न्यूज 11 भारत
रांची: देश में साइको सेक्सुअल डिसऑर्डर की समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है. समाज में आज भी सेक्स की समस्या टैबू की तरह है. इससे मरीजों की संख्या में भी बेतहाशा वृद्धि हो रही है. यह समस्या इतनी बड़ी हो चली है कि इससे ग्रसित लोग झोलाछाप डॉक्टरों के चक्कर में आकर अपनी गाढ़ी कमाई गंवा रहे हैं. ओझा-हकीम का भी लोग सहारा ले रहे हैं. शर्म के कारण लोग डॉक्टर के पास नहीं जाते हैं. सड़क छाप डॉक्टर, जड़ी-बूटी एवं नीम हकीमों का चक्कर लगा कर लूट जाते हैं. लेकिन अब ऐसे मरीजों को घबराने की जरूरत नहीं है. झारखंड की राजधानी रांची के सीआईपी में साइको सेक्सुअल डिसऑडर क्लिनिक खोला गया है. कम से कम यह झारखंड पहला ऐसा सरकारी क्लिनिक होगा. जहां लोग आकर अपने बीमारी का इलाज करा सकते हैं, जरूरी सलाह भी ले सकते हैं.
समय पर इलाज नहीं होने से ऐसे रोगी मानसिक रोगी भी बन सकता है
सीआईपी संस्थान का माना है कि सेक्सुअल डिसऑर्डर और मेंटल डिसऑर्डर सिक्के के दो पहलू है. दोनों काफी फर्क है. समय पर इलाज ना हो तो सेक्सुअल डीजआर्डर वाला व्यक्ति मानसिक रोगी भी बन सकता है. ज्यादातर ऐसे रोगी झोलाछाप नीम हकीमों का सहारा लेते हैं, उन्हें सीआईपी में बेहतरीन बेहतर इलाज मिल सकेगा.
हर बुधवार को सीआईपी ओपीडी जाकर सलाह ले सकते हैं
फिलहाल हर बुधवार सीआईपी ओपीडी में साइको सेक्सुअल डिसऑर्डर क्लिनिक चलाया जाएगा. जहां आप रजिस्ट्रेशन करके भी आ सकते हैं. इस क्लिनिक में इलाज के लिए एक्सपोर्ट साइकोलॉजिस्ट और क्वालिफाइड डॉक्टर मौजूद रहेंगे.
सीआईपी निदेशक डॉ वासुदेव दास का मानना है कि ज्यादातर सेक्सुअल डिसऑर्डर, सिर्फ काउंसलिंग से ही ठीक हो जाता है. क्योंकि इंसान इस मामले में भ्रांतियों का शिकार भी रहता है. साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर सिद्धार्थ सिन्हा के मुताबिक मॉडर्न मेडिकल साइंस में सेक्सुअल डिजायर का बेहतरीन इलाज मौजूद है. झोलाछाप नीम हकीम ओं के चक्कर में ना पड़े. साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर सिद्धार्थ सिन्हा ने बताया कि मानसिक आरोग्यशाला सीआईपी ने साइको सेक्सुअल डिसऑर्डर क्लीनिक खोलकर एक बड़ी पहल की है. इसका अनुसरण दूसरे मानसिक रोग के अस्पताल भी करेंगे. लोगों को गोपनीयता के साथ बेहतरीन इलाज मिलेगा, पहले ही सीआईपी ने, बिहेवियरल डिसऑर्डर, और ऑटिज्मओपीडी खोलकर पहले ही बेहतरीन पहल की है.
क्या है साइको सेक्सुअल डिसऑडर
यह रोग महिलाओं में मेनॉपॉज 45 से 55 साल की उम्र में होता है. जबकि पुरुषों में यह 50 से 60 साल की उम्र के बीच होता है. महिलाओं की तरह पुरुषों को भी इस दौरान अपनी मेंटल और फिजिकल हेल्थ का ध्यान रखने की जरूरत होती है. जिन पुरुषों को इस स्थिति से निपटने के लिए पूरी जानकारी नहीं होती है, उन्हें अक्सर सेक्शुअल डिस्फंक्शन की समस्या का सामना करना पड़ता है.
यह होते हैं शरीर में बदलाव इस बीमारी से
पुरुषों में जब मेनॉपॉज की स्थिति आती है, तब उनके शरीर में मानसिक और भावनात्मक बदलाव लगभग वैसे ही होते हैं. जैसे महिलाओं के शरीर में. इस वक्त पुरुषों को मुख्य रूप से भावनात्मक उतार-चढ़ाव की स्थिति का सामना करना पड़ता है. वे पहले की तुलना में बहुत इमोशनल हो जाते हैं और कई बार खुद को कमजोर और अकेला अनुभव करते हैं.
मानसिक समस्याएं घेरने लगती हैं
पुरुषों में ऐस्ट्रोजन हॉर्मोन की कमी के चलते न्यूरॉलजिकल दिक्कतें शुरू हो जाती हैं. इनमें ऐंग्जाइटी, टेंशन और अपने काम पर फोकस ना कर पाने जैसी समस्याएं शामिल हैं. कुछ पुरुषों को तो इस दौरान मेमोरी लॉस जैसी परेशानियां भी हो जाती हैं.
मूड स्विंग्स का दौर चलता है
पुरुषों में 50 साल की उम्र के बाद ऐस्ट्रोजन हॉर्मोन का बनना कम होने लगता है. इस बदलाव का सीधा असर पुरुषों की मानसिक स्थिति पर पड़ता है. उनमें मूड स्विंग्स बहुत अधिक देखने को मिलते हैं. इस कारण वे चिड़चिड़े और कई बार एकांत प्रिय भी हो जाते हैं.
नसों में आ जाती है कमजोरी
जो पुरुष मेनॉपॉज की उम्र में सही देखभाल और पूरी जानकारी के अभाव में तनावपूर्ण जीवन जी रहे होते हैं, उनमें अक्सर नींद ना आने की समस्या देखी जाती है. धीरे-धीरे यह स्थिति स्लीप डिसऑर्डर में बदल जाती है. नींद पूरी ना हो पाने के कारण ये लोग हर समय थकान का अनुभव करते हैं. शारीरिक और मानसिक किसी भी तरह के कार्यों में इनका मन नहीं लगता और गुस्सा, इरिटेशन, झुंझलाहट जैसी समस्याएं बढ़ने लगती हैं.
शरीरिक गतिविधियों से दूर होने लगते हैं लोग
लगातार यह स्थिति बनी रहने पर पुरुष शारीरिक गतिविधियों से दूर होने लगते हैं और अकेले बैठना या कम बोलना शुरू कर देते हैं। शारीरिक रूप से ऐक्टिव ना रहने के कारण उनकी मांसपेशियां कमजोर पड़ने लगती हैं। शरीर में रक्त का प्रवाह कम होने से नसों में कमजोरी आ जाती है, जिसका सीधा असर उनके दैनिक जीवन पर पड़ता है.