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झारखंड


झारखंड के मधु की देश भर में डिमांड, मधुमक्खी पालकों को सरकार दे रही है प्रोत्साहन

झारखंड के मधु की देश भर में डिमांड, मधुमक्खी पालकों को सरकार दे रही है प्रोत्साहन

कौशल आनंद/ News11Bharat


झारखंड के किसानों के लिए मधुमक्खी पालन एक अतिरिक्त आय का साधन बन सकता है. राज्य सरकार मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. मालूम हो कि झारखंड के मधु शुद्ध और अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं, इसलिए ना सिर्फ राज्य में बल्कि पूरे देश में इनकी अच्छी डिमांड है.

 

झारखंड के मधु की खासियत

 

राज्य के मधु की खासियत ये है कि इसमें नमी कम होती है, इससे इनकी गुणवत्ता बढ़ जाती है. साथ ही जंगल से सटे इलाकों में मधुमक्खियों को प्राकृतिक अवस्था में पनपने वाले फूल (जिनमें कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता है) मिलते हैं. इतना ही नहीं राज्य में सरसों की खेती भी अच्छी होने के कारण मुधमक्खियों को फूल आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं. यही वजह है कि राज्य के मधु शुद्ध और अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं.

 

राज्य के जंगलों और ग्रामीण इलाके में वनतुलसी, ढेला, करंज, सरगुजा, लीची आदि के वृक्ष बड़ी संख्या में पाये जाते हैं. इसके अलावा राज्य के किसानो में आजकल सरसों की खेती का प्रचलन भी बढ़ा है. जिससे मधुमक्खियों को फूल आसानी से उपलब्ध होते हैं. साथ ही झारखंड की भौगोलिक स्थिति, मौसम और पर्यावरण मधुमक्खी पालन के लिए काफी अनुकूल हैं. यहां से प्राप्त मधु का खाद्य पदार्थ के अलावा औषधीय उपयोग भी होता है. 

 

सरकार किसानों को मधुमक्खी पालन के लिए दे रही बढ़ावा

 

राज्य सरकार मधुमक्खी पालन के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. झारखंड राज्य खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड किसानों को मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण देने और उन्हें मधुमक्खियों सहित बॉक्स प्रदान करता है. यह बोर्ड अपनी सहयोगी संस्थाओं के माध्यम से झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों के किसानों को मधुमक्खी पालन से संबंधित प्रशिक्षण प्रदान करता है.

 

किसानों के लिए मधुमक्खी पालन है लाभकारी

 

बोर्ड के CEO राखाल चंद्र बेसरा ने बताया कि मधुमक्खी पालन किसानों के लिए न सिर्फ अतिरिक्त आय का साधन है, बल्कि इससे कृषि को भी फायदा होता है. यह वैज्ञानिक तथ्य है कि मधुमक्खियों के द्वारा किए गए परागण से फसल अच्छी होती है. मधुमक्खियों की वजह से पौधों की विविधता संभव हो पाती है. यही नहीं, दुनियाभर में प्रमुख खाद्य फसलें पूर्ण या आंशिक रूप से मधुमक्खियों के परागण के कारण ही पनपती है. मधुमक्खियों और फूलों के बीच सामंजस्य ने ही इस धरती को समृद्ध बनाया है.

 

2017 से शुरू हुआ प्रशिक्षण देने का काम

 

- संथाल परगना एवं रांची में वर्ष 2017-18 में 125, 2018-19 में 175 किसानों दिया गया प्रशिक्षण.

- 2019-20 में 50 किसानों को प्रशिक्षण दिया गया. 

- गुमला एवं सिमडेगा जिले में 2017-18 में 75, 2018-19 में 100, 2019-20 में 50 किसानों का प्रशिक्षण दिया गया. 

- हजारीबाग एवं खूंटी जिले में 2017-18 में 75, 2018-19 में 175, 2019-20 में 100 किसानों को प्रशिक्षण से जोड़ा गया.

- पलामू एवं लोहरदगा जिला में 2017-18 में 50, 2018-19 में 150, 2019-20 में 50 किसानों को प्रशिक्षण से जोड़ा गया.

- 2020-21 में अभी तक कोरोना संक्रमण की वजह से प्रशिक्षण शुरू नहीं हो सका है.

 

किसानों को दिया जा चुका है 1,550 मधुपेटियां, मिलता है 150 रूपये प्रतिदिन छात्रवृति

 

बोर्ड द्वारा मधुपेटियों का वितरण किया जाता है. वित्तीय वर्ष 2017-18, 2018-19, 2019-20 में 280 लाभुकों के बीच 1,550 मधुपेटियों का वितरण किया गया है. प्रशिक्षण अवधि में किसानों को 150 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से छात्रवृति भी प्रदान की जाती है. प्रशिक्षण प्राप्त करनेवाले किसानों को शिल्पी रोजगार योजना के तहत मधुपेटियों का वितरण किया गया है.

 

अमृता हनी के नाम से मधु की बिक्री

 

मधुपालकों से बोर्ड मधु की खरीदारी भी करता है. इसे बोर्ड के बिक्री केंद्रों के माध्यम अमृता हनी के नाम से बिक्री किया जाता है. वर्ष 2017-18 में 3000 किलो मधु उत्पादन हुआ. 2018-19 में 12000 किलो 2019-20 में 15000 किलो मधु का उत्पादन हुआ. बोर्ड के द्वारा मधुपालकों से कुल 1550 किलो मधु क्रय किया गया है.

 


 
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