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रांची/डेस्क: आज (8 नवंबर) को चार दिवसीय छठ महापर्व का समापन हो गया है. छठ घाटों पर सुबह-सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया गया. इसके साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास पूरा हो गया. छठी मइया के लिए बनाए गए खास ठेकुआ और प्रसाद को लोगों में बांटा गया. छठ पर्व के अंतिम दिन भक्त प्रसिद्ध छठी मईया के गीत गाते हुए घाट पर पहुंचे थे. रात्रि में संगीत के साथ कोसी भरी गई.
छठ महापर्व का समापन
बता दें कि खरना के अगले दिन षष्टी को शाम के समय अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य दिया जाता है, जबकि उसके अगले दिन सप्तमी को उदीयमान भगवान भास्कर को दूसरा अर्घ्य दिया आता है. इसी के साथ चार दिवसीय छठ पर्व का समापन हो जाता है. इस साल छठ महापर्व 5 नवंबर से शुरू होकर 8 नवंबर यानी आज समाप्त हो गया. इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है. यह पर्व भगवान सूर्य और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित है. माना जाता है कि इस महापर्व के व्रत व पूजन नियम का पालन करने से साधक के परिवार का हर कष्ट दूर होता है. साथ ही जीवन में खुशहाली आती है.
अस्ताचलगामी और उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने का अर्थ
छठ पर्व में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देना अंत के साथ नई शुरुआत का भी प्रतीक भी माना जाता है. माना जाता है कि डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देते समय इसकी रोशनी के प्रभाव से त्वचा रोन नहीं होते. साथ ही कई समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है.
डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यदि आप छठी माता की कृपा प्राप्त करने की कामना रखते हैं, तो आपको इस दिन सूर्य स्तुति का पाठ अवश्य करना चाहिए. इससे अपार यश और धन की प्राप्ति होती है. डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देना बहुत जरूरी होता है. डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही छठ पर्व का समापन होता है. 8 नंवबर को छठ के आखिरी दिन उदयागामी सूर्य अर्घ्य दिया जाता है. इसे उषा अर्घ्य भी कहते हैं.
धार्मिक मान्यता है अनुसार सूर्योदय के समय प्रात:काल में सूर्य देव अपनी पत्नी उषा के साथ रहते हैं, जोकि सूर्य की पहली किरण है. इन्हें भोर की देवी भी कहा जाता है. छठ पूजा में उदयगामी अर्घ्य देने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.