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रांची/डेस्क: कभी-कभी राजनेताओं की बुद्धि पर बड़ा तरस आता है. कभी-कभी तो यह समझ नहीं आता कि वह कह क्या रहे हैं और समझाना क्या चाह रहे हैं. या फिर हम जनता ही इतनी समझदार नहीं हैं, जिस कारण कोई भी नेता आकर कभी भी कुछ भी समझा कर चला जाता है. बात रह रहे हैं, राजद सुप्रीमो लालू के लाल तेजस्वी यादव की. यह तो सभी को पता है कि इस समय बिहार में चुनाव आयोग मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण कार्य कर रहा है. चुनाव आयोग के इस कार्य में राजद समेत तमाम विपक्षी पार्टियों को यह लग रहा है कि यह उनके खिलाफ किसी षड्यंत्र के तहत किया जा रहा है. उन्हें लग रहा है कि उनके मतदाताओं को चुन-चुन कर सूची से बाहर करने का काम किया जा रहा है. हालांकि इसका खुलासा अगस्त के आखिर तक हो जायेगा जब चुनाव आयोग मतदाताओं की अंतिम सूची जारी कर देगा. लेकिन जब तक चुनाव आयोग यह सूची जारी नहीं करता तब तक विपक्ष को राजनीति करने का मौका मिला हुआ है और इस बहाने वह अपनी राजनीति चमका रहा है. चाहे वह कांग्रेस के राहुल गांधी हों या फिर राजद के तेजस्वी यादव.
तेजस्वी यादव ने बाजाप्ता प्रेस कॉन्फ्रेंस करके ऐसी बात कही है जिससे सिर घूम गया है. उन्होंने कहा कि अगर मतदाता सूची से 1% नाम भी कट जाते हैं तो इससे चुनाव का परिणाम में बड़ा अंतर आ सकता है. तेजस्वी यादव की बात को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि जब 1-2 वोटों से चुनाव का परिणाम आ सकता है तो 1-2% तो बड़ा अंतर पैदा कर कर सकता है। तेजस्वी के ही अनुसार तो अगर 5% वोट कट जायें तो यह अंतर तो बहुत बड़ा हो सकता है. तेजस्वी यादव के अनुसार 1 प्रतिशत मतदाताओं के बाहर होने का मतलब है 7.90 लाख वोटरों का बाहर हो जाना. यानी 7.90 वोटर वोट नहीं दे पायेंगे.
यह तो एक फीगर है जो तेजस्वी यादव ने दिखाया और बड़ा सवाल चुनाव आयोग के सामने दाग दिया है. पहली बात तो देश की वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार किसी भी राज्य में शत-प्रतिशत मतदाताओं को सूची बद्ध करना सम्भव ही नहीं है. इन राजनेताओं से ही सवाल पूछा जाये कि किसी भी राज्य के लिए शत-प्रतिशत वोटर लिस्ट किसे मानते हैं, तो इसका जवाब इनके पास नहीं होगा. हर राज्य के लाखों लोग विभिन्न परिस्थितियों में दूसरे राज्यों में रोजगार करते हैं. जब जरूरत होती है तब वे अपेक्षित कागजात प्रस्तुत नहीं पाते कि उन्हें उस राज्य का निवासी क्यों माना जाये. भले ही दूसरे राज्य उन्हें अपना निवासी मानने से इनकार कर दें.
खैर, यह अलग बातें हैं, इसका निराकरण शायद कभी न पाये, लेकिन जो मुद्दा तेजस्वी यादव ने उठाया है, उनके इस मुद्दे मे से ही कई सवाल निकलते हैं. जिसके लिए पार्टियां ही नहीं सारा सिस्टम ही सवालों के घेरे में आता है. चूंकि सवाल तेजस्वी यादव ने उठाया है इसलिए सवाल उन्हीं से ही कर लिया जाये. तेजस्वी यादव से सवाल है कि क्या आपने 2015 और 2020 के बिहार विधानसभा आंकड़ों पर नजर दौड़ाई है? मैं कह रहा हू- बिलकुल नहीं. अगर पिछले दो विधानसभा चुनावों के आंकड़ों पर उन्होंने नजर दौड़ा ली होती तो यह सवाल करने से पहले हजार बार तो जरूर सोचना पड़ता. एक छोटा-सा आंकड़ा मैं दे रहा हूं.
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में बिहार में कुल पंजीकृत मतदाता थे- 7,36,47,660. लेकिन घरों से वोट देने के लिए निकले थे- 4,21,94,050. यानी 57.29% वोटरों ने ही वोट डाले थे. 42.71% वोटरों ने वोट नहीं डाले थे. 3,14,53,610 मतदाताओं ने वोट नहीं डाले. 2015 में तो बिहार इससे भी आगे निकल गया था. 2015 में बिहार में मतदाताओं की कुल संख्या थी- 6,62,43,193. वोट डालने घर से निकले 3,76,73,594 मतदाता. यानी उस साल 56.91% मतदाताओं ने वोट ही नहीं डाले. 2,85,69,599 वोटरों ने वोट कास्ट नहीं किया. संख्या में 2015 का आंकड़ा भले ही कम नजर आता है, लेकिन मतदाताओं की कुल संख्या के लिहाज से और प्रतिशत (43.09) में 2020 के वोट नहीं डालने वालों से कहीं अधिक है.
तेजस्वी यादव से हमारा सवाल अब भी जारी है. अपनी बात कहते समय आपने यह डाटा अपने सामने क्यों नहीं रखा? आपको ऐसा क्यों लगता है कि 42 प्रतिशत या 43 प्रतिशत वोट नहीं डालने से चुनाव परिणाम में कोई अंतर नहीं आता है, 1 प्रतिशत वोट ‘इतना बड़ा’ अंतर कैसे पैदा कर सकता है?
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