न्यूज 11 भारत
रांची: देशभर में गणंतत्र दिवस समारोह पूरी धूम से मनाया जाता है. पूरे देश में 26 जनवरी को विशेष कार्यक्रम आयोजित होते हैं. देश की राजधानी दिल्ली के राजपथ पर भव्य परेड होती है. झांकियां निकलती हैं. यह राष्ट्रीय पर्व हर देशवासी हर्षों उल्लास के साथ मनाता है. गणतंत्र दिवस देश के राष्ट्रीय त्योहारों में से एक है. क्योंकि 26 जनवरी 1950 के दिन ही सुबह 10.18 मिनट पर भारत का संविधान लागू किया गया था. इस अवसर पर देशवासी स्वतंत्रता सेनानियों व वीर योद्धाओं को स्मरण करते हैं. हर वर्ष इस दिन राष्ट्रपति तिरंगा झंडा फहराते हैं और 21 तोपों की सलामी दी जाती है. तोपों की सलामी क्यों दी जाती है? यह परंपरा कब शुरू हई? किन किन अवसरों पर तोपों की सलामी दी जाती है? पढ़े
न्यूज 11 भारत की विशेष खबर..
जानें 52 सेकेंड में पहली बार कैसे दी गई 21 तोपों की सलामी
गणतंत्र दिवस के अलावा तोपों का इस्तेमाल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर, 15 जनवरी को सेना दिवस पर, 30 जनवरी को शहीद दिवस पर और राष्ट्रपति भवन में दूसरे देशों के प्रमुखों के स्वागत के लिए किया जाता है. पहली बार तोपों की सलामी की परंपरा 26 जनवरी को आजाद भारत में गणतंत्र दिवस समारोह की शुरूआत के साथ हुई. राजपथ पर 21 तोपों की सलामी के साथ राष्ट्रगान शुरू हुआ. पहली बार 2281 फील्ड रेजीमेंट की सात केनन ने समन्वित तरीके से तोपों की सलामी दी. इसकी शुरूआत राष्ट्रगान के साथ हुई और समापन भी राष्ट्रगान की अंतिम पंक्ति के साथ ही हुआ. 21 तोपों की सलामी की अवधि राष्ट्रगान की अवधि के बराबर ही थी. प्रत्येक तोप को तीन तीन जवानों की एक एक टीम ने संभाल रखा था. सटीक समय के लिए विशेष घड़ियों का उपयोग किया गया था. किसी कारणवश किसी तोप के न चल पाने की स्थिति में जरूरत के लिए अलग से तोप की व्यवस्था भी की गई थी. कुल 52 सेकंड में 21 तोपें दागी गईं.
इसे भी पढ़े...6 जवानों को शौर्य चक्र, सेना के 317 जवान सम्मानित, जवानों से जुड़ी हैं वीरता की कहानियां
कई देशों में तोपों से सलामी देने की है परंपरा
आजादी से पहले भारत में राजाओं और जम्मू-कश्मीर जैसी रियासतों के प्रमुखों को 19 या 17 तोपों की सलामी दी जाती थी. भारत में अब गणतंत्र दिवस की परेड में, हर साल 21 तोपों को लगभग 2.25 सेकेंड के अंतराल पर फायर किया जाता है ताकि राष्ट्रीय गान के पूरे 52 सेकंड में प्रत्येक तीन राउंड में 7 तोपों को लगातार फायर किया जा सके. भारत के अलावा अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान और कैनेडा सहित दुनिया के लगभग सभी देशों में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय व सरकारी दिवसों की शुरुआत पर 21 तोपों की सलामी दी जाती है. परन्तु क्या आपने सोचा है कि सलामी के लिए 21 तोपों का ही क्यों इस्तेमाल किया जाता है. भारत में, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के माध्यम से इस परम्परा की शुरुआत हुई. किसे कितनी तोपों की सलामी दी जाएगी इसका एक नियम था. ब्रिटिश सम्राट को 101 तोपों की सलामी दी जाती थी जबकि दूसरे राजाओं को 21 या 31 की. लेकिन फिर ब्रिटेन ने तय किया कि अंतर्राष्ट्रीय सलामी 21 तोपों की ही होनी चाहिए. तभी से 21 तोपों की सलामी को सवोच्च सम्मान के रूप में माना जाने लगा.
तोपों को चलाने का इतिहास पुराना, जाने यह परंपरा कब और क्यों शुरू हुई
तोपों को चलाने का इतिहास मध्ययुगीन शताब्दियों से शुरू हुआ, उस समय सेनाएं ही नहीं अपितु व्यापारी भी तोपें चलाते थे. हम आपको बता दें कि पहली बार 14वीं शताब्दी में तोपों को चलाने की परम्परा उस समय शुरू हुई, जब कोई सेना समुद्री रास्ते से दूसरे देश जाती थी. और जब वो तट पर पहुंचते थे तो तोपों को फायर करके बताते थे कि उनका उद्देश्य युद्ध करना नहीं है. जब व्यापारियों ने सेनाओं की इस परम्परा को देखा तो उन्होंने भी एक देश से दूसरे देश की यात्रा करने के दौरान तोपों को चलाने का काम शुरू कर दिया था. पराम्परा यह हो गई कि जब भी कोई व्यापारी किसी दूसरे देश पहुंचता या सेना किसी अन्य देश के तट पर पहुंचती तो तोपों को फायर करके यह संदेश दिया जाता था कि वह लड़ने के उद्देश्य से नहीं आए हैं. उस समय सेना और व्यापारियों की और से 7 तोपों को फायर किया जाता था परन्तु इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं हैं कि 7 ही क्यों फायर किए जाते थे.
17वीं शताब्दी में शुरू हई 21 तोपों से सलामी देने की परंपरा
जैसे-जैसे विकास हुआ, समुद्री जहाज़ भी बड़े बनने लगे और फायर करने वाली तोपों की संख्या में भी वृद्धि हुई. 17वीं शताब्दी में पहली बार ब्रिटिश सेना ने तोपों को सरकारी स्तर पर चलाने का काम शुरू किया और तब इनकी संक्या 21 थी. उन्होंने शाही खानदान के सम्मान तोपों को चलाया था और संभावित रूप से इसी घटना के बाद दुनिया भर में सलामी देने और सरकारी खुशी मनाने के लए 21 तोपों की सलामी की रीति चल पड़ी. 18वीं से 19वीं शताब्दी के शुरू होने तक अमरीका और ब्रिटेन एक दूसरे के प्रतिनिधिमंडलों को तोपों की सलामी देते रहे और इसे सरकारी तौर पर मान्यता दे दी.