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रामगढ़ स्थित मां छिन्नमस्तिका यानी रजरप्पा मंदिर को नवरात्रि 2021 में एक अलग ही रंग दिया गया है. इस बार पूरे मंदिर को फूलों से सजाया गया है. मंदिर को सजाने के लिए प. बंगाल से कलाकारों को बुलाया गया था. कोरोना को देखते हुए नवरात्र के में प्रशासन ने कई दिशा निर्देश भी जारी किए है. भक्तों को सामाजिक दूरी, मास्क लगाना और सेनेटाईजर का प्रयोग करना अनिवार्य होगा.
मंदिर का इतिहास
मां छिन्नमस्तिके का मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर है. रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर झारखंड ही नहीं बल्कि पूरे देश में आस्था की प्रतीक के तौर पर जानी जाती है. रजरप्पा मंदिर कामाख्या मंदिर के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है.

रजरप्पा का यह सिद्धपीठ केवल एक मंदिर के लिए ही विख्यात नहीं है. बल्कि वहां के नजारे लोगों को काफी प्रभावित करते है. पश्चिम की ओर से दामोदर और दक्षिण से आती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की खूबसूरती को सौ गुणा बढ़ा देती है. मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों में मतभेद है. किसी के अनुसार मंदिर का निर्माण 6,000 साल पहले हुआ था तो कोई इसे महाभारत युग का मानता है . माता का दरबार सुबह 4 बजे से ही सजना शुरू होता है. शादी-विवाह, मुंडन-उपनयन के लगन और दशहरे के मौके पर भक्तों की 3-4 किलोमीटर लंबी लाइन लग जाती है. भीड़ को संभालने के लिए पूर्व पर्यटन विभाग द्वारा गाइडों की नियुक्ति की गई है. आवश्यकता पड़ने पर स्थानीय पुलिस भी मदद करती है.

मां छिन्नमस्तिके मंदिर के अंदर स्थित शिलाखंड में मां की 3 आंखें हैं. बायां पांव आगे की ओर बढ़ाए हुए वे कमल पुष्प पर खड़ी हैं. पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं. मां छिन्नमस्तिके का गला सर्पमाला और मुंडमाल से सुशोभित है. बिखरे और खुले केश, जिह्वा बाहर, आभूषणों से सुसज्जित मां नग्नावस्था में दिव्य रूप में हैं. दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है. इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं जिन्हें वे रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं. इनके गले से रक्त की 3 धाराएं बह रही हैं. मंदिर में बलि की प्रथा भी है. बलि स्थान पर प्रतिदिन सैकड़ों बकरों की बलि चढ़ाई जाती है. मंदिर की ओर मुंडन कुंड भी है. रुद्र भैरव मंदिर के नजदीक एक कुंड है. दामोदर और भैरवी नदी का संगम स्थल भी अत्यंत मनोहारी है. भैरवी नदी स्त्री नदी मानी जाती है जबकि दामोदर पुरुष नदी मानी जाती है.