न्यूज 11 भारत
रांची/डेस्क: कांग्रेस और राजद समेत कोई भी राजनीतिक दल चुनाव आयोग की अपने वेबसाइट पर डाले गये मतदाता सूची के ड्राफ्ट पर कोई आपत्ति नहीं जता रहे हैं और न ही कोई दावा कर रहे हैं, लेकिन वोटर के अधिकार को लेकर बिहार में अधिकार यात्रा निकाल रहे हैं. दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियों के चुनाव आयोग पर लगाये जा रहे आरोपों के विपरीत मतदाता सूची में ढेरों विसंगतियां सामने आ रही हैं. ये विसंगितियां ऐसी हैं कि अब विपक्ष पार्टियों की नीयत पर शक होता है कि क्या वैसे ही बनी रहने देना चाहती हैं जैसी की मतदाता सूची में हैं. क्या यह ऐसा नहीं लगता कि विपक्षी पार्टियों को इससे 'कोई फायदा' होने की उम्मीद है, जिस कारण वे इसका विरोध कर रही हैं.
1 अगस्त को चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद संशोधित मतदाताओं का एक ड्राफ्ट अपनी वेबसाइट पर डाल दिया है. ताकि मतदाता या राजनीतिक पार्टियों का अगर कोई दावा बनता है तो उनके दावों का सत्यापन कर उन्हें सुधार दिया जाये. लेकिन हैरत की बात यह है कि मतदाताओं के छिटपुट दावों को छोड़ दिया जाये तो किसी भी राजनीतिक पार्टी ने अब तक न तो किसी प्रकार की आपत्ति जतायी है और न कोई दावा किया है. फिर भी वे वोटर के अधिकार को छीनने की बात कह रही हैं. जबकि चुनाव आयोग के अनुसार करीब 65 लाख मतदाताओं को सूची से बाहर किया गया है. उसके बाद भी एक भी विसंगति पर विपक्षी दल उंगली नहीं रख पा रहे हैं.
मतदाता सूची का ड्राफ्ट चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जारी कर दिये जाने के बाद खोजी पत्रकारिता भी शुरू हो गयी है. इस खोजी पत्रकारिता से पूर्व में मतदाता सूचियों में क्या-क्या गुल खिलाये गये हैं, वे उजागर हो रहे हैं. खोजी पत्रकारिता का विश्लेषण बताता है कि वोटर लिस्ट में हज़ारों मतदाता फ़र्ज़ी हैं या फिर संदिग्ध पतों पर पंजीकृत हैं. फर्जी मतदाताओं का आलम यह है कि सैकड़ों मतदाता एक ही घर में पाये गये हैं. इनमें एक उदाहरण गलीमपुर गांव के पिपरा निर्वाचन क्षेत्र का बताया जा रहा है जहां 509 मतदाता एक फ़र्ज़ी घर पर और 459 मतदाता एक अलग फ़र्ज़ी पते पर पंजीकृत थे. यह तो एक निर्वाचन क्षेत्र का आलम है. ऐसा तो पूरे राज्य के निर्वाचन क्षेत्रों में पाया जा रहा है.
यह भी पढ़ें: चोट लगेगी तो बीच मैच में बदल जायेगा खिलाड़ी, बीसीसीआई ने चोटिल खिलाड़ियों को लेकर बनाया नया नियम