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झारखंड


एक दिन में चार लोगों ने की आत्महत्या, तीन ने लगाई फांसी

आखिर क्यों तनाव में हैं सिमडेगा वासी?
एक दिन में चार लोगों ने की आत्महत्या, तीन ने लगाई फांसी

 न्यूज़ 11 भारत 


सिमडेगा/डेस्क: सिमडेगा में आज एक हीं दिन में चार लोगों ने आत्महत्या कर ली. जिसमे तीन लोगों ने फांसी लगाकर आत्महत्या की और एक युवक ने जहर खाकर अपनी जान दी. क्या कारण है कि लोग इतने तनाव में आ गए कि एक दिन में चार लोग अपनी जान दे दी. जानकारी के अनुसार पहला मामला सदर थाना क्षेत्र के ठाकुर टोली का है. जहां प्रकाश पाणिग्राही नामक यात्री बस चालक आज सुबह अपने घर में हीं फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. घटना की सूचना मिलने के बाद पुलिस घटना स्थल जाकर शव अपने कब्जे में लेकर अग्रतर कार्रवाई शुरू कर दी है. बताया गया कि घरेलू विवाद के कारण ये फांसी लगाकर अपनी जान दी है. 


वहीं फांसी का दूसरा मामला ठेठईटांगर थाना क्षेत्र के जोराम खिजुरटांड़ का है. जहां घरेलू परेशानी से तंग आकर कुलदीप प्रधान नामक व्यक्ति ने अपने घर के पास महुआ के पेड़ में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. पुलिस इसके शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल भेज दी है. फांसी का तीसरा मामला बानो प्रखंड के गिर्दा ओपी क्षेत्र का है. जहां अपने घर में हीं एक नाबालिक किशोरी ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. इसके आत्महत्या के कारणों का नहीं चला है. घटना की सूचना पर पुलिस घटनास्थल जाकर शव को कब्जे में लेकर अग्रतर कार्रवाई शुरू कर दी है. 


चौथा मामला जपला का है. जहां सनातन डांग नामक एक युवक के जहरीली कीटनाशक खा लिया. जिससे उसकी हालत बिगड़ने लगी. तब उसके परिजन उसे सदर अस्पताल लेकर आए. जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. विगत छह माह के रिकॉर्ड देखा जाए तो सिमडेगा में फांसी लगाकर या जहर खाकर 50 से अधिक लोग अपने प्राण त्याग दिए हैं. आखिर क्यों इस तरह सिमडेगा में लोग कमजोर होकर इतनी बढी कदम उठाने लगे हैं. सुबह आंख खुलने के साथ ही मन में आने वाले पहले विचार से लेकर रात में नींद आने के आखिरी सेकेंड्स तक हम अपने जीवन को कैसे बेहतर रख सकते हैं, इसी बारे में मंथन करते रहते हैं. मतलब-हमारे लिए जीवन सबसे कीमती है. फिर आखिर कौन सी मनोस्थिति आत्महत्या के विचारों का कारण बनती है? कितनी भयानक होती होगी यह.


वर्ष 1970 में एक फिल्म आई थी, इसमें मुख्य अभिनेता राजेश खन्ना गंभीर बीमारी से जूझ रहे होते हैं, डॉक्टर उन्हें अस्पताल में एडमिट होने की सलाह देते हैं, तो अविनाश (राजेश खन्ना) कहते हैं- ' डॉक्टर साब, मैं मरने से पहले मरना नहीं चाहता.' यह लाइन मुझे बहुत आकर्षित करती है, विशेषरूप से तब, जब समाचारों में आत्महत्या के मामलों के बारे में पढ़ता या लिखता हूं. इस पंक्ति का भाव यह है कि भले ही मौत अटल सत्य पर है, इस दुनिया में कौन है जो मरना चाहता है? अस्पताल में कैंसर का इलाज करा रहे मरीज से पूछिए जिंदगी की क्या कीमत है? आखिरी सांस गिन रहा व्यक्ति भी चाहता है, काश दो पल और मिल जाएं. फिर बड़ा सवाल यह कि आखिर वह क्या परिस्थितियां हैं जिसमें किसी व्यक्ति के लिए आत्महत्या करना ही आखिरी विकल्प बचता है? जीवन से अपार प्रेम रखने वाले इंसान की आत्महत्या के विचार आने में कितनी गंभीर मनोस्थिति होती होगी? यह निश्चित ही बेहद गंभीर है, आत्महत्या के बढ़ते मामलों के साथ, इसके कारकों पर गंभीरता से चर्चा किए जाने की आवश्यकता है.


आखिर क्यों लोग नहीं समझते कि हमारा जीवन अनमोल है. तनाव, निराशा या हताशा का समाधान आत्महत्या नहीं है. मनोचिकित्सकों का मानना है कि अवसाद से ग्रस्त लोगों की मानसिक चिकित्सा के जरिए उन्हें स्वस्थ बनाया जा सकता है. इसके अलावा परिवार और समाज का भावनात्मक संबल भी अवसाद में जाने से बचाने में मददगार हो सकता है. इस प्रकार लगातार आत्महत्या की प्रवृति के बढ़ते ग्राफ को तेजी से नीचे लाने में काफी मदद मिल सकती है.आत्महत्या कभी भी किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता. जीवन बहुत अनमोल है, दुनिया भर की दौलत लूटाकर भी हम एक पल का जीवन खरीद नहीं सकते हैं. ज़िंदगी का मोल उससे पूछो जिनके पास चन्द लम्हों का जीवन बचा हो और वो खूब जीना चाहते हैं. ज़िंदगी जिंदादिली का नाम है, और आत्महत्या कायरता और बुजदिली का नाम है. हमारी ज़िंदगी दूसरों की देन है, इसे खत्म करने का हक़ हमे नहीं है. विश्व के सभी प्रकार के प्राणियों में मनुष्य ही एक ऐसा सामाजिक प्राणी है जो अन्य प्राणियों के मुकाबले शारीरिक और मानसिक तौर मजबूत होकर भी आत्महत्या जैसा गलत कदम उठाता है. समय लगातार परिवर्तनशील है, वो कभी भी एक सा नहीं रह सकता, समय बलवान है, यह हर चीज सीखा देता है, वक्त अच्छा हो या बुरा, बदलेगा जरूर.बहुत बार बुरे वक्त के लिए मनुष्य खुद जिम्मेदार होता है जैसे – गलत काम, नियमों की अवहेलना, असभ्य व्यवहार, संस्कारों से दूरी, अपराध, भावनाओं में बह जाना, बिना सोचे-समझे निर्णय लेना, दूसरों पर निर्भरता या जरुरत से ज्यादा विश्वास, लापरवाही, लत, नशाखोरी, गलत संगत, दिखावा, लालच, सहनशीलता और संतोष की कमी, नकारात्मक विचार या खुद को कमजोर समझना, गुस्सैल स्वभाव व अन्य अनेक बातें हमें तकलीफदेह परिस्थिति में डाल देती है.ज़िंदगी में एक बात कभी मत भूलना कि गुस्से और ख़ुशी में भावनाओं में बहकर कभी भी कोई निर्णय या वादा ना करें. 


 


आज जो स्थिति सिमडेगा में दिखती है उसका एक कारण और भी नजर आता है. वह है अभिभावक और युवाओं में बढता कम्युनिकेशन गैप. शायद यह भी एक कारण हो सकता है कि लोग अपनो को छोड़कर जहर की तरफ झुकने लगे हैं. आज की पीढ़ी संघर्ष से क्यों भागने लगी है. ये विचार करना होगा. याद होगा पहले के जमाने में घर के सभी सदस्य रात में एक साथ भोजन करने बैठते थे. खाने के लिए होने वाली यह बैठक पारिवारिक की मजबूती के साथ साथ सभी सदस्यों के भावनाओं के आदान प्रदान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती थी. लोग एक दुसरे से दन भर की गतिविधियों को शेयर करते थे. लेकिन हमारी यह परंपरा मोबाइल और टीवी ने छीन लिया है. नतीजन घर के सदस्यों में पैदा होती संवादहीनता धीरे धीरे अवसाद को करीब लाने लगा है और लोगों में मामुली बातों में खुदकुशी की प्रवृति आने लगी है. इसे रोकने के लिए आज घर के बडे, समाज सहित अन्य सभी लोगों को एक जुट होकर यह संवादहीनता को खत्म कर आज के युवा पीढी को फिर से समझाना होगा कि कामयाब होने के लिए इंसान को सकारात्मक सोच और मजबूत इरादों की जरुरत होती है. संघर्ष जीवन का हिस्सा है, बस किसी का संघर्ष कम या अधिक होता है, इसके बगैर जीवन का मोल हमें समझ नहीं आता. गलत रास्ते पर चलने के लिए डर कर जीना होता है, लेकिन जो सच्चाई के मार्ग पर होता है वो हर दम निडर और भयमुक्त जीवन जीता है. माना कि आजकल हर ओर समस्याओं का अंबार नजर आता है, परन्तु लोग जो गलती करें, जरूरी नहीं कि हम भी वही गलती दोहराएं. काम छोटा हो या बड़ा अगर काम ईमानदारी का है तो लोकलाज का विचार मन में कभी न लाएं.


ज़िंदगी में कभी भी निराशा से घिरकर उम्मीद का दामन ना छोड़ें, हमेशा सकारात्मक विचार और अपनी मेहनत, काबिलियत पर भरोसा करें. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत, इसलिए एक बात हमेशा ध्यान में रखिए कि मन से कभी हारना नहीं है. जितना संभव हो निस्वार्थता से परोपकार की भावना बनाए रखें. बुरी आदतों से दूर रहें, हमेशा सकारात्मक विचारों वाले लोगों के साथ रहें, प्रकृति और पशु-पक्षी से जुड़ाव बनाये रखें, क्योंकि यह मानसिक शांति को बनाये रखने में मदद करते हैं. संस्कारशील व्यवहार और हमेशा बड़ों का सम्मान होना ही चाहिए. स्वस्थ खाना और शारीरिक खेल खेलें, यह शरीर और मन को स्फूर्ति और तनावमुक्त रखने में सहयोगी है. हमेशा खुश रहें, समस्याओं से डरे नहीं बल्कि उनसे लड़े, चुनौतियों को स्वीकार करें और हमेशा आगे बढ़ते रहें. जीवन में कभी हार मत मानो और बार बार प्रयास करते रहो . रुक जाना नहीं तू कहीं हार के कांटों पे चल के मिलेंगे साये बहार के ओ राही.

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