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रांची/डेस्क: सावन का पावन महीना शुरू हो चुका है और देशभर में शिव भक्त भोलेनाथ की आराधना में लीन हैं. जलाभिषेक, रुद्राभिषेक, व्रत और मंत्रोच्चार के साथ भगवान शिव को प्रसन्न करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन क्या केवल पूजा-पाठ से शिव कृपा मिलती हैं. अगर आप वास्तव में शिव के प्रिय बनना चाहते है तो उनके गुणों को अपने जीवन में उतारना ज्यादा जरुरी हैं. शिव न केवल त्रिदेवों में से एक है बल्कि उन्हें आदिगुरू भी कहा गया हैं. उनका जीवन हमें संतुलित, शांत और खुशहाल जीवन जीने की प्रेरणा देता हैं.
सावन के इस पवित्र महीने में अगर आप सच में शिव की कृपा पाना चाहते है तो सिर्फ पूजा-पाठ नहीं, बल्कि उनके जीवन मूल्यों को अपनाइए. इन चार गुणों को आत्मसात कर आप भी एक शांत, सरल और खुशहाल जीवन की ओर कदम बढ़ा सकते हैं. यही है शिव भक्ति का असली अर्थ.
सादगी में है सुख का रहस्य
भगवान शिव का जीवन पूरी तरह से सादगी से भरा हैं. वो कैलाश पर्वत पर वास करते हैं, जहां कोई भव्य महल या ऐश्वर्य नहीं हैं. उनके प्रिय भोग बेलपत्र, भांग, धतूरा जैसे सामान्य वनस्पति हैं. उनका यह गुण बताता है कि आतंरिक शांति और संतुष्टि किसी महंगे सामान से नहीं बल्कि सादगी से मिलती हैं. जो व्यक्ति सादा जीवन जीता है, उसका मन स्थिर और शांत रहता हैं.
क्रोध को बनाएं नियंत्रण का विषय
शिव तांडव का रूप तभी लेते हैं जब अति हो जाती हैं. उनका क्रोध बेहद शक्तिशाली जरूर है लेकिन बिना आवश्यकता के प्रकट नहीं होता. मनुष्य को चाहिए कि वह अपने क्रोध को नियंत्रण में रखना सीखे. बेवजह का गुस्सा न केवल रिश्तों को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि मानसिक तनाव और पछतावे की वजह भी बनता हैं.
मोह और माया का त्याग ही सच्चा वैराग्य
शिव वैराग्य के प्रतीक हैं. वह परिवार होते हुए भी सांसारिक बंधनों से मुक्त हैं. वे मोह से परे हैं. उनका यह गुण यह सिखाता है कि जीवन में अनावश्यक इच्छाओं का त्याग करना ही सच्चे सुख की कुंजी हैं. जब इंसान मोह-माया के चक्रव्यूह से बाहर निकलता है, तभी वह आत्मिक शांति का अनुभव कर सकता हैं.
परिवर्तन को करें सहज स्वीकार
शिव न केवल विनाश के देवता हैं, बल्कि सृजन और पुनर्निर्माण के भी प्रतीक हैं. उनके व्यक्तित्व से यह स्पष्ट होता है कि परिवर्तन ही जीवन का नियम हैं. चाहे समय हो, रिश्ते हों या हालात- इन सबमें बदलाव आता हैं. शिव हमें सिखाते है कि जो बदलते समय के साथ खुद को ढाल लेता है, वही आगे बढ़ता हैं. परिवर्तन को सकारात्मक रूप में स्वीकार करना ही मानसिक संतुलन का आधार हैं.