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कौन हैं देश विदेश तक में प्रख्यात नीम करोली बाबा, जाने उनका जीवन परिचय

नैनीताल में स्थित है प्रसिद्ध नीम करौली बाबा का कैंची धाम मंदिर
कौन हैं देश विदेश तक में प्रख्यात नीम करोली बाबा, जाने उनका जीवन परिचय

न्यूज़11 भारत


रांची/डेस्क: चारों ओर पहाड़ों से घिरी वादियों के मनमोहक दृश्य को देखकर सभी लोग रोमांच से भर जाते हैं. इस रोमांच की ऊर्जा का कारण उत्तराखंड के नैनीताल स्थित कैंची धाम मंदिर है. इस मंदिर का अपना खासा महत्व है और यहां के नीम करौली बाबा को मानने वालों की संख्या अनगिनत है. यह देश ही नहीं विदेशों  भी काफी लोकप्रिय हैं. वह अपने एक साधारण जीवन, पर उनके द्वारा किए गए चमत्कारों को आज भी भी याद किया जाता है. 15 जून को कैंची धाम के 60वां स्थापना दिवस मनाया जाता है.  इस दिन बेहद उत्साह के साथ भंडारे का आयोजन किया जाता है. आइए जानते हैं नीम करोली बाबा के बारे में विस्तार से. 


 

कौन हैं नीम करोली बाबा

20वीं सदी के महान संतों में शामिल नीम करोली बाबा अपनी दिव्य शक्तियों के कारण काफी लोकप्रिय हैं. वह बजरंगबली के भक्त थे. मान्यताओं के अनुसार, नीम करोली बाबा को कलयुग में उनको साक्षात भगवान हनुमान के रूप में दखते थे. वहीं लोग उन्हें भगवान हनुमान का अवतार मानते थे. नीम करोली बाबा का बचपन का नाम लक्ष्मण नारायण शर्मा था.  संत बनने के नाद उन्हें लक्ष्मण दास, नीम करोली बाबा, तिकोनिया वाले बाबा और तलईया बाबा जैसे नामों से जाना जाता था. हालांकि, उनकी जन्म के दिन का किसी को पता नहीं है पर 11 सितम्बर 1973, को वृन्दावन में उन्होंने अपना देह त्याग किया. 


 

नीम करौली बाबा का बचपन 

महाराजजी के नाम से प्रख्यात नीम करौली बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गांव में एक धनी ब्राह्मण जमींदार परिवार में हुआ था. उनका जन्म मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष अष्टमी को हुआ था और उनके पिता दुर्गा प्रसाद शर्मा ने उनका नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा रखा था. बचपन से ही महाराजजी सांसारिक मोह-माया से विरक्त थे. 11 वर्ष की आयु में उनका विवाह एक संपन्न ब्राह्मण परिवार की लड़की से हुआ था. विवाह के तुरंत बाद महाराजजी घर छोड़कर गुजरात चले गए. वे गुजरात और पूरे देश में विभिन्न स्थानों पर समय समय पर घूमते रहे. लगभग 10-15 वर्षों के बाद उनके पिता को किसी ने बताया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के नीब करौरी गांव में एक साधु को देखा है जो उनके बेटे जैसा दिखता था. उनके पिता तुरंत अपने बेटे से मिलने और उसे लेने के लिए नीब करौरी गांव पहुंचे. वहां उन्होंने महाराज जी से मुलाकात की और उन्हें घर वापस जाने का आदेश दिया. महाराज जी ने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया और वापस लौट आए. यह महाराज जी के दो अलग-अलग तरह के जीवन की शुरुआत थी. एक गृहस्थ का और दूसरा संत का. उन्होंने गृहस्थ के अपने दायित्व को पूरा करने के लिए समय दिया और साथ ही साथ अपने बड़े परिवार यानी दुनिया की देखभाल भी करते रहे. हालांकि, गृहस्थ या संत के कर्तव्यों का निर्वहन करते समय उनके जीवन और जीने की शैली में कोई अंतर नहीं था. एक गृहस्थ के रूप में उनके परिवार में उनके दो बेटे और एक बेटी हैं.


 

विश्व भर में प्रख्यात हैं नीम करोली बाबा मदिर 

हिन्दू धार्मिक तीर्थस्थलों में से एक कैंची धाम आश्रम श्रद्धालुओं के बीच काफी प्रसिद्ध है. संत नीम करोली बाबा ने यहां एक आश्रम को स्थापित किया था, जो काफी लोकप्रिय और शांतिपूर्ण आश्रय स्थल बन गया. आंतरिक शांति की तलाश में लोग यहां आते हैं. उत्तराखंड की सुरम्य पहाड़ियों पर स्थित कैंची धाम एक आध्यात्मिक केंद्र है, जहां की वादियां आपके दिलों-दिमाग को निलकुल शांत कर देंगी. हाल ही के दिनों में नीम करोली बाबा के कैंची धाम आश्रम की लोकप्रियता बढ़ गई है. पिछले वर्षों में क्रिकेट और मनोरंजन जगत की कई हस्तियां और देश-विदेश के दिग्गज कारोबारी नीम करोली बाबा के आश्रम आते रहते हैं. हाल ही में विराट कोहली और अनुष्का शर्मा भी वहां गए ही. 


 

कब जाएं नीम करोली आश्रम

अगर आप भी नीम करोली बाबा के आश्रम जाना जाते हैं . और सही समय की तलाश कर रहे हैं  तो मार्च से जून तक का समय सबसे रहेगा. वहीं सितंबर से नवंबर के बीच भी कैंची धाम घूमने जाया जा सकता हैं. इन महीनों में मौसम सुहाना होता है और नीम करोली बाबा आश्रम के आसपास का प्राकृतिक परिवेश सफर के लिए काफी रोमांचित होता है. वहीं जुलाई-अगस्त में मानसून के वजह से पहाड़ी क्षेत्र में जाने से बचना चहाइए.


 

नीम करोली बाबा  का जीवन परिचय 

गुजरात के बाद बबनिया से महाराज जी देश भर की यात्रा पर निकल पड़े. यात्रा करते-करते वे फर्रुखाबाद जिले के "नीब करोड़ी" गांव में पहुंचे और वहां कुछ देर विश्राम करने के लिए रुके. महाराज जी की वाणी दिव्य थी और यद्यपि उनका गांव वालों से बहुत कम संपर्क था, फिर भी उन्होंने जो कुछ भी कहा, वह सच हुआ. वे उनसे जुड़ गए और उनसे रहने की प्रार्थना करने लगे. उन्होंने उनके लिए एक भूमिगत गुफा बनाई, जिसमें वे दिन भर साधना में लीन रहते थे. किसी ने उन्हें शौच के लिए भी बाहर निकलते नहीं देखा. वे रात के अंधेरे में ही बाहर निकलते थे. बाद में पुरानी गुफा से लगभग दो सौ मीटर दूर गोवर्धन नामक ब्राह्मण की उपेक्षित भूमि पर एक नई गुफा (जो आज भी मौजूद है) खोदी गई. महाराज जी ने इस गुफा की छत पर हनुमान मंदिर बनवाया और प्राण-प्रतिष्ठा के दिन उन्होंने अपने लंबे, उलझे हुए बाल मुंडवा लिए और लंगोटी के स्थान पर एक लंबी सूती धोती पहनने लगे.

 

 

नई गुफा में जाने के बाद महाराज जी ने गांव वालों से मिलना-जुलना शुरू कर दिया. वे अपने आयु वर्ग के युवाओं से मित्रवत व्यवहार करने लगे और अक्सर उनके खेलों में भाग लेने लगे. वे उनसे इतनी सहजता से घुल-मिल गए कि उनके लिए उनके अद्भुत कारनामों की ख़ासियतों से अभिभूत होना संभव ही नहीं था. लुका-छिपी खेलते समय वे जंगल में कहीं भी छिपे किसी भी व्यक्ति को तुरंत ढूँढ़ लेते थे, लेकिन जब उनकी बारी आती तो वे अदृश्य हो जाते और कहीं नहीं मिलते. जंगल में पेड़ों पर चढ़ते समय उनके पीछा करने वाले एक पेड़ पर चढ़ते और फिर उन्हें दूसरे पेड़ पर बैठे हुए देखते. किसी ने उन्हें पेड़ से पेड़ पर छलांग लगाते नहीं देखा. गांव के तालाब में तैरते समय बाबा पानी में गायब हो जाते और काफी देर बाद बाहर आते. यह सब उनके लिए आश्चर्य और मनोरंजन का विषय था. इस दौरान गोपाल नाम का एक गरीब पक्षी पकड़ने वाला व्यक्ति महाराज जी का परम भक्त बन गया और प्रतिदिन उनके पास आता. एक दिन महाराज जी की आज्ञा भूलकर कि गुफा में प्रवेश नहीं करना है, गोपाल दूध का बर्तन लेकर अंदर चला गया. उसने देखा कि महाराज जी ध्यान में लीन हैं और उनके शरीर पर सर्प लिपटे हुए हैं. महाराज जी को शिव रूप में देखकर वह इतना भयभीत हो गया कि उसके पैर लड़खड़ा गए और दूध का बर्तन उसके हाथ से छूट गया. वह बाहर भागा और बेहोश हो गया. महाराज जी बाहर आए और उसे उठाते हुए कहा, "तुम्हें बिना आज्ञा के गुफा में प्रवेश नहीं करना चाहिए था." महाराज जी के स्पर्श मात्र से गोपाल को होश आ गया. एक बार महाराज जी को कई दिनों तक भोजन नहीं मिला. यह उनकी लीला ही थी. गांव वालों ने बताया कि वे बहुत उत्तेजित लग रहे थे. उन्होंने हनुमान (शिव के अवतार और भगवान राम के प्रिय भक्त, वे दुखों को दूर करने वाले, आशीर्वाद के अवतार और लोगों और भगवान के बीच सेतु हैं) की पवित्र छवि पर चिल्लाते हुए कहा, "क्या आप मुझे भूखा मार देंगे?" उसके ये शब्द कहते ही कई लोग फलों और मिठाइयों से भरे थाल लेकर मंदिर में आ गए. देवता का अनादर करना एक अकल्पनीय कार्य था, लेकिन गांव वालों का मानना ​​था कि महाराज जी ऐसा इसलिए कर सकते हैं क्योंकि वे हनुमान के भक्त नहीं बल्कि स्वयं हनुमान के भक्त थे. एक दिन महाराज जी गंगा की ओर जा रहे थे, जहाँ वे एकादशी और पूर्णिमा के शुभ दिनों में स्नान करते थे. वे अपने भक्त गोपाल और एक मुस्लिम साथी के साथ जा रहे थे जब उन्होंने फर्रुखाबाद की ओर जाने वाली एक ट्रेन देखी जिस पर वे यात्रा करना चाहते थे. चलती ट्रेन, जो लगभग दो सौ मीटर दूर थी, अचानक रुक गई और तब तक आगे नहीं बढ़ी जब तक कि महाराज जी और उनके सेवक उसमें सवार नहीं हो गए. जैसे ही महाराज जी बैठे, ट्रेन ने अपनी यात्रा जारी रखी. बाद में, ग्रामीणों के अनुरोध पर, जो इस घटना की स्मृति को जीवित रखना चाहते थे, भारत सरकार ने उस स्थान पर एक रेलवे स्टेशन की स्थापना की जहां बाबा सवार हुए थे और इसका नाम महाराज जी के नाम पर बाबा लक्ष्मण दास पुरी स्टेशन रखा. (नीब करोरी के ग्रामीण महाराज जी को बाबा लक्ष्मण दास कहते थे.)


 

कैंची बाबा के चमत्कार 

एक अन्य अवसर पर महाराज जी नीब करोड़ी से प्रथम श्रेणी के डिब्बे में बैठकर फर्रुखाबाद गए. उनका साधु जैसा रूप देखकर एंग्लो-इंडियन कंडक्टर ने उन्हें अगले स्टेशन पर उतर जाने को कहा. महाराज जी उतरकर प्लेटफार्म पर बैठ गए. स्टेशन स्टाफ के तमाम प्रयासों के बावजूद ट्रेन नहीं चली; ट्रेन दो घंटे देरी से रवाना हुई. कंडक्टर समस्या का कारण नहीं बता सका, क्योंकि उसमें कोई यांत्रिक दोष नहीं पाया गया. दरअसल, इंजन चल रहा था, लेकिन पहिए नहीं घूम रहे थे. ट्रेन के सभी डिब्बों की गहन जांच की गई और कहीं कोई खराबी नहीं पाई गई. जब अधिकारी इस समस्या पर विचार-विमर्श कर रहे थे, तभी कुछ रेलवे कर्मचारियों ने मजाक में महाराज जी से ट्रेन चलाने को कहा. महाराज जी ने कहा, "मैं ट्रेन से बाहर हो गया हूं और आप मुझसे ट्रेन चलाने को कह रहे हैं!" एक कर्मचारी ने कहा, "शायद आपके पास टिकट नहीं था." इस पर महाराज जी ने उन्हें कई असली प्रथम श्रेणी के टिकट दिखाए. आश्चर्यचकित होकर उन्होंने उनसे ट्रेन में फिर से चढ़ने और ट्रेन चलने देने की विनती की. महाराज जी ने ऐसा ही चाहा और ट्रेन तुरंत चल पड़ी. तब से बाबा लक्ष्मण दास बाबा नीब करोरी के नाम से प्रसिद्ध हो गए, जो नीब करोरी गाँव के बाबा थे. 1935 में एक धनी व्यक्ति नीब करोरी आया और उसने गोवर्धन और कुछ अन्य ब्राह्मणों की उपस्थिति में महाराज जी को सोने के सिक्कों से भरी एक चांदी की थाली भेंट की. महाराज जी ने भेंट स्वीकार नहीं की. उनके द्वारा इसे अस्वीकार करने से ब्राह्मणों में रोष उत्पन्न हुआ, क्योंकि वे चाहते थे कि महाराज जी उन्हें पैसे दें. बाद में एक और धनी व्यक्ति पूर्णिमा के दिन होने वाले यज्ञ के लिए तीस डिब्बे घी लेकर नीब करोरी आया. महाराज जी उस समय फर्रुखाबाद में गंगा स्नान कर रहे थे. उनकी अनुपस्थिति में ब्राह्मणों ने धनी व्यक्ति से महाराज जी के बारे में अपमानजनक तरीके से बात की और उसे अपने घी के डिब्बे लेकर चले जाने के लिए राजी किया. महाराज जी फर्रुखाबाद से नीब करोरी में हो रही सारी घटनाएँ देख सकते थे, और वापस आकर उन्होंने ब्राह्मणों को डाँटा और वार्षिक यज्ञ करने का विचार त्याग दिया. इसके कुछ ही समय बाद एक दिन वे गाँव छोड़कर चले गए. अठारह वर्ष तक महाराज जी वहाँ रहे. नीब करोरी छोड़ने के बाद कुछ समय तक महाराज जी फतेहगढ़ के किलाघाट में गंगा के किनारे रहे. वहाँ उन्होंने स्थानीय लोगों से मेलजोल बढ़ाया और कुछ गायें भी पालीं. भक्तों के मनोरंजन के लिए गायें महाराज जी की आज्ञा का पालन करती थीं. अपने प्रवास के दौरान उन्होंने अनेक सैनिकों को आशीर्वाद और दर्शन दिए. उन्होंने अपने पहले पश्चिमी भक्त कर्नल जे.सी. मैकेना का भी हृदय परिवर्तन किया, जो भारतीय साधु-संतों से विमुख थे. किलाघाट छोड़ने के बाद महाराज जी जगह-जगह घूमते रहे. इस दौरान वे कहाँ गए और क्या किया, इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता. हालाँकि, बरेली, हल्द्वानी, अल्मोड़ा, नैनीताल, कानपुर, लखनऊ, वृंदावन और इलाहाबाद के साथ-साथ दिल्ली, शिमला और यहाँ तक कि दक्षिण के सुदूर शहर मद्रास (चेन्नई) में भी लोगों में उनके प्रति श्रद्धा बढ़ती गई. 


 

यह हस्तियां भी हैं बाबा के भक्त

बिना किसी प्रचार के, सभी आयु, जाति और वर्ग के शहरी और ग्रामीण भारतीय, साथ ही पश्चिमी देशों के लोग भी बाबा के भक्त बन गए. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और यहां तक ​​कि नास्तिक भी उनकी ओर आकर्षित हुए. गिरि (भारत के पूर्व राष्ट्रपति), गोपाल स्वरूप पाठक (भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति) न्यायमूर्ति वासुदेव मुखर्जी, जुगल किशोर बिड़ला (प्रसिद्ध उद्योगपति) सुमित्रा नंदन पंत (कवि), दादा सुधीर मुखर्जी (इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर), रामदास (हार्वर्ड प्रोफेसर), कृष्णदास (ग्रैमी पुरस्कार नामांकित) जय उत्तल (प्रसिद्ध संगीतकार) और डॉ. लैरी ब्रिलियंट (यूएनओ चेचक उन्मूलन कार्यक्रम) और कई अन्य प्रसिद्ध हस्तियां महाराज जी के महान भक्त थे. स्टीव जॉब्स (एप्पल कंप्यूटर), मार्क जुकरबर्ग (फेसबुक), जूलिया रॉबर्ट (हॉलीवुड अभिनेत्री) और कई अन्य प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित व्यक्ति महाराज जी के व्यक्तिगत दर्शन करने के लिए भाग्यशाली नहीं थे, लेकिन उनके प्रति बहुत सम्मान रखते थे. 1940 के दशक के दौरान महाराज जी ने नैनीताल में अधिक समय बिताना शुरू कर दिया. महाराज जी जिस घर में जाते थे, वहां एक अवर्णनीय आनंद होता था. किसी खास समय पर वे शहर में कहां थे, यह जानने की कोई जरूरत नहीं थी, क्योंकि उनकी उपस्थिति उस जगह में व्याप्त आनंद और उत्सव की भावना से महसूस की जा सकती थी. वे कभी-कभी अपने भक्तों के घरों में रुकते थे, लेकिन वे अपना ज़्यादातर समय शहर से लगभग दो किलोमीटर दूर, मनोरा पहाड़ी पर बिताते थे. कभी-कभी वे सड़क किनारे की मुंडेरों पर रातें गुजारते थे, और घरेलू सुख-सुविधाओं के आदी गृहस्थ भक्त उनके साथ रात-रात भर जागते रहते थे, और फिर भी दिन में अपनी सामान्य दिनचर्या में व्यस्त रहते थे. थकान महसूस करने के बजाय, उन्हें ऊर्जा की एक नई भावना महसूस होती थी. 

 

नीम करौली बाबा के आध्यात्मिक शिष्य

नीम करोली बाबा के उल्लेखनीय शिष्यों में आध्यात्मिक शिक्षक राम दास (बी हियर नाउ के लेखक), गायक और आध्यात्मिक शिक्षक भगवान दास, लेखक और ध्यान शिक्षक लामा सूर्य दास और संगीतकार जय उत्तल और कृष्ण दास शामिल हैं. अन्य उल्लेखनीय भक्तों में मानवतावादी लैरी ब्रिलियंट और उनकी पत्नी गिरिजा, दादा मुखर्जी (इलाहाबाद विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश, भारत के पूर्व प्रोफेसर), विद्वान और लेखक यवेटे रोसेर, अमेरिकी आध्यात्मिक शिक्षक मा जया सती भगवती, फिल्म निर्माता जॉन बुश और डैनियल गोलेमैन लेखक शामिल हैं.ध्यान संबंधी अनुभव और भावनात्मक बुद्धिमत्ता की विविधताएँ. बाबा हरि दास (हरिदास) कोई शिष्य नहीं थे, लेकिन उन्होंने १९७१ की शुरुआत में कैलिफोर्निया में आध्यात्मिक शिक्षक बनने के लिए अमेरिका जाने से पहले (1954-1968) कई इमारतों की देखरेख की और नैनीताल क्षेत्र में आश्रमों का रखरखाव किया.


 

नीम करौली बाबा की अन्य कहानिया

स्टीव जॉब्स ने अपने मित्र डैन कोट्टके के साथ हिंदू धर्म और भारतीय आध्यात्मिकता का अध्ययन करने के लिए अप्रैल 1974 में भारत की यात्रा की; उन्होंने नीम करोली बाबा से मिलने की भी योजना बनाई, लेकिन वहां पहुंचे तो पता चला कि गुरु की पिछले सितंबर में मृत्यु हो गई थी.  हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्ट्स भी नीम करोली बाबा से प्रभावित थीं. उनकी एक तस्वीर ने रॉबर्ट्स को हिंदू धर्म की ओर आकर्षित किया. स्टीव जॉब्स से प्रभावित होकर मार्क जुकरबर्ग ने कैंची में नीम करोली बाबा के आश्रम का दौरा किया. लैरी ब्रिलियंट गूगल के लैरी पेज और ईबेय eBay के सह-संस्थापक जेफरी स्कोल को भी साथ लेकर गए.

 

 

कैसा होता है कैंची धाम मेला

कैंची धाम मंदिर के स्थापना दिवस के अवसर पर हर साल15 जून को मेला का आयोजन किया जाता है. इस मेले में काफी अधिक संख्या में श्रद्धालु आते हैं और नीम करोली बाबा के दर्शन करते हैं. इस दिन यहां पर बेहद खास रोमांच और ऊर्जा का संचालन देखने को मिलती है. मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी हर मुराद नीम करोली बाबा पूरी करते हैं.

 


 

 
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