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ढाई सालों से बाधित है सुवर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना के ईचा-डैम कंपोनेंट का निर्माण

दिलीप बिल्डकोन कंपनी को मिला है एक हजार करोड़ रुपये के डैम निर्माण का काम
ढाई सालों से बाधित है सुवर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना के ईचा-डैम कंपोनेंट का निर्माण
दीपक/न्यूज11 भारत




रांची: बहुप्रतीक्षित ईचा -डैम बनने का मार्ग राज्य सरकार के मंत्रियों ने ही अवरुद्ध कर रखा है. झारखंड की पूर्ववर्ती रघुवर दास सरकार के कार्यकाल में ईचा डैम का टेंडर केंद्रीय जल आयोग की तरफ से डैम के डीपीआर और डिजाइन को मंजूरी दिये जाने के बाद फाइनल किया गया था. दिलीप जैन की दिलीप बिल्डकोन कंपनी को एक हजार करोड़ का काम मिला हुआ है. राज्य में 2019 के दिसंबर में हेमंत सोरेन की अगुवाई में गंठबंधन की सरकार बनी. इसके बाद से एक हजार करोड़ का कार्यादेश प्राप्त करनेवाली कंपनी का काम बंद हो गया. यानी ढाई साल से ईचा डैम परियोजना का काम बंद है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कोशिशों के बावजूद स्थानीय लोगों और उनकी ही पार्टी के विरोध की वजह से योजना का क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है. राज्य सरकार की तरफ से यह आदेश निकाला गया कि ईचा डैम का निर्माण रोका जाये. जानकारी के अनुसार राज्य के झामुमो कोटे के एक मंत्री और दो  विधायक तथा पार्टी के स्थानीय नेता ही इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं. इसके लिए विस्थापित परिवारों के लिए तीन सौ करोड़ रुपये भी सरकार की तरफ से आवंटित कर सुवर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना के कार्यालय को सौंपा जा चुका है. ईचा डैम प्रोजेक्ट सुवर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना का पार्ट है. ईचा डैम के बनने से झारखंड और ओड़िशा दोनों राज्यों के लोगों को फायदा होगा. झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले की करीब 85 हजार हेक्टेयर भूमि भी सिंचित हो सकेगी साथ ही आसपास के क्षेत्र में तेजी से गिर रहे भू जल स्तर को भी बचाया जा सकेगा.

 


 

'ईचा डैम' एक नजर में

 

ईचा डैम कुजू ग्राम के पास खरकई नदी पर बनेगा. यह सुवर्णरेखा बहुद्देश्यीय परियोजना का तीसरा कंपोनेंट है. छह हजार करोड़ से अधिक के परियोजना के दो कंपोनेंट गालूडीह दायां मुख्य नहर तथा चांडिल बांयी मुख्य नहर का निर्माण पहले ही पूरा हो चुका है. ईचा डैम के निर्माण होने से प्रखंड राजनगर, चाईबासा एवं तांतनगर के 87 गांव प्रभावित हो रहे हैं, वहीं 85 हजार हेक्टेयर भूमि सिंचित भी होंगे.  भू अर्जन का काम 1983 से ही जारी है. परियोजना को लेकर फारेस्ट क्लीयरेंस भी मिल चुका है. विस्थापित परिवारों को मुआवजा के रूप में 6 लाख 57 हजार रुपए प्रति परिवार पूर्व में  दिए गए हैं. विस्थापित परिवार के बच्चों का कौशल विकास प्रशिक्षण, उच्च शिक्षा तथा चालक की ट्रेनिंग के साथ जॉब की गारंटी दी जा रही है. विस्थापित कालोनी में पीसीसी सड़क, बिजली, जलापूर्ति, चिकित्सा केंद्र, विद्यालय, श्मशान घाट एवं कब्रगाह , तालाब, चापाकल लगाने के अलावा सीमांकन कर पिलर लगाने के कार्य भी अभी रूका पड़ा है. 

 

कितनी राशि विस्थापित परिवारों को करायी गयी है उपलब्ध

 

परियोजना के लिए विस्थापित परिवारों को प्रति एकड़ दो लाख रुपये का मुआवजा दिया जा रहा है. इसके अलावा घर बनाने के लिए डेढ़ लाख रुपये, जीवन निर्वाह भत्ते के रूप में एकमुश्त 72 हजार रुपये और स्वरोजगार शुरू करने के लिए 2.25 लाख रुपये प्रति परिवार दिया जा रहा है. परिवहन भत्ता के रूप में 10 हजार रुपये प्रति परिवार दिया जा रहा है. कुल मिला कर एक-एक विस्थापितों के खाते में छह लाख 57 हजार रुपये दिये गये हैं. अभी भी कई विस्थापितों ने मुआवजे की राशि नहीं ली है.

 

क्या आ रही है बाधाएं

 

ईचा डैम के निर्माण में अब नयी समस्या आ गयी है. विस्थापित रैयत अब अपनी खेत पर नहर बनाने नहीं देना चाह रहा हैं. ईचा डैम के लिए मुख्य कैनाल बन गया है. सब्सिडियरी और खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए छोटी नहर नहीं बन पायी है. ग्रामीणों के आंदोलन को स्थानीय नेता हवा दे रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि सरकार की इस परियोजना से उनकी अधिक जमीन जायेगी. सरकार ने गांववालों के खेतों का कम अधिग्रहण करने के उपाय भी तय किये हैं. जल संसाधन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि खेतों तक गुजरात मॉडल पर पाइपलाइन के जरिये नगर का पानी पहुंचाया जायेगा. इसमें सब्सिडियरी नहर और छोटी नहरों के लिए जमीन का अधिग्रहण कम से कम होगा. ग्रामीण अब भी जमीन अधिग्रहण के पुराने फैसले का ही विरोध कर रहे हैं.
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