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रांची: इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे हर साल अगस्त के पहला रविवार को मनाया जाता है. सबसे पहला फ्रेंडशिप डे 1958 में मनाया गया था. आरम्भ में ग्रीटिंग कार्ड के द्वारा इसे काफी प्रमोट किया जाता था. बाद में फ्रेंडशिप बैड का दौर चला. बदलते दौर में इस खास मौके पर अब दोस्त एक- दूसरे को मोबाइल के जरिये स्पेशल मैसेज भेजते हैं.
वैसे तो अगर खास दोस्त आपके पास हो तो हर दिन फ्रेंडशिप डे की तरह खास हो जाता है. लेकिन दोस्ती मनाने के लिए यह एक खास दिन होता है. आज उन्हीं दोस्तों का खास दिन है. क्या आपको भी पता है दोस्ती के भी कई रंग होते हैं. यूं रोजमर्रा की जिदंगी में हमारे कई दोस्त होते है. जिसमें से कुछ दोस्त बेहद खास, तो कुछ आम होते है, लेकिन हर एक फ्रेंड जरूरी होता है. चलिए शुरू करते है..
लॉन्ग डिस्टेंस फ्रेंडशिप- दुनिया में ऐसे भी दोस्त होते हैं, जिनके साथ आप अपने सुख-दुख और जिंदगी के हसीन लम्हों को शेयर करते हैं. लेकिन समय के साथ-साथ ये दोस्त दूर होते जाते हैं, लेकिन दिल में हमेशा बने रहते हैं. इन्हें लॉन्ग डिस्टेंस दोस्ती कहते है. आजकल के व्यस्तता का दौर में लोग पढ़ने और जॉब के लिए अपने शहर से दूर दूसरे बड़े शहर में चल जाते है. उन्हें अपने घर, परिवार के साथ-साथ अपने पुराने और खास मित्र को भी छोड़ना पड़ता है. लेकिन दूर रहने के बावजूद भी वे अपनी मित्रता को मोबाइल, सोशल मिडिया के जरिये जोड़े रखते है. और अपनी दोस्ती को बराकर रखते है.
इंट्रोवर्ट्स फ्रेंडशिप- कभी-कभी ऐसे लोगों से भी दोस्ती हो जाती हैं जो अंतर्मुखी होते हैं जिन्हें हम इंट्रोवर्ट कहते हैं. वे जल्दी किसी से मिलते-जुलते नहीं हैं. सभी इंट्रोवर्ट्स एक कमरे के कोने में बैठने वाले होते हैं लेकिन ऐसा नहीं है. अंतर्मुखता अपने आप में एक स्पेक्ट्रम है यानी सभी इंट्रोवर्ट्स से एक जैसे व्यवहार अपेक्षा नहीं की जा सकती. इंट्रोवर्ट्स किसी के साथ कम्फर्ट जोन बन जाए तो किसी बात का स्ट्रेस नहीं रहता. इंट्रोवर्ट्स जहां सहज महसूस करते हैं, वहीं आराम से रह पाते हैं. ऐसे में उनसे दोस्ती करना भी आसान काम नहीं है. लेकिन अगर कभी किसी इंट्रोवर्ट से अच्छी दोस्ती हो जाए तो लॉंग टर्म यानी लाइफटाइम तक दोस्त बने रहते है.
पुराने या स्कूल के फ्रेंडशिप- अगर आपकी दोस्ती पुरानी है और काफी लंबे समय से चली आरही है. जिसके साथ आपने सुनहरे पल गुजरे हो. असल जिदंगी में तो अब इस तरह के दोस्त किताबों में या फिल्मो में मिलते है. ये दोस्त स्कूल या बचपन के हो सकते है. इस तरह के दोस्ती ताउम्र रहती है.
वर्कप्लेस फ्रेंडशिप- वैसे एक वक्त के बाद वर्कप्लेस पर इस तरह के दोस्त बन पाना काफी मुश्किल ही होता है. वो चढडी-बडडी वाले दोस्त जो स्कूल और कॉलेज में बनते हैं. लेकिन जब नौकरी लगती है तो नई लोग, नई जगह, नए काम में दोस्त बनाना या चाहे बनना हो. मुश्किल का टास्क होता है. लेकिन कभी-कभी ऑफिस में अच्छे दोस्त भी बन जाते है. काम-काम में बात पर हंसी, काम की ही बातों का शेयर करना हो, और जब काम न हो तो वर्कप्लेस में भी कुछ अच्छे दोस्त बन ही जाते है जिनकी दोस्ती ऑफिस तक ही सीमित नहीं होती हैं.