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रांची: जो लोग जो संगठन जनजाति समाज का पहचान और अधिकार की बात कह कर अलग पृथक सरना/आदिवासी धर्म कोड/ट्राईबल कोड की मांग कर रहे हैं, इससे जनजाति समाज का पहचान और हक अधिकार बचने वाला नहीं है. जिस दिन जनजातियों के लिए पृथक सरना/ आदिवासी धर्म कोड आवंटन हो गया तो उसी दिन से जनजाति समाज का सामाजिक, पहचान, संवैधानिक हक और अधिकार खत्म हो जाएगा. यह बातें आरएसएस से जुड़े संगठन जनजातीय सुरक्षा मंच ने प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता एवं परिचर्चा के दौरान कही गयी. कहा गया कि जनजाति समाज का पहचान ,रुढि प्रथा , अनुष्ठान, विवाह, विरासत, सामाजिक व्यवस्था, परंपरा और कस्टम है और उसी पर जनजाति समाज टिका हुआ है, वहीं धर्म है, वहीं जनजातियों का विधि का बल है, कानून है जो संविधान में प्रदत्त है. हम संविधान की बातों को मानते हैं संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को अपना अंतःकरण अबाध रूप से मनने और आचरण और प्रचार करने का अधिकार है. किंतु किसी को या समूह को किसी धर्म को मनवाने के लिए मजबूर करना संविधान के खिलाफ है.
धर्म परिवर्तित ईसाई अनुच्छेद 342 से हो चुके हैं बाहर
जनजातियों के लिए अलग पृथक धर्म कोड मांगने के पीछे मुख्य कारण है कि धर्म परिवर्तित ईसाई अनुच्छेद 342 से बाहर हो चुके हैं, वे अल्पसंख्यक कोड 29 एवं 30 के अलावे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति से ईसाई या मुस्लिम धर्म ग्रहण कर लिया हो. उन्हें अनुच्छेद 340 के तहत बैकवर्ड क्लास कमिशन बी पी मंडल आयोग के द्वारा पिछड़ा वर्ग एवं पिछड़ा वर्ग bc2 में रखा है। साथ ही भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने केरल बनाम चंद्रमोहन केस 2004 मे 3 बेंच तीन जजों के द्वारा एक अहम निर्णय देते हुए कहा है कि जो धर्म परिवर्तित जनजाति अपना जातिगत रुढि प्रथा, अनुष्ठान ,विवाह, विरासत, उत्तराधिकार और कस्टम इत्यादि को त्याग दिया हो उन्हें जनजाति का सदस्य स्वीकार नहीं किया जा सकता है. संविधान अनुसूचित जनजाति आदेश 1950 राष्ट्रपतीय आदेश का लाभ अभिप्राप्त करने के लिए एक व्यक्ति को जनजाति का सदस्य होने की शर्त पूर्ण करना होगा उन्हें निरंतर जनजाति का सदस्य बने रहना होगा. साथ ही पंचायती राज अधिनियम एवं पेसा एक्ट कानून में अनुसूचित क्षेत्रों में गांव के ग्राम प्रधान और मुखिया बनने से रोक दिया है. इन सारी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए एक सोची-समझी के तहत जनजातियों के लिए अलग धर्म कोड की पुरजोर मांग की जा रही है ताकि जनजाति समाज को भी अल्पसंख्यक के श्रेणी में रखा जा सके.
आज 80% धर्म परिवर्तित ईसाई लोग गलत तरीके से जनजातियों का आरक्षण और सुविधा को ले रहे है
झारखंड आदिवासी सरना विकास समिति धुर्वा के अध्यक्ष मेघा उरांव ने कहा कि जनजातियों के लिए पृथक अलग सरना धर्म कोड मांग के पीछे मुख्य रूप से कैथोलिक चर्च कलीसिया और सरना के नाम से अलग धर्म अलग परंपरा स्थापित करने वाले लोगों की सोच और मांग है, जो अपना जनजाति परंपरा रुढ़ि प्रथा, अनुष्ठान विधि-विधान और कस्टम को छोड़ चुके हैं। अगर जनजाति समाज का अस्तित्व और अस्मिता , हक अधिकार को बचाना है तो धर्म परिवर्तित लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची से डीलिस्टिंग करना होगा. स्वर्गीय डॉक्टर कार्तिक उरांव ने धर्मांतरण और धर्मपरिवर्तित लोगों के खिलाफ सड़क से सदन तक मुखर होकर समाज की बातों को पीड़ा को रखा जो जनजाति ईसाई बन गए हैं उन्हें जनजातियों की सुविधा और आरक्षण नहीं मिलना चाहिए.
कार्तिक उरांव ने लोकसभा में रखा था प्रस्ताव
मंच के संयोजक संदीप उरांव ने कहा कि सरना कोड सहित माननीय सुप्रीम कोर्ट 2004 एवं बी पी मंडल आयोग और स्वर्गीय कार्तिक उरांव जी की अगुवाई में सरकार द्वारा गठित संयुक्त संसदीय समिति 1967 की सिफारिश जिसमें 22 लोकसभा एवं 11 राज्यसभा सांसदों एवं 1970 में लोकसभा एवं राज्यसभा के 348 सांसदों का हस्ताक्षरयुक्त लोकसभा के पटल पर रखा हुआ है. जिसमें जो जनजाति अपना आदिमत तथा विश्वासों को त्याग कर दिया हो और वे ईसाई या इस्लाम धर्म धर्म पर लिया हो वह जनजाति का सदस्य नहीं समझा जाएगा. इन सारे विषयों को गृह मंत्री भारत सरकार को अवगत कराते हुए धर्म परिवर्तित जनजातियों को आरक्षण और सुविधाओं को वंचित किए जाने का मांग करेंगे और इसका मांग हो रहा है. क्योंकि धर्मपरिवर्तित लोग अनुसूचित जनजाति की सूची 342 से बाहर हो चुके हैं इसको लागू कराने की आवश्यकता है.
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हमें अलग धर्म कोड की जरूरत नहीं
केंद्रीय युवा चाला विकास समिति के अध्यक्ष सोमा उरांव ने कहा है की वर्ष 2013 एवं 2015 भारत सरकार द्वारा पृथक सरना धर्म कोड की मांग को खारिज करते हुए कहा है कि 2001 की जनगणना में एक सौ से अधिक जनजाति धर्मो सहित विभिन्न पंथ दर्ज हुए इसमें से प्रत्येक को पृथक कोड आवंटित करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है। भारत सरकार ने छ प्रमुख धर्मों को पृथक धर्म कोड आवंटित किए गए है जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन धर्म मौजूद है. हमें अलग सरना धर्म कोड की कोई आवश्यकता नहीं यदि भारत सरकार ने सरना कोड देकर जनजातियों को अल्पसंख्यक बनाने की कोशिश किया तो विवश होकर सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के शरण में जाएंगे। दूसरी ओर त्रिस्तरीय पंचायत मुखिया चुनाव में धर्म परिवर्तित लोगों को रोक लगाने कि मांग करेंगे। सनी टोप्पो कार्यकारी अध्यक्ष राष्ट्रीय आदिवासी मंच ने कहा की अंग्रेज के समय जितना जनजातियों का धर्मांतरण नहीं हुआ जितना अभी वर्तमान समय में जनजातियों को धर्मांतरण हो रहा है और हुआ है, यह चिंता का विषय है.