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झारखंड


झारखंड का ‘नागराज’ जिसके सिर पर ‘मणि’ नहीं कोयला है

झारखंड का ‘नागराज’ जिसके सिर पर ‘मणि’ नहीं कोयला है

 हिस्स...प्रणाम...झारखंड राज्य भी अजीब है.अजीब क्यों ये आप सोचेंगे.तो हम बता देते हैं की अजीब इसलिये क्योंकि यहां तरह-तरह के प्राणी आपको जंगलों में मिल जाएंगे.झारखंड इकलौता राज्य है जहां शहरों में भी ‘नाग’ मिलता है.जहरीला फुंफकारने वाला ‘नाग’.झारखंड कितना अजीब है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगाइये की बाकी पूरी दुनिया में ‘नाग’ खेल दिखाता है लेकिन झारखंड में ‘नाग’ खेल खिलाता है. झारखंड वाला ‘नाग’ मणि की रोशनी में नाचने की जगह कोयले की कालिख में लोटता है.खैर हरकिसी की अपनी फितरत हती है तो इस ‘नाग’ की भी है.बहरहाल आपको फ्लैशबैक में ले चलते हैं. सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दर्ज की गयी.याचिका प्रह्लाद नारायण सिंह के नाम से थी.याचिका में कहा गया की झारखंड के पूर्व डीजीपी कमल नयन चौबे को हटाया जाना गलत था क्योंकि उनके दो साल का कार्यकाल पूरा नहीं हुआ था.साथ ही साथ पूर्व प्रभारी डीजीपी एमवी राव की नियुक्ति को भी गलत बताया गया क्योंकि डीजीपी दैसे पद के लिये एडहॉक नियुक्ति का कोई प्रवाधान नहीं है.सुप्रीम कोर्ट ने इस पीटीशन को तीन आधार पर खारिज किया.पहला आधार था की राज्य सरकार ने कोर्ट के सामने  कारण बताया की कमल नयन चौबे को क्यों हटाया गया और साथ ही इसका भी कारण बताया गया की एमवी राव की नियुक्ति क्यों की गयी.कोर्ट ने ये भी कहा की जिस शख्स ने ये याचिका दायर की है उसका इस पद से कोई सरोकार नहीं है यानि LOCUS STANDI. कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए ये भी कहा की ये एक सर्विस मैटर है.बहरहाल कोर्ट की इन सब बातों से ‘नागराज’ का क्या संबंध है. आपके मन में यही सवाल होगा.तो उसका जवाब हम दे देते हैं की ‘नागराज’ के आदेश पर अब भी कई याचिका दिल्ली पहुंच रही हैं. अब भी पहुंची है. याचिका करने वाले बोकारो तेलो के रहने वाले राजेश कुमार साहब हैं. फिर से झारखंड के डीजीपी पद से इनका कोई विशेष सरोकार नजर नहीं आता अगर आप इसे नैरो फ्रेम में देखें. वाइड फ्रेम में देखेंगे तो कोयले की कालिख में नाचते ‘नागराज’ और ‘नागराज’ की ताल पर नाचते कोयला कारोबारी नजर आयेंगे.राजेश कुमार साहब अपनी याचिका में कहते हैं की वर्तमान डीजीपी नीरज कुमार सिन्हा की नियुक्ति गलत है.इसका आधार वो इस याचिका में बताते हैं की नियुक्ति एडहॉक आधार पर हुई है. जबकी जो नियुक्ति की चिठ्ठी थी उसमें एडहॉक नाम की कोई बात नहीं है यानि डीजीपी तो डीजीपी हैं एडहॉक डीजीपी नहीं.एडहॉक वाले ‘नागराज’ हैं. हम समझ सकते हैं कोयले की कालिख में थोड़ा धुंधला दिखायी देता है.इसमें बाकी जो पॉइंट उठाये गये हैं वो सारे वही पॉइंट्स हैं जो प्रह्लाद नारायण सिंह की याचिका में थे और जिन्हें कोर्ट ने खारिज किया था.सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका के फैसले में ये भी कहा था की डीजीपी चुने जाने के बाद अगर सेवानिवृति की तारीख आ भी जाये तो भी डीजीपी का न्यूनतम कार्यकाल कमसे कम दो साल का होना चाहिये.बहरहाल ‘नागराज’ ने तय किया है की डीजीपी के खिलाफ साजिश रची जाये तो रांची से लेकर दिल्ली तक साजिश तो चलेगी ही, बहरहाल साजिश फुस्स हर बार हो जाती है.चलिये नागराज को करतब दिखाते रहने दीजिये, न्यूज 11 भारत भी बीन बजाता रहेगा. सभी पढ़ने वालों को हिस्स.. प्रणाम


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