संरक्षण, संवर्धन और प्रोत्साहन का अभाव
50 वर्षों में सुनाई नहीं देंगी कई भाषाएं
अमित सिंह/ न्यूज11 भारत
रांची : देश में बोली जाने वाली 250 भाषाएं विलुप्त हो चुकी हैं. 130 से अधिक भाषाएं विलुप्ति के कगार पर हैं, जिसमें आदिम जनजाति असुर की भाषा भी शामिल हैं. झारखंड के लातेहार, पलामू और गुमला जिले के आंतरिक इलाकों में असुर भाषा बोली जाती है. असुर, सौरिया पहाड़िया, पहाड़िया माल, परहिया, कोरबा, बिरजिया, बिरहोर और सबर जैसे आदिम जनजातियों की भाषा विलुप्ती के कगार पर है. माल्तो भाषा अब सिर्फ सौरिया पहाड़ियां जनजाती ही बोलते हैं. हर आदिवासी समूह की अपनी भाषा रही है. सरकारी संरक्षण, संवर्धन और प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण आदिवासी भाषाओं की दशा खराब हो गई है.
पीपुल्स लिंग वेस्टिंग ऑफ इंडिया के सर्वेक्षण के मुताबिक देश में बोली जाने वाली तकरीबन 800 भाषाएं हैं. इसमें से 32 जनजातीय भाषा झारखंड में बोली जाती थी जिसमें से कई जनजातीय भाषा विलुप्त हो चुकी हैं. आधी भाषाएं अगले 50 वर्षों में सुनाई नहीं देंगी. प्रदेशभर में 8 आदिम जनजातीय भाषा हैं. इसमें से सभी 8 आदिम जनजाति की भाषा विलुप्ति की कगार पर हैं. इन भाषाओं के उत्थान के लिए राज्यभर में जो शिक्षण संस्थाएं संचालित हो रहे हैं. उन शिक्षण संस्थानों में आदिम जनजातीय भाषाओं को संरक्षित करने को लेकर ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है.
विलुप्ति के कगार पर कई भाषाएं
राज्य की कुल आबादी की 27 फीसदी जनजातियों की दूसरी जनजाति की संपर्क भाषा हिंदी, बांग्ला और नागपुरी है. झारखंड के 17 जिलों में खोरठा भाषा बोली जाती है. कोल्हान प्रमंडल के 8 जिलों में नागपुरी, संथाल परगना में संथाली और ऐसे ही हर क्षेत्र में झारखंड में भाषाएं बदलती हैं. रांची के आसपास के प्रखंडों में बांग्ला से मिलता-जुलता भाषा पंच परगनिया बोली जाती है. भाषाओं को संरक्षण करने को लेकर झारखंड सरकार की ओर से फिलहाल कोई वृहद रूप से योजना नहीं बनाई गई है. आदिम जनजाति से जुड़ी भाषाएं तो विलुप्ति के कगार पर है.
कई जनजातियों के अस्तित्व पर खतरा
प्रदेश में कुछ आदिम जनजातियों को विशेष जनजाति का दर्जा मिला है जिसमें असुर, बिरहोर, बिरजिया, माल पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया, कोरवा सबर, हिल खड़िया, परहिया जनजाती शमिल हैं. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड में विशेष जनजाति की आबादी दो लाख 92 हजार थी. जिसमें सबर की आबादी मात्र तीन प्रतिशत पाई गई थी. सरकार ने इन्हें विलुप्ति से बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो इन्हें बचाना मुश्किल हो जाएगा. झारखंड में लगभग 24 जनजातियां और आठ आदिम जनजातियां हैं. इनकी भाषाओं में अंतर जरूर है, लेकिन मिलती-जुलती कई भाषाएं हैं.
जिलावार कहां कौन सी भाषा बोली जाती है
जिला जनजातीय भाषा
रांची कुडुख, खड़िया, मुंडारी
खूंटी कुडुख, खड़िया, मुंडारी
सरायकेला हो, भूमिज, मुंडारी, संताली
लातेहार कुडुख, असुर
पलामू कुडुख, असुर
गढवा कुडुख
दुमका संताली, माल्तो
जामताडा संताली
साहेबगंज संताली, माल्तो
पाकुड संताली, माल्तो
गोड्डा संताली, माल्तो
हजारीबाग संताली, कुडुख, बिरहोर
रामगढ संताली, कुडुख, बिरहोर
चतरा संताली, कुडुख, बिरहोर, मुंडारी
प.सिंहभूम हो, भूमिज, मुंडारी, कुडुख
गुमला कुडुख, खड़िया, असुर, बिरहोर
सिमडेगा खड़िया, मुंडारी, कुडुख
पू.सिंहभूम हो, भूमिज, मुंडारी, कुडुख, संताली
कोडरमा संताली, कुरमाली, खोरठा
बोकारो संताली, नागपुरी, कुरमाली, खोरठा
धनबाद संताली, नागपुरी, कुरमाली, खोरठा
गिरिडीह संताली, कुरमाली, खोरठा
देवघर खोरठा, अंगिका