथ एकीकृत करने की ठोस कार्ययोजनाओं के साथ संपन्न हुआ, ताकि भारत को उच्च शिक्षा में ‘विश्वगुरु’ बनाया जा सके.